हर गर्भवती स्त्री को टीका लगाना जरूरी
यह भी है कि गंभीर रूप से संक्रमित स्त्री के उपचार में ऐसी दवाएं देनी पड़ सकती हैं, गर्भावस्था में जिनका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. समय से पहले पैदा हुए शिशुओं की लंबे समय तक देखभाल करनी पड़ती है और उन्हें जीवाणुओं व फंगस के गंभीर संक्रमण होने का अंदेशा रहता है. पहले प्रसव अपने-आप में नवजात शिशुओं की बीमारी और मौत का एक बड़ा कारण है. दूसरी समस्या यह है कि कुछ गर्भवती स्त्रियों को गंभीर संक्रमण की वजह से वेंटीलेशन के साथ गहन चिकित्सा के लिए भर्ती करना पड़ सकता है. उनके मौत का जोखिम बहुत अधिक होता है. ऐसे मामलों के बारे में सभी चिकित्सक एक ही कहानी हमें बताते हैं.
डॉ धन्या धर्मपालन
बाल संक्रामक रोग विशेषज्ञ
डॉ टी जैकब जॉन
वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञ
editor@thebillionpress.org
भारत में कोविड महामारी की पहली लहर के दौरान हमें अहसास नहीं हुआ था कि इस महामारी से गर्भवती स्त्रियों को गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. दूसरी लहर के दौर में हमारे विशेषज्ञ सहकर्मी बता रहे हैं कि कुछ गर्भवती स्त्रियां कोविड संक्रमण से प्रभावित हुई हैं. ऐसी संक्रमित महिलाओं के साथ एक समस्या यह है कि शिशु का जन्म समय से पहले होने की संभावना होती है. कई बार अवधि से पहले प्रसव के बारे में मेडिकल निर्णय की आवश्यकता हो जाती है.
यह भी है कि गंभीर रूप से संक्रमित स्त्री के उपचार में ऐसी दवाएं देनी पड़ सकती हैं, गर्भावस्था में जिनका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. समय से पहले पैदा हुए शिशुओं की लंबे समय तक देखभाल करनी पड़ती है और उन्हें जीवाणुओं व फंगस के गंभीर संक्रमण होने का अंदेशा रहता है. पहले प्रसव अपने-आप में नवजात शिशुओं की बीमारी और मौत का एक बड़ा कारण है. दूसरी समस्या यह है कि कुछ गर्भवती स्त्रियों को गंभीर संक्रमण की वजह से वेंटीलेशन के साथ गहन चिकित्सा के लिए भर्ती करना पड़ सकता है. उनके मौत का जोखिम बहुत अधिक होता है. ऐसे मामलों के बारे में सभी चिकित्सक एक ही कहानी हमें बताते हैं.
अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कोविड से संक्रमित गर्भवती स्त्रियों में असंक्रमित गर्भवती महिलाओं की तुलना में कई तरह की चिकित्सकीय जटिलताएं पायी गयीं. अठारह देशों में हुए अध्ययनों के आधार पर इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संक्रमित गर्भवतियों में मृत्यु दर भी अधिक रही है. जिन देशों में मेडिकल संसाधनों की कमी है, वहां मौतों की तादाद भी ज्यादा देखी गयी.
भारत में दूसरी लहर के दौरान गर्भवती स्त्रियों पर कोरोना वायरस के संक्रमण के असर के बारे में कोई प्रकाशित अध्ययन उपलब्ध नहीं है. ब्राजील में वायरस के गामा वैरिएंट के संक्रमण से पैदा हुई समस्याओं से सैकड़ों गर्भवती स्त्रियों की मौत हुई है. यह वायरस सबसे पहले ब्राजील में ही पाया गया था. दुर्भाग्य से हमारे देश में गर्भावस्था के दौरान कोविड संक्रमण होने से जुड़े पहलुओं पर तथा प्रसव से पहले इस बीमारी से बचाव के उपायों पर न के बराबर चर्चा है.
इस बारे में कोई भ्रम की स्थिति नहीं है कि हमें सभी गर्भवती स्त्रियों को कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाने के लिए तत्काल आवश्यक उपाय करने की आवश्यकता है. सुरक्षा की ऐसी व्यवस्था करने का बेहतरीन तरीका उन स्त्रियों का टीकाकरण है. देशभर में वयस्क आबादी को कोरोना महामारी से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत यह एक नीति है कि गर्भावस्था में महिलाओं को टीके की खुराक न दी जाए.
