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मध्य एशिया से बेहतर होते रिश्ते

कैस्पियन सागर से लेकर चीन तक मध्य एशिया का बड़ा रणनीतिक महत्व है और भू-राजनीति में इनकी उल्लेखनीय भूमिका रहती है

पांच मध्य एशियाई देशों- कजाखिस्तान, किर्गिज रिपब्लिक, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान- के विदेश मंत्रियों के साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की बैठक कई मायनों में अहम है. साल 2018 से शुरू हुए भारत-मध्य एशिया संवाद की बैठक का यह तीसरा संस्करण है. ये सभी देश संप्रभु हैं और इनके साथ भारत के अच्छे द्विपक्षीय संबंध भी हैं, लेकिन अपनी विदेशनीति के तहत हम इस इन देशों को एक क्षेत्र-विशेष के रूप में देखते हैं.

हम जानते हैं कि विदेश नीति एक निरंतरता में संचालित होती है और समय-समय पर मुद्दों को लेकर जोर में अंतर आता है. नब्बे के दशक के शुरू में सोवियत संघ के विघटन के बाद स्वतंत्र हुए इन पांच देशों देशों से हमारे संबंध पहले से ही रहे हैं. उस समय की हमारी आर्थिक स्थिति और उदारीकरण की शुरुआत के कारण हम तुरंत कुछ असर नहीं डाल सके थे, पर मध्य एशिया से निकटता का अहसास हमारी विदेश नीति में हमेशा रहा है.

अतिथि विदेश मंत्रियों के साथ मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस अहसास को रेखांकित करते हुए मध्य एशिया को भारत का ‘विस्तृत पड़ोस’ कहा है. ‘विस्तृत पड़ोस’ में मध्य एशियाई देशों के साथ ईरान भी आता है. इनके साथ भू-राजनीति और आर्थिक संबंधों के साथ संस्कृति, इतिहास और विरासत के पहलू भी जुड़ जाते हैं.

इक्कीसवीं सदी में हमारी विदेश नीति में अनेक महत्वपूर्ण आयाम जुड़े हैं. वर्ष 2012 में ‘मध्य एशिया कनेक्ट’ की पहल हुई थी, जिसमें आवागमन बढ़ाने तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को विस्तारित करने के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया था. इसके तहत मध्य एशिया से भारत तक पाइपलाइन बिछाने की योजना बनी थी. उस समझ के अनुसार तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन बनाने पर सहमति बनी थी. इस पाइपलाइन पर 2015 से काम होना शुरू हुआ और उम्मीद है कि यह जल्द ही कार्यरत हो जायेगी.

मोदी सरकार के आने के बाद हमारी विदेश नीति की अवधारणाओं में अनेक बदलाव हुए हैं. ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ बनाया गया, जिसमें दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया गया है. इसी प्रकार मध्य एशिया को उत्तर के साथ भारत को मजबूती से जोड़ने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया. इसका आधार यह था कि हमें पश्चिम और पूर्व की ओर ही नहीं, बल्कि उत्तर की ओर भी देखना चाहिए. अभी तक उत्तर की ओर देखने का मतलब केवल रूस की ओर देखना था.

कैस्पियन सागर से लेकर चीन तक मध्य एशिया का बड़ा रणनीतिक महत्व है और भू-राजनीति में इनकी उल्लेखनीय भूमिका रहती है. संसाधनों, खासकर ऊर्जा स्रोतों के लिहाज से भी ये देश अहम हैं. इन देशों के साथ हमारा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध तो रहा है, अब उसे आर्थिक क्षेत्र में विस्तार देने का प्रयास हो रहा है. इस पृष्ठभूमि में हमें वर्तमान पहलों को देखना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी 2015 में जब मध्य एशियाई देशों की यात्रा पर गये थे, तब उन्होंने वह दौरा मंगोलिया से शुरू किया था.

