समग्र जेंडर बजट से समाधान

जेंडर बजट बहुत मायने रखता है, क्योंकि भारत में महिलाएं देश की आबादी का 48.9 प्रतिशत हैं. ऐसे में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण सुनिश्चित करना बजट की प्रमुख प्रतिबद्धता होनी चाहिए.

By डॉ बर्णा | February 21, 2022 9:57 AM

वित्तीय वर्ष 2022-23 का केंद्रीय बजट विकास के चार स्तंभों- ढांचागत विकास, समावेशी विकास, उत्पादकता वृद्धि और वित्तीय निवेश पर आधारित है. यह बजट अगले 25 वर्षों तक भारतीय अर्थव्यवस्था को दिशा देनेवाला एक खाका है, जो भारतीय स्वतंत्रता के 75वें से 100वें वर्ष के दौरान ‘अमृत-काल’ के रूप में मनाया जा रहा है. इस बजट में महिलाओं के आर्थिक घटक से संबंधित सभी पहलुओं को विकासात्मक कार्यसूची में महत्व दिया गया है.

साथ ही, महिलाओं के लिए समावेशी विकास का अवसर पैदा करने हेतु लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण जैसे जेंडर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर उनका समाधान खोजा गया है. विश्व में जेंडर बजट की प्रक्रिया अस्सी के दशक के मध्य से शुरू हुई, जब पहली बार जेंडर मुद्दे को मुख्यधारा की राजनीति के रूप में ऑस्ट्रेलियाई संघ और उनकी राज्य सरकारों ने अपनाया था.

बजट की प्रक्रिया संसाधन आवंटन का प्रवेश द्वार है. साथ ही यह सार्वजनिक नीति-निर्माण के मानकों और गुणों का एक प्रमुख निर्धारक है. यह स्वाभाविक है कि बजट को जेंडर-उत्तरदायी लोक शासन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. विगत 17 वर्षों में भारत के जेंडर बजट में लगभग बारह गुना वृद्धि हुई है. वित्तीय वर्ष 2005-06 का बजट अनुमान 14,378.68 करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 1,71,006 करोड़ रुपये हो गया है, जो 2021-22 के लिए आवंटित 1,53,326 करोड़ रुपये की तुलना में 11.6 प्रतिशत अधिक है.

आवंटित जेंडर बजट की राशि को कुल 35 मंत्रालयों और सरकारी विभागों के बीच वितरित किया गया है. जेंडर बजट में दो भाग होते हैं. भाग-ए में 100 प्रतिशत खर्च केवल महिला-विशिष्ट कार्यक्रमों के लिए और भाग-बी में उन कार्यक्रमों पर खर्च है, जहां कम से कम 30 से 99 प्रतिशत आवंटन महिलाओं से संबंधित है. भाग-ए के लिए बजट में 26,772.89 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है.

इस श्रेणी में प्रमुख आवंटन ग्रामीण आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना) जैसी योजनाओं को दिया गया है, जो भाग-ए के तहत आवंटन का 75 प्रतिशत है. इसके बाद समर्थ (10 प्रतिशत) इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आठ प्रतिशत) है. प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए इस बार 500 करोड़ रुपये की वृद्धि की गयी है. भाग-बी के तहत कुल आवंटन 1,44,233.6 करोड़ रुपये है.

प्रमुख आवंटन में मनरेगा (18 प्रतिशत), प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) (15.9 प्रतिशत), राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन प्रजनन तथा बाल स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण के लिए फ्लैक्सी पूल (9.7 प्रतिशत), सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 (8.1 प्रतिशत) और समग्र शिक्षा (7.8 प्रतिशत) शामिल हैं. इस बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण, कौशल, उद्यमिता, सुरक्षा और वित्तीय समावेशन पर विशेष जोर देते हुए नारी शक्ति को महत्व दिया गया है.

सक्षम आंगनबाडी एवं पोषण 2.0 को 14972.71 करोड़ रुपये तथा समग्र शिक्षा को 11215.01 करोड़ रुपये दिये गये हैं. इसके अलावा केंद्रीय विद्यालय संगठन को 2295 करोड़ रुपये और नवोदय विद्यालय समिति को 1234.50 करोड़ रुपये दिये गये हैं. साथ ही, बड़ी रकम आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली के लिए 250 करोड़ रुपये और ‘सुरक्षित शहर’ परियोजनाओं के लिए 520.04 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं.

आवास और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए भी एकमुश्त राशि दी गयी है. महिला केयर योजना, शोध, शिक्षा और प्रशिक्षण आउटरीच, प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान, उच्च शिक्षा में निवेश जैसी योजनाओं पर निवेश महिलाओं को मजबूत करने की पहल है. ‘सुरक्षित शहर’ जैसी पहल स्वागतयोग्य है. इसमें विभिन्न रूटों पर बस सेवा, फर्स्ट टू लास्ट माइल कनेक्टिविटी, रात में अन डिमांड स्टप, निर्बाध शिकायत निवारण प्रणाली और सुरक्षा ऑडिट जैसी सुविधाएं शामिल की गयी हैं. जेंडर संबंधी मुद्दे में बुजुर्गों, गर्भवती और छोटे बच्चों वाली महिलाओं और विकलांग महिलाओं की जरूरतें भी शामिल हैं.

जेंडर बजट बहुत मायने रखता है क्योंकि भारत में महिलाएं देश की आबादी का 48.9 प्रतिशत हैं. ऐसे में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण सुनिश्चित करना बजट की प्रमुख प्रतिबद्धता होनी चाहिए. कई लैंगिक समानता पहलों को कभी भी लागू नहीं किया जाता है, क्योंकि वे बजटीय निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होती हैं. कोविड महामारी ने महिलाओं के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित किया है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों से पता चलता है कि कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 2019-20 में 10.66 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 10.19 प्रतिशत हो गयी. डिजिटल उपकरणों तक पहुंच न होने के कारण लड़कियों की ड्रॉपआउट दर में वृद्धि ने जेंडर गैप को और बढ़ा दिया. लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई. आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने के कारण प्रजनन तथा मातृ स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण में व्यवधान आदि का सामना करना पड़ा.

इससे महिलाओं के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा. ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर आ गया. महिलाओं के जीवन की बेहतरी के लिए सरकार का यह प्रयास सकारात्मक है. यह पूरे देश में महिलाओं को सशक्त करेगा. ‘हर घर-नल’ जैसी योजनाएं हालांकि 2022-23 के जेंडर बजट में शामिल नहीं हैं, फिर भी इनका गरीब महिलाओं पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा. इसलिए, ऐसा समग्र बजट दृष्टिकोण, जो महिलाओं की सभी जरूरतों को पूरा करता है, आगामी वर्षों में निश्चित रूप से महिलाओं की स्थिति को मजबूत करेगा.

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