न केवल इस नीति को बदलने की जरूरत है, बल्कि इसकी अनुमति देने के साथ उच्च प्राथमिकता देकर गर्भवती स्त्रियों के टीकाकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. भारत समेत सभी देशों में टीकों के तीसरे चरण के परीक्षण में स्वैच्छिक भागीदारी की प्रक्रिया से गर्भवती महिलाओं को अलग रखा गया था. उल्लेखनीय है कि इस भागीदारी में गर्भवती महिलाओं को शामिल न करने का फैसला गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा से जुड़ी किसी विशेष चिंता पर आधारित होने के बजाय गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के बारे में उपलब्ध तथ्यों व आंकड़ों की कमी पर आधारित था.
अमेरिका में एक लाख से अधिक गर्भवती स्त्रियों को अच्छे सुरक्षा रिकॉर्ड के वाले फाइजर या मोडेर्ना टीकों की खुराक दी जा चुकी है. ब्रिटेन के स्त्री रोग एवं प्रसूति विशेषज्ञों के रॉयल कॉलेज ने सिफारिश की है कि निर्माण की अलग-अलग वैज्ञानिक प्रक्रिया के कारण ऑक्सफोर्ड-आस्त्राजेनेका की कोविड वैक्सीन की तुलना में फाइजर या मोडेर्ना के टीके गर्भवती स्त्रियों को दिये जाने चाहिए. ऑक्सफोर्ड-आस्त्राजेनेका टीके के मामले में बहुत कम, लेकिन बेहद गंभीर (जानलेवा भी), खतरा खून के थक्के जमने का है, जो अधिकतर महिलाओं में देखा गया है.
एमआरएनए प्रक्रिया से बने टीके अभी भारत में उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन हमारा मानना है कि जो टीके हमारे देश में अभी मुहैया कराये जा रहे हैं, उनमें कोवैक्सीन, जो निष्क्रिय वायरल वैक्सीन है, गर्भवती महिलाओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित हो सकता है. इसकी दोनों खुराकें चार सप्ताह के अंतराल पर दी जा सकती हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण गर्भावस्था में किसी भी समय हो सकता है, इसलिए कभी भी संक्रमण गंभीर भी हो सकता है. इसलिए सुरक्षा की आवश्यकता शुरू से ही है और किसी भी कारण से गर्भवतियों को वैक्सीन देने में कोई देरी नहीं की जानी चाहिए.
नीति-निर्धारकों से हमारी सिफारिश है कि गर्भावस्था में देखभाल की प्रक्रिया के तहत कोविड वैक्सीन की पहली खुराक जितनी जल्दी हो सके, दे देनी चाहिए. दूसरी खुराक देने का समय चार सप्ताह बाद निर्धारित किया जाना चाहिए. गर्भावस्था में जच्चा-बच्चा की देखभाल की नियमित प्रक्रिया में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टेटनस-डिप्थिरिया टॉक्सॉयड (टीडी) वैक्सीन लगाना शामिल है. पहले कभी टेटनस और डिप्थिरिया का टीकाकरण होने के दस्तावेजी सबूत न होने पर इसकी दो खुराकें एक महीने के अंतराल पर दी जाती हैं, विशेषकर पहले गर्भधारण में.
जिनका पहले से टीकाकरण हो चुका है, जैसे- तीन साल के भीतर दूसरे या बाद के गर्भधारण में, उनके लिए टीडी वैक्सीन की एक बूस्टर खुराक पर्याप्त होती है. एक ही समय क्लिनिक जाकर कोविड और टीडी के टीके अलग-अलग जगहों (जैसे दो बाहों पर) पर लगवाये जा सकते हैं. यदि गर्भवती महिला एक ही दिन दो टीके नहीं लेना चाहती है, तो कोविड वैक्सीन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और उसे पहले लगाना चाहिए. दो सप्ताह के अंतराल के बाद टीडी का टीका लगाया जाना चाहिए.
ध्यान रहे, पहले से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहली खुराक लेने के चार सप्ताह बाद कोविड का टीका जरूर लिया जाना चाहिए. कोरोना से मजबूत सुरक्षा दूसरी खुराक लेने के दो सप्ताह बाद ही शुरू होती है. माता और शिशु के लिए टीडी वैक्सीन की सुरक्षा की आवश्यकता प्रसव के बाद होती है, इसलिए टीडी वैक्सीन लेने में कुछ देरी से कोई दिक्कत नहीं है.
गर्भवती महिलाओं को शुरुआती दिनों में टीके देने के बारे में भारत सरकार द्वारा तुरंत नीति की समीक्षा करने और निर्णय लेने की आवश्यकता है. इस बीच जो लोग वैक्सीन की दोनों खुराक लेने तक गर्भधारण को स्थगित कर सकते हैं, उनके लिए इस विकल्प को अपनाने का सुझाव है. घर में कोरोना संक्रमण न आये, इसके लिए गर्भवती महिला के सभी परिजनों को पूरा एहतियात बरतना चाहिए.