वस्त्र उद्योग में गुणवत्ता को प्रोत्साहन
पीएलआइ योजना अभी वस्त्र उद्योग के लिए घोषित किया है. यह उद्योग तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है. आगे इसकी मांग बहुत तेजी से बढ़ेगी.
आम तौर पर उद्योगों के लिए जो प्रोत्साहन योजनाएं आती रही हैं, या तो वे निर्यात से जुड़ी रही हैं या फिर निवेश से. उन योजनाओं में करों आदि पर कुछ छूट दिया जाता था. उनके साथ एक दुविधा यह थी कि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार देशों को अपने निर्यात को अनुदान देने की अनुमति नहीं है. अगर आप निर्यात के प्रदर्शन के आधार पर छूट या पैसे देते हैं, तो उसे अनुदान माना जाता है.
भारत के ऊपर ऐसे अनुदानों को न देने का दबाव था. दूसरी बात यह है कि जो निवेश आधारित योजनाएं थीं, उनमें देखा गया कि विभिन्न राज्यों, खासकर पहाड़ी राज्यों, में छूट और अनुदान लेने के लिए उद्योग तो स्थापित होते थे, पर कुछ समय बाद उन्हें बंद कर दिया जाता था. ऐसे में उस राज्य के लिए सतत विकास और रोजगार जैसे लक्ष्य पूरे नