भारत में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संरचना पर ठोस ध्यान देने की जरूरत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्थापित मानक के अनुसार प्रति एक हजार लोगों के लिए कम से कम एक डॉक्टर होना चाहिए. भारत में यह अनुपात अभी केवल 0.74 है. हमारे यहां 157 नये मेडिकल कॉलेज खुले हैं तथा लगभग 84 हजार के आसपास कुल मेडिकल सीटें हैं. अगर हम देखें, तो पिछले साल 16 लाख बच्चे नीट की परीक्षा में शामिल हुए थे.
इस परीक्षा के माध्यम से मात्र 84 हजार सीटों पर प्रवेश होता है. इनमें आधी सीटें ऐसी हैं, जिन पर सरकारी कॉलेजों में एडमिशन होता है. वहां अपेक्षाकृत फीस कम होती है, लेकिन अन्य सीटों पर प्रवेश के लिए फीस बहुत ज्यादा है. अब 84 हजार में से 42 हजार सीटों पर मेडिकल की पढ़ाई का खर्च अधिक है.
सभी छात्र उसे दे पाने में सक्षम नहीं होते. एनआरआई सीटों पर फीस काफी ज्यादा होती है. भारत में मेडिकल की पढ़ाई का खर्च 60 लाख से लेकर 1.20 करोड़ रुपये तक होता है. अगर एनआरआई सीट या प्राइवेट कॉलेज है, तो खर्च और भी ज्यादा हो सकता है. एनआरआई प्रायोजित सीट भी हो सकती है.
हमारे देश में चिकित्सकों की समुचित संख्या हासिल करने की दिशा में हो रहे प्रयास पर्याप्त नहीं है. भले ही 157 नये मेडिकल कॉलेज आये हैं, लेकिन यह संख्या हमारी आबादी की जरूरत के हिसाब से काफी कम है. बढ़ती आबादी को देखते हुए अगर हम लगातार नये मेडिकल कॉलेज स्थापित करते हैं, तब हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक को हासिल कर सकते हैं.
ऐसा नहीं होता है, तब पढ़ाई पर दबाव बना रहेगा और अपेक्षित संख्या में डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं होंगे. जरूरत के उस अंतराल को भरने के लिए हमारे छात्र अन्य देशों का रुख करते हैं. बाहर जाने का एक कारण यह भी है कि भारत में आपको मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नीट की परीक्षा देनी होती है, जबकि यूक्रेन या किसी अन्य देश में ऐसी किसी प्रवेश परीक्षा की बाध्यता नहीं है.
यूक्रेन समेत अनेक देशों में शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी में है, तो छात्रों को नयी भाषा सीखने की जरूरत नहीं है. इससे भी आसानी हो जाती है और छात्र की पूरी पढ़ाई 25 से 30 लाख में पूरी हो जाती है. इसके बाद फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट के लिए एक टेस्ट होता है, जो उन्हें यहां आकर पास करना होता है. उसका अनुपात तो अभी बहुत कम है. एक प्रस्ताव यह भी है कि यह यूनिफॉर्म टेस्ट होगा.
उससे स्पष्ट होगा कि हमारे यहां प्राइवेट कॉलेज किस स्तर की शिक्षा देते हैं. कुल मिला कर यूक्रेन आदि देशों में मेडिकल एजुकेशन के लिए जाने का मकसद अपेक्षाकृत सस्ती पढ़ाई है. अगर हम अपने यहां सीटों को बढ़ाएं, तो उससे हालात कुछ हद तक बदल सकते हैं. इंजीनियरिंग सीटों में ऐसी स्थिति नहीं है.
अगर मेडिकल शिक्षा में आवश्यकता अनुरूप सुधार नहीं होता है, तो पर्याप्त डॉक्टरों और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर चिंताएं बरकरार रहेंगी. जिन देशों में सस्ती मेडिकल शिक्षा उपलब्ध हैं, जाहिर-सी बात है कि लोग वहां का रुख करेंगे. सीमित बुनियादी ढांचे में आप सीटों को नहीं बढ़ा सकते हैं. इसके लिए पहले बुनियादी व्यवस्था तैयार करनी होगी. आप जो नये मेडिकल कॉलेज खोलेंगे या जो पहले से मौजूद हैं, उनमें व्यवस्थागत सुधार करना होगा.
जहां सौ सीटों की व्यवस्था है, वहां 200 या 400 तो नहीं कर सकते. प्रयोगशालाओं में काम करने के लिए जिस माहौल और सुविधा की दरकार होती है, उसे भी ध्यान में रखना होता है. सबसे अधिक जरूरी है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी उपलब्ध कराने पर जोर हो. केवल कॉलेजों की भरमार नहीं होनी चाहिए.
स्वास्थ्य एक अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है, उसमें आप किसी भी तरह का खिलवाड़ नहीं कर सकते. आपको देखना होगा कि जब कॉलेजों को अनुमति दे रहे हैं या नये कॉलेज बना रहे हैं, तो उनका इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर हो. यदि हम इन बातों का ध्यान रखते हुए हर साल पांच से दस नये मेडिकल कॉलेज खोलें, तो वर्तमान अंतराल को भरना संभव हो सकेगा.
फीस की संरचना सीटों की उपलब्धता पर निर्भर होती है. अगर आपके पास ज्यादा सीटें हैं, तो उससे फीस कम हो जाती है. यहां मांग और आपूर्ति के फार्मूले को समझने की जरूरत है. जैसा पहले उल्लेख किया गया कि अभी 16 लाख बच्चे मेडिकल की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा में शामिल होते हैं, लेकिन उनके लिए मात्र 84 हजार सीटें ही उपलब्ध हैं.
अगर सीटों की संख्या में बढ़ोतरी होती है, तो कुछ और छात्रों के लिए मौके बन जायेंगे. इससे मेडिकल शिक्षा थोड़ी सस्ती हो जायेगी और बाहर जानेवाले छात्रों की संख्या भी घटेगी. बाहर पढ़ कर देश आनेवाले छात्रों में से 20 से 25 प्रतिशत बच्चे मेडिकल प्रैक्टिस की परीक्षा पास कर पाते हैं.
साल 2019 करीब 35 हजार छात्रों ने यह परीक्षा दी थी. उसमें से लगभग 10 हजार बच्चे पास हुए थे. स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने की जरूरत है. बीते कई सालों में स्वास्थ्य अवसंरचना को लेकर प्रगति हुई है. इससे जीवन प्रत्याशा बढ़ी है, लेकिन स्वास्थ्य ढांचे को लगातार बेहतर करने की आवश्यकता है.