प्रेरक और प्रासंगिक दीनदयाल

बड़े पैमाने के उद्योगों पर आधारित विकास, केंद्रीकरण और एकाधिकार के विचारों का विरोध करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने स्वदेशी और विकेंद्रीकरण की वकालत की.

By संपादकीय | February 11, 2022 8:14 AM

“जिस समाज और धर्म की रक्षा के लिए राम ने वनवास सहा, कृष्ण ने अनेक कष्ट उठाये, राणा प्रताप जंगल-जंगल फिरे, शिवाजी ने सर्वस्व अर्पण कर दिया, गुरु गोविंद के बच्चे जीते जी किले की दीवारों में चुने गये, क्या उसकी खातिर हम झूठी आकांक्षाओं का त्याग भी नहीं कर सकते?” ये पंक्तियां पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा अपने मामा को 21 जुलाई,1942 को लिखे एक पत्र का अंश हैं. तब उनकी आयु 26 वर्ष थी. इससे पांच वर्ष पहले वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आये.

युवा दीनदयाल अंग्रेजी शासन के आर्थिक दुष्परिणामों के साथ-साथ उसकी सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत चुनौतियों को भी समझते थे. राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की आवश्यकता पर बल दिया. पंडित दीनदयाल उपाध्याय एकात्म मानव दर्शन के प्रतिपादक के रूप में ख्यात हैं.

उन्होंने राष्ट्र को आक्रांत करनेवाली समस्याओं के अलग-अलग समाधान खोजने के दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया, बल्कि उनकी आकांक्षा एक ऐसे दर्शन का सृजन करने की थी, जो एकात्म दृष्टिकोण के युग का सूत्रपात कर सके. उन्होंने भारत की सभ्यता और सांस्कृतिक लोकाचार की भाषा में राष्ट्रीय विमर्श के प्रचलन पर जोर दिया. वे पश्चिमी विचारों के पक्ष में नहीं थे. उनका मानना था कि पूंजीवाद व साम्यवाद मनुष्य के लोकतांत्रिक अधिकारों के विरुद्ध हैं.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के मुख्य विचार भारतीयता, धर्म, धर्मराज्य और अंत्योदय की उनकी अवधारणाओं में देखे जा सकते हैं. उनका मानना था कि ‘राष्ट्रीय दृष्टिकोण से हमें अपनी संस्कृति पर विचार करना होगा क्योंकि वही हमारी मूल प्रकृति है.’ वे ‘धर्म’ को ‘रिलिजन’ के रूप में व्याख्यायित करने के प्रयास के विरोधी थे. उनके अनुसार, ‘रिलिजन’ का मतलब एक पंथ या एक वर्ग है, जबकि ‘धर्म’ एक व्यापक अवधारणा है तथा जीवन के सभी पहलुओं के साथ संबद्ध है.

’धर्मराज्य’ का वर्णन करते समय वे राज्य को राष्ट्र के भीतर एक घटक मानते हैं, राज्य के ऊपर नहीं. ऐसा करते हुए उनका इरादा समाज या लोकतंत्र में राज्य के महत्व को कम करना नहीं था, बल्कि समाज और राष्ट्र के बहुलतावादी चरित्र पर जोर देने का प्रयास है. अंत्योदय हालांकि गांधीवादी शब्दकोश से संबंधित शब्द है, जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों में अंतर्निहित है.

आर्थिक लोकतंत्र के अपने विचार की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं, ‘अगर हर किसी के लिए एक वोट राजनीतिक लोकतंत्र का पारस पत्थर है, तो हर किसी के लिए काम आर्थिक लोकतंत्र का एक सिद्धांत है. इस काम के अधिकार का मतलब दास श्रम नहीं है, जैसा कि साम्यवादी देशों में माना जाता है.’

बड़े पैमाने के उद्योगों पर आधारित विकास, केंद्रीकरण और एकाधिकार के विचारों का विरोध करते हुए उन्होंने स्वदेशी और विकेंद्रीकरण की वकालत की. उन्होंने महसूस किया है कि भारत के लिए मार्ग स्वरोजगार से होकर निकलता है, जिसमें अधिकतम उत्पादन अधिकतम हाथों को रोजगार देकर किया जा सकता है. वे एकात्म ग्राम के पक्के समर्थक थे.

स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, तिलक, गोखले, गांधी जैसे महान विचारकों ने औपनिवेशिक युग में देश को नेतृत्व प्रदान किया, तो डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, डॉ राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने स्वातंत्र्योत्तर काल में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए नये कार्यक्रमों की कल्पना की और लोगों को संगठित किया. सुशासन और विकास के विचार को भारतीय वास्तविकता के संदर्भ में अवधारित करने की आवश्यकता है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के वैचारिक ढांचे में भारतीय राजनीति के आध्यात्मीकरण के साथ ग्राम स्वराज की स्थापना के माध्यम से विकेंद्रीकरण तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समाज के पुनरोद्धार पर जोर दिया गया है. वे गरीबों में सबसे गरीब के लिए सबसे अधिक चिंता दिखाते हैं तथा खुद को सर्वोदय और अंत्योदय के लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध करते हैं.

उनकी दृष्टि ‘सहभागी लोकतंत्र’ की है, जिसमें प्रमुख रूप में दक्षता व प्रभावशीलता के साथ पारदर्शिता, जिम्मेदारी और जवाबदेही मौलिक तत्व हैं. वास्तव में ये तत्व भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक लोकाचार और परंपराओं के आवश्यक घटक हैं, जो संस्कृति, समाज और राज्य के प्रमुख सिद्धांतों के रूप में मान्य हैं.

वर्तमान में जब आपा-धापी और प्रतिस्पर्द्धा की चुनौतियों के बीच युवाओं के मौलिक विकास एवं उन्हें स्वतंत्र भारत के सांस्कृतिक स्तंभ के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की जाती है, तब दीनदयाल जी का व्यक्तित्व एक आदर्श के रूप में सामने आता है. राजनीति में गंभीर, विचारशील, सिद्धांतवादी एवं ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता एवं राजनेता होने का जो उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किया, उससे युवा वर्ग प्रेरित होता रहेगा. आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उनके सुझाये समाधान के मार्ग के अनुरूप सरकार द्वारा उठाये गये कदमों से भारत की तस्वीर बदलने लगी है. ऐसे समय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार मार्गदर्शक बनकर युवाओं का पथ प्रशस्त कर रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version