फिर उन्होंने एक साथ पांच मध्य एशियाई देशों की यात्रा की थी. स्पष्ट है कि हम मध्य एशिया को देखते हैं. हालांकि उन देशों में कई मसलों पर आपसी तनातनी होती रहती है, पर वे सभी हमारे लिए समान महत्व रखते हैं. उस दौरे का एक महत्व यह भी रहा है कि मंगोलिया भी उत्तर की ओर देखने की हमारी नीति का भाग बन गया है. पारंपरिक रूप से मंगोलिया की नीति दो देशों- रूस और चीन- के आयाम से संचालित रही है. उसे हम मध्य एशिया के संपर्क के सहारे तीन देशों के आयाम में बदलना चाहते है.

वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अफगानिस्तान की स्थितियां और उसकी स्थिरता के प्रश्न बहुत अहम है. इस बैठक में इस मामले पर विस्तार से चर्चा हुई है और यह समझ बनी है कि मध्य एशियाई देश और भारत मिलकर संबंधित चिंताओं का समाधान करने में सहयोग करेंगे. जब भी संपर्क और सहयोग बढ़ाने की बातें होती हैं, तो पाकिस्तान का आयाम भी आ जाता है.

तापी परियोजना से पहले ईरान से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत तक पाइपलाइन लाने की योजना बनी थी, जो पाकिस्तान के अड़ंगों के कारण साकार नहीं हो सकी. लेकिन यह भी है कि आर्थिक आयामों को देखते हुए सुरक्षा चुनौतियों के साथ संतुलन बनाना पड़ता है. वैश्विक राजनीति में आज आर्थिक मामले अग्रणी कारक होते हैं.

ईरान से पाइपलाइन लाने की परियोजना सुरक्षा चिंताओं में उलझ गयी, पर तापी परियोजना पर सकारात्मक प्रगति हो रही है क्योंकि मध्य एशिया से संपर्क बेहतर करना हमारी प्राथमिकताओं में है. अगर हम हर चीज को सुरक्षा की दृष्टि से ही देखने लगेंगे, तो मध्य एशियाई देशों से संसाधनों की आपूर्ति हमें नहीं होगी, पर वे देश पाकिस्तान को तो देंगे.

चाबहार बंदरगाह भी मध्य एशिया समेत यूरेशिया से जुड़ने का एक माध्यम है, लेकिन उसकी प्रगति विभिन्न कारणों से धीमी है. पर हमारे लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र है. तीन-चार वर्षों से उस क्षेत्र से जुड़ने के लिए उत्तर-दक्षिण व्यापारिक गलियारा पर भी काम चल रहा है. मुंबई से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग तक जानेवाले इस गलियारे में भी मध्य एशियाई देशों की अहम भूमिका होगी.

इस प्रकार ‘मध्य एशिया कनेक्ट’ प्रक्रिया में पाइपलाइन, सड़कें, बंदरगाह आदि विभिन्न माध्यमों से जुड़ाव की कोशिशें चल रही हैं. मध्य एशिया को निवेश और तकनीक की और भारत को ऊर्जा संसाधनों की आवश्यकता है. ये कोशिशें चीन द्वारा संचालित बेल्ट-रोड परियोजना के समानांतर व्यवस्था का विस्तार करने की क्षमता रखती हैं. चीन मध्य एशिया का पड़ोसी है और ये देश उसके दबाव में भी रहते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन देशों का समर्थन भारत को मिलता रहा है.

वे भी चीन को संतुलित करने के लिए एक भरोसेमंद देश का साथ चाहते हैं. ‘विस्तृत पड़ोस’ की संज्ञा देकर प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य एशिया के महत्व को रेखांकित किया है. भारत ने इन देशों को एक अरब डॉलर भी मुहैया कराया है. दिल्ली की सालाना बैठक के बाद गणतंत्र दिवस के अवसर पर मध्य एशिया के पांच देशों के राष्ट्राध्यक्ष हमारे मुख्य अतिथि होंगे. आगामी बैठक में संबंधों और बेहतर होंगे.(बातचीत पर आधारित).

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