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भारत की संस्कृति में एकात्म भाव

भारत की राष्ट्रीयता किसी शासन पर आधारित नहीं रही. स्वतंत्रता से पूर्व कभी भी देश में एक जैसे नियम-कानून लागू नहीं रहे, तो भी भारत को हमेशा से एक राष्ट्र माना जाता रहा है.

By डॉ अश्विनी | February 23, 2022 10:32 AM

कुछ समय पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का संघ है. यह बात सही है कि संविधान में भारत को राज्यों के संघ के रूप में वर्णित किया गया है, लेकिन उनका यह कहना कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, संविधान, संविधान की भावना और इस देश की सांस्कृतिक सोच के विरुद्ध है. भारत का संविधान लिखता है कि इंडिया यानी भारत राज्यों का संघ होगा, भारत कहते ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह देश भारत है.

भारत शब्द कहते ही हमारे सामने एक भौगोलिक चित्र के साथ हजारों वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर की अनुभूति आ जाती है. विष्णु पुराण में भी भारत के भौगोलिक स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है- उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् / वर्ष तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः, यानी समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो भूमि स्थित है, उसे भारत भूमि कहते हैं और इस पवित्र भारत भूमि पर निवास करनेवाले लोगों को भारतीय कहा जाता है.

भारत को एक राष्ट्र के रूप में मात्र इसलिए नहीं जाना जाता कि वह एक भू-भाग है, बल्कि इसलिए भी कि भारत विश्व की सबसे पुरानी एवं जीवित संस्कृतियों में से एक होने के साथ विविधताएं होते हुए भी यहां की संस्कृति में एकात्म भाव देखने को मिलता है.

पश्चिमी देशों में नेशनलिज्म की परिभाषा उनकी भाषा, संप्रभु, राज्य, भौगोलिक सीमा, जनता की इच्छाशक्ति आदि के आधार पर दी जाती रही है. यूरोप में नेशनलिज्म की अवधारणा बहुत पुरानी नहीं है. वहां के देशों ने अलग-अलग वर्षों में नेशनहुड प्राप्त किया यानी कहा जा सकता है कि यूरोपीय देशों में नेशनलिज्म प्रारंभिक काल से नहीं था. इसकी तुलना में यदि भारत में देखते हैं, तो भारत की राष्ट्रीयता किसी राजा, भाषा अथवा राज्य शासन पर आधारित नहीं रही.

संपूर्ण भारत अधिकांश समय किसी एक राजा के आधिपत्य में नहीं रहा. स्वतंत्रता से पूर्व कभी भी देश में एक जैसे नियम-कानून लागू नहीं रहे, तो भी भारत को हमेशा से एक राष्ट्र माना जाता रहा है. ऐसा क्या है कि भारत की राष्ट्रीयता हजारों वर्षों से अक्षुण्ण रही है, जबकि पश्चिमी विचारकों से अभिभूत भारत के कुछ विचारक भारत की राष्ट्रीयता को पश्चिम के नेशनलिज्म के पैमाने से नापने की कोशिश करते हैं, जबकि पश्चिम में नेशनलिज्म अपेक्षाकृत एक नयी एवं संकीर्ण अवधारणा है, जो 15-16वीं शताब्दी में ही रूप ले पायी.

जो भारत की राष्ट्रीयता को पश्चिम के चश्मे से देखना चाहते हैं, उन्हें लगता है कि राष्ट्र से अभिप्राय किसी एक राज्य व्यवस्था के अस्तित्व से है, इसलिए वे इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस आदि यूरोपीय देशों के राष्ट्रवाद को तो मान्यता देते हैं, लेकिन भारत के राष्ट्रवाद को नकारते हैं. यूरोप में नेशनलिज्म की भावना का प्रारंभ फ्रांसीसी राज्य क्रांति के बाद हुआ, पर विडंबना यह है कि स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आधार पर हुई उस राज्य क्रांति की परिणति नेपोलियन में हुई और उसके विस्तारवादी आक्रमणों की प्रतिक्रिया में यूरोपीय देशों के नेशनलिज्म को बढ़ावा मिला.

मध्ययुगीन पश्चिम को नेशनलिज्म या ऐसी आधुनिक संकल्पनाओं का कोई ज्ञान ही नहीं था. विभिन्न भूभागों, जैसे उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि के मूल निवासियों को खदेड़ते हुए इन यूरोपीय देशों ने अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये. इन भूभागों में भी सहज रूप से राष्ट्रीयता का विकास हुआ, लेकिन इन सभी देशों में नेशनलिज्म की अवधारणा वहां की शासन व्यवस्था के आधार पर है यानी यह समझा जाता है कि जहां एक शासन व्यवस्था है, उसे ही राष्ट्र माना जायेगा.

इसीलिए वे लोग जो नेशनलिज्म की यूरोपीय अवधारणा से अभिभूत हैं, उन्हें भारत की राष्ट्रीयता समझ में नहीं आती. ऐसा देश, जिसे हजारों वर्ष पहले लिखे पुराणों में भी एक राष्ट्र माना गया है, जहां विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, जाति-बिरादरियों, पूजा पद्धतियों के बावजूद एक एकात्मता का भाव है,

जहां हजारों वर्षों से लोग देश की चारों दिशाओं में तीर्थों के लिए जाते हैं, जहां विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग राज्य व्यवस्था होते हुए भी एक राष्ट्रीय विचार हमेशा उपस्थित रहा है, उसे वे राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं है. उनको ऐसा लगता है कि ब्रिटिश शासन आने के बाद ही देश में एक राज्य व्यवस्था लागू हो सकी, इसलिए भारत को एक राष्ट्र बनाने के लिए ब्रिटिश शासन ही जिम्मेदार है.

लेकिन वे लोग जिनकी यह दृढ़ मान्यता है, और जो सही भी है कि भारत, जिसमें विविधताओं के बावजूद लोगों में एकात्म भाव है, जिसकी अपनी एक सांस्कृतिक पहचान, विरासत एवं एकता विभिन्न प्रकार से परिलक्षित होती है, वे यह मानने के लिए तैयार नहीं कि भारत की राष्ट्रीयता ब्रिटिश शासन की कर्जदार है.

जहां देश के कोने-कोने से भारत को आजाद करने के लिए लड़ाई लड़ी गयी, ऐसे भारत को एक राष्ट्र न मानना, केवल नासमझी नहीं कही जा सकती, इसमें एक षड्यंत्र की बू भी आती है. राहुल गांधी द्वारा यह कहना कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, देश विरोधी वक्तव्यों एवं राष्ट्रद्रोह के आरोपों से घिरे लोगों के साथ उनकी निकटता की भी याद दिलाता है. आजादी से पहले और बाद में भी कांग्रेस के किसी नेता ने ‘भारत एक राष्ट्र नहीं है’ जैसी बात नहीं कही है.

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