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संभव है तीसरी लहर से बचाव

जो भी लहर आये और जब भी आये, जो हमें बचने के लिए करना है, उसमें कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. बचाव के लिए जो कुछ आज कर रहे हैं, वही उपाय हमें आगे भी करना है.

समूचा विश्व एक अनिश्चितता के माहौल से गुजर रहा है. कुछ देशों में टीकाकरण तेजी से हो रहा है, तो कुछ देशों में ऐसे अभियान के बीच में ही कोरोना संक्रमण में बढ़ोतरी की चुनौती सामने आ गयी. भारत में टीकाकरण हो रहा है और पर इस मामले में बहुत सारा काम अभी बाकी है. डेढ़ साल के महामारी के दौर में दुनियाभर में 18 करोड़ के आसपास लोग संक्रमित हुए हैं और करीब 40 लाख लोगों की मौत हुई है. हमारे देश में पहली लहर के दौरान एक दिन में सबसे अधिक मौतों की संख्या 1200 थी, जबकि दूसरी लहर में यह आंकड़ा 4500 से ऊपर रहा.

दूसरी लहर की अत्यधिक संक्रामकता के कई कारण हो सकते हैं. इनमें एक वजह कोरोना वायरस के रूप में बदलाव है. मई में देश के 530 जिलों में रोजाना संक्रमण की संख्या 100 से अधिक थी. संक्रामकता दर औसतन 21 प्रतिशत थी, पर कुछ ऐसे इलाके भी थे, जहां यह आंकड़ा 30-40 प्रतिशत रहा था. अब जो दूसरी लहर बहुत कमजोर हुई है, उसका मुख्य कारण लॉकडाउन जैसी पाबंदियों को लगाना रहा है तथा लोगों ने भी निर्देशों पर अधिक अमल शुरू कर दिया है.

अब जो हमारे सामने वायरस के वैरिएंट हैं, जैसे- डेल्टा, गामा, अल्फा, बीटा आदि- वे पूर्ववर्ती वायरस के म्यूटेंट हैं. किसी भी वायरस में म्यूटेशन होना आम बात है. इन बदलावों में कुछ उसके संक्रमण को बढ़ाने और संक्रमित को गंभीर रूप से बीमार करने का कारण बनते हैं, जिससे वह जल्दी खत्म नहीं होता. डेल्टा के अलावा पहले उल्लिखित सभी वैरिएंट हमारे देश में भी मिले हैं, पर सबसे अधिक संक्रामक अल्फा है, जो सबसे पहले ब्रिटेन में पाया गया था.

महाराष्ट्र में इसमें और म्यूटेशन हुआ, जिसे हम डेल्टा के नाम से जानते हैं. भारत में 28 प्रयोगशालाओं का एक समूह है, जिनमें अब तक 45 हजार ऐसे वायरस नमूनों का अध्ययन हुआ है. डेल्टा वैरिएंट भारत में ही नहीं, अन्य कई देशों में मौजूद है. इसकी खासियत यह है कि इसकी संक्रामकता अधिक हो गयी है. दक्षिण अफ्रीका में पाया गया कि इसने वैक्सीन की क्षमता को कुछ कम कर दिया है. इसके बदले रूप को डेल्टा प्लस का नाम दिया गया है. इस वैरिएंट की टीकारोधी क्षमता के बारे में अभी अध्ययन हो रहे हैं.

दूसरी लहर के दौरान ऐसा कहा गया कि वैज्ञानिकों ने समय रहते ऐसी आपदा के बारे में चेतावनी नहीं दी थी. अब सभी तीसरी लहर की आशंका जता रहे हैं, जिसमें शायद बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. इस कारण चिंता भी अधिक है. हमारे यहां 18 साल से कम आयु के बच्चे आबादी का 40 प्रतिशत हैं. इनके लिए देश में अभी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.

पर तीसरी लहर के आने या न आने को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता क्योंकि इसके लिए बहुत सारी जानकारियों की दरकार है. सो, अभी जतायी जा रही आशंकाएं अटकलें ही हैं. लेकिन, जो भी लहर आये और जब भी आये, जो हमें बचने के लिए करना है, उसमें कोई खास परिवर्तन नहीं आया है. हम संक्रमण से बचे रहने के लिए जो कुछ आज कर रहे हैं, वही उपाय हमें आगे भी करते रहना है. अगर तीसरी लहर आती भी है, तो ऐसा करने से उसका प्रभाव कम-से-कम होगा.

