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चुनाव में महिलाओं के मुद्दे

लगता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं के मुद्दे से जुड़े सपने 1990 के ही हैं या पार्टियां हमें यही सपने दिखाना चाह रही हैं.

पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा एवं मणिपुर- में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं. राजनीतिक पार्टियां पूरी तैयारी के साथ मैदान में हैं. साफ-सुथरी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग भी दमखम के साथ सक्रिय है. कोरोना की वजह से इस बार बड़ी-बड़ी रैलियां कम देखने को मिल रही हैं. गनीमत है कि इस बार चुनाव आयोग ने थोड़ी सख्ती दिखायी है, नहीं तो नेता नहीं माननेवाले थे.

खैर, चुनाव हैं, तो मुद्दे भी हैं. वायदे हैं, फायदे हैं और हैं बड़े-बड़े सपने. कुछ समय पहले रेडियो पर एक वरिष्ठ पत्रकार का चुनावी विश्लेषण सुना था. उसमें उन्होंने एक बात यह कही थी, ‘भारतीय चुनाव सपने दिखाने और सपने बेचने का मौका है. जो दल, जो नेता बड़े-बड़े सपने जनता को दिखा देता है, वह जीत जाता है.’ यह बात मेरे मन में घर कर गयी. उनकी बात सही भी है.

आप रैलियों में कही गयीं बड़ी बातों के बाद का असर खुद एक बार याद कर देख लीजिये, आपको भी भरोसा हो जायेगा. अब जब चुनाव सपने बेचने का एक बड़ा मेला है, ठीक वैसा ही मेला, जो गांव-देहात में कुछ खास मौकों पर लगता है, तो यह बात भी की जानी चाहिए कि इस मेले में सपने क्या हैं? वे कौन से सपने हैं, जो पार्टियां इस बार बेचने की कोशिश कर रही हैं? उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर के विधानसभा चुनाव में इन राज्यों की महिलाओं और लड़कियों के लिए क्या सपने हैं? मैं इन्हें सपना कह रही हूं, आप इन्हें मुद्दे समझिये. मेरे लिए चुनावी मुद्दे सपने सरीखे ही हैं.

तो क्या सपने हैं? क्या अपने हैं? आपने इस बारे में कुछ सोचा, देखा या पढ़ा? मैंने कोशिश की, लेकिन मुझे कुछ खास दिखा नहीं. जो दिखा, वह यही कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि वह टिकट बंटवारे में महिलाओं को 40 फीसदी का आरक्षण देगी. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बाल विवाह निषेध कानून में लड़कियों के विवाह की वैधानिक उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का संशोधन विधेयक प्रस्तावित किया है.

भाजपा को लगता है कि वह इस मुद्दे से महिलाओं को अपने पाले में कर सकती है. गोवा चुनाव की बात करें, तो वहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी महिलाओं को नौकरियों में 30 फीसदी आरक्षण देने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ने वादा किया है कि चुनाव के बाद अगर उसकी सरकार बनती है, तो गोवा में वह ‘गृहलक्ष्मी कार्ड योजना’ शुरू करेगी. इस योजना के तहत गोवा की महिलाओं को प्रत्येक महीने 5000 रुपये की वित्तीय सहायता दी जायेगी.

इस आपाधापी में आम आदमी पार्टी भी पीछे न रहते हुए यह वादा किया है कि अगर उसकी सरकार बनती है, तो गोवा की महिलाओं को हर माह 1000 रुपये की वित्तीय सहायता मिलेगी. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने महिलाओं से यही वित्तीय सहायता राशि देने का वादा किया है. चुनावी राजनीति के जानकारों का मानना है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी को इस चुनावी शिगूफे से फायदा पहुंच सकता है. महिलाओं के संदर्भ में इन कुछ वादों के अलावा चुनावी परिदृश्य में मुझे कुछ और नहीं दिखा.

अब अगर इन्हीं कुछ सपनों की बात करें, जो हमारे लिये आरक्षित किये गये हैं. अगर इन पांच राज्यों के चुनावी माहौल में महिलाओं और लड़कियों के लिए इतना कुछ ही है, तो फिर साफ-साफ समझ आता है कि हमारी-आपकी औकात क्या है, हम इस पूरे तंत्र में कितनी भागीदारी रखती हैं और इन पार्टियों को हमारी-आपकी कितनी चिंता है. यदि हमारे नेता वाकई लड़कियों की चिंता करते, कामकाजी महिलाओं को लेकर फिक्रमंद होते, तो सुरक्षा को लेकर कुछ सपने दिखाते, झूठा ही सही.

बताने के लिए ही सही, लेकिन यह बताते कि स्कूल की आखिरी परीक्षा में टॉप करनेवाली लड़कियों में से कई लड़कियां कॉलेज तक क्यों नहीं पहुंचती हैं? और, अगर उनकी सरकार बनेगी, तो वो इस बारे में क्या करेंगे? महिलाओं की एक बड़ी आबादी आज भी बच्चा जनते समय मर जाती है, अगर वे सरकार में आते हैं, तो इन महिलाओं के लिए क्या करेंगे? कुपोषित महिलाओं और बच्चों के लिए उनके पास क्या योजना है?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किये गये थे. मैं भले 2022 में कुछ साल पहले के तथ्य यहां उल्लिखित कर रही हूं, लेकिन ऐसा इसलिए कि जब सभी पार्टियां अपनी नीति की आगामी ‘मंचीय’ योजना बना रही थीं, तो ऐसे मामलों तथा संबंधित स्थितियों को समझने-बुझने के बाद उन्होंने कुछ करने के लिए सोचा था क्या?

कहने का मतलब यह है कि टिकट में आरक्षण देना, आने-जाने के लिए मुफ्त बस टिकट और भत्ता देने का वायदा करना ठीक है, लेकिन यह ठोस नहीं है. पार्टियों को अब गैस चूल्हा, मुफ्त भत्ता और मां-ममता जैसी योजनाओं से आगे बढ़ना चाहिए. पर लगता है कि 2022 में भी महिलाओं के मुद्दे से जुड़े सपने 1990 के ही हैं या पार्टियां हमें यही सपने दिखाना चाह रही हैं. क्या आधी आबादी की औकात इतनी ही है?

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