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आत्मनिर्भरता पर जोर जरूरी

मनरेगा को यदि कृषि और लघु उद्योगों के लिए विस्तारित किया जाए, तो ग्रामीण युवाओं के लिए लंबे समय तक और अधिक लाभकारी रोजगार मिलने के रास्ते खुलेंगे.

कोविड महामारी से ग्रसित अर्थव्यवस्था के मद्देनजर गरीब जनता के लिए राहत देते और राजस्व की कमी से जूझते हुए बजट बनाना वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए आसान काम नहीं होगा. भारत में कोरोना की तीसरी लहर का असर अपेक्षाकृत रूप से कम ही है. यह बात वित्तमंत्री के लिए राहत का सबब हो सकती है.

एक और राहत की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हालिया अनुमानों के अनुसार 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि नौ प्रतिशत रही और आगामी दो वर्षों में भी यह दर इससे कम नहीं रहेगी. जीडीपी में वृद्धि की यह अनुकूल स्थिति कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में परिलक्षित हो रही है.

पिछले तीन महीने से जीएसटी से कुल प्राप्तियां प्रतिमाह 1.3 लाख करोड़ के आसपास रही हैं, जो अर्थव्यवस्था में उठाव का लक्षण है. प्रत्यक्ष करों की प्राप्तियों में भी लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि की अपेक्षा है. कोरोना काल में आमदनी से अधिक खर्चे की कुछ भरपाई तो इन प्राप्तियों से हो जायेगी, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए अभी बड़े लक्ष्यों की तरफ आगे बढ़ाने की चुनौती वित्त मंत्री के सामने है.

पिछले लगभग 20-22 वर्षों में विदेशों, खासतौर पर चीन, पर निर्भरता के कारण देश की मैन्युफैक्चरिंग बुरी तरह प्रभावित हुई, जिसका प्रभाव रोजगार पर भी पड़ा. मोदी सरकार द्वारा पहले ‘मेक इन इंडिया’ और कोरोना काल में ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना की घोषणा से यह आशा बंधी है कि विदेशों पर निर्भरता कम करते हुए मैन्युफैक्चरिंग में देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ेगा.

पिछले बजट में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना (पीएलआइ स्कीम) के अंतर्गत आगामी कुछ वर्षों में दो लाख करोड़ रुपये के प्रावधान की घोषणा की थी. कई उद्योगों को इस योजना में शामिल किया गया है. हाल ही में सरकार ने सेमीकंडक्टर के उत्पादन में प्रोत्साहन के लिए 10 अरब डालर के खर्च की घोषणा की है. गौरतलब है कि सेमीकंडक्टरों के लिए भारत चीन व ताईवान समेत शेष दुनिया पर निर्भर करता है. पिछले कुछ माह में इनकी कमी से देश में ऑटोमोबाइल समेत कई उद्योग प्रभावित भी हुए. ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के हिसाब से वित्त मंत्री को बड़े आवंटन करने की जरूरत पड़ेगी.

नये कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसान आंदोलन का तो पटाक्षेप हो गया है, लेकिन इसके साथ ही देश में खेती-किसानी की हालत सुधारने की आवश्यकता भी रेखांकित हुई है. कोरोना काल में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों की गांवों में वापसी से ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और रोजगार सृजन की आवश्यकता महसूस की जा रही है.

समझना होगा कि गांवों में आधे गृहस्थ ही किसान हैं, शेष जनसंख्या भूमिहीन परिवारों की है, जो खेतों में मजदूरी के साथ अन्य गतिविधियों में संलग्न हैं. ऐसे सभी लोगों को लाभकारी रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मुर्गीपालन, पशुपालन, डेयरी, मशरूम फार्मिंग, मछली-पालन, ग्रामोद्योग जैसी पहलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. देश खाद्यान्न में लगभग आत्मनिर्भर हो चुका है, लेकिन अब भी खाद्य तेलों के लिए विदेशों पर निर्भरता है. आज फसल चक्र में बदलाव की जरूरत भी महसूस की जा रही है. ऐसे में किसानों को तिलहन की तरफ अग्रसर करना होगा, जिसके लिए बजट में प्रावधान की जरूरत होगी.

रोजगार को बजट में महत्व मिलना अपेक्षित ही नहीं, जरूरी भी है. उत्पादन इकाइयों में अतिरिक्त रोजगार पर होनेवाले खर्च को आय में से 150 प्रतिशत की कटौती की अनुमति देने से रोजगार सृजन को मदद मिल सकती है. लगभग 1000 उत्पाद, जो पहले लघु उद्योगों के लिए आरक्षित थे, भूमंडलीकरण के दौर में उनकी सूची घटते-घटते शून्य पर आ गयी. इस कारण लघु उद्योगों का पतन तो हुआ ही, आयातों पर हमारी निर्भरता भी बढ़ी और रोजगार का भी ह्रास हुआ.

लघु उद्योगों के आरक्षण की उस नीति को बहाल करने के साथ लघु व्यवसायों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा उनके निवेश में 25 प्रतिशत की सब्सिड़ी सहायक सिद्ध हो सकती है. पीएलआइ स्कीम के इतर उन सभी उत्पादों को, जहां विदेशों पर निर्भरता अधिक है, विशेष प्रोत्साहन की जरूरत होगी. मनरेगा योजना में भी बदलाव करते हुए यदि उसे कृषि और लघु उद्योगों के लिए विस्तारित किया जाए, तो ग्रामीण युवाओं के लिए लंबे समय तक और अधिक लाभकारी रोजगार मिलने के रास्ते खुलेंगे.

पिछले समय में सरकार द्वारा विदेशी मुद्रा को आकर्षित करने के लिए विदेशी निवेशकों को तरह-तरह के प्रोत्साहन दिये गये. इसका कई बार खासा नुकसान भी सहना पड़ा. हालांकि हम गर्व करते है कि कई स्टार्ट-अप यूनिकॉर्न बन गये यानी उनका पूंजीगत मूल्य एक अरब डॉलर से अधिक हो गया, लेकिन जिन विदेशी निवेशकों ने उनमें निवेश किया था, वे इन उद्यमियों को देश से बाहर करने में सफल हो गये, यानी हमारे स्टार्ट-अप फ्लिप होकर भारतीय रहे ही नहीं.

शेष स्टार्ट-अप के भी विदेशी हाथों में जाने की आशंका है. इसलिए सरकार को ऐसे फैसले से बचना चाहिए. हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह आह्वान किया गया है कि देशी उद्यमों एवं स्टार्ट-अप को देश में ही पूंजी मिले. इसके लिए जरूरी है कि विदेशी निवेशकों को करों में मिली छूट देशी निवेशकों को भी मिले.

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