अभी हम जो उपाय अपना रहे हैं, उन्हें चार भागों में बांटा जा सकता है. एक तो यह है कि हमारा व्यवहार कैसा है. क्या हम कोविड-19 से बचाव के लिए सुझाये गये निर्देशों का सही ढंग से पालन कर रहे हैं? इस व्यवहार के तहत जो बातें आती हैं, वे हैं- मास्क लगाना, समुचित दूरी बरतना और नियमित रूप से साबुन या सैनिटाइजर से हाथ साफ करना. इन पर अमल के साथ यह भी बहुत जरूरी है कि हम टीका लगवायें. दूसरी बात यह देखना है कि वायरस के म्यूटेशन का क्या असर टीके पर हो रहा है या हो सकता है.

तीसरी बात, जो ध्यान में रखनी है, वह यह है कि वायरस के विभिन्न रूपों का प्रसार कितना बढ़ता या घटता है. यदि उसका फैलाव बढ़ता है, तो फिर हमें अधिक सतर्क हो जाना चाहिए. चौथी अहम चीज यह है कि हमें टीकाकरण अभियान को तेज करना है. हमें वायरस को कोई भी ऐसा मौका नहीं देना चाहिए कि वह हम पर हमलावर हो सके.

हमें ध्यान रखना चाहिए कि वायरस हर स्थिति में हमारे आसपास है यानी वह घरों में है, सड़कों पर है, भीड़-भाड़ की जगहों में है. हमारा पूरा ध्यान इसे रोकने पर होना चाहिए. अब तक उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह वायरस मुंह, नाक और आंख से शरीर में प्रविष्ट होता है. यदि हम यहां सावधान रहें, तो इसका मतलब यह होगा कि वायरस पर बड़ी रोक लगा दी गयी.

इस संबंध में मास्क, दूरी और सफाई की अहमियत बहुत बढ़ जाती है. जिस भी जगह पर भीड़ अधिक होगी, लोग बड़ी संख्या में जमा होंगे, वायरस की मात्रा भी ज्यादा होगी. अब सवाल यह है कि क्या हम अपने-आप को बाजारों, जुलूसों, धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक आयोजनों में जाने से रोक सकते हैं. अगर जाना भी हो, तो बंद जगहों से परहेज किया जाना चाहिए. ऐसी जगहों पर वायरस अधिक समय तक मौजूद रह सकता है. साथ ही, बचाव के उपायों के मामले में कोई लापरवाही नहीं बरतनी है.

एक बात और हमारे बस में है कि हम अपनी रोधक क्षमता कैसे बेहतर कर सकते हैं. यदि इम्यूनिटी अच्छी होगी, तो वायरस के संक्रमण की स्थिति में भी हमें अधिक परेशानी नहीं होगी. तब गंभीर रूप से बीमार पड़ने और अस्पताल में भर्ती होने की संभावना कम हो जाती है. यह स्थापित तथ्य है कि टीके की दोनों खुराक लेने के बाद संक्रमण होता भी है, तो वह बहुत हल्का असर करता है. इस संबंध में विभिन्न देशों के साथ-साथ भारत में भी कई उदाहरण मिले हैं.

वायरस और उसके प्रसार पर हमारा काबू नहीं है, किंतु हम अपने सतर्क और उचित व्यवहार से अपना बचाव कर सकते हैं. वायरस और महामारी के बारे में अब हमारे पास बेहतर जानकारी और अनुभव है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और केरल में डेल्टा प्लस की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं. पर अभी हमें इस वायरस के बारे अधिक पता नहीं है. इसलिए हमें बेचैन नहीं होना चाहिए. अगर कोरोना वायरस के म्यूटेंट फैलते भी हैं, तो यह हमारे हाथ में है कि हम तीसरी लहर को आने दें या नहीं. अब सब कुछ हमारे व्यवहार और रोधक क्षमता पर निर्भर करता है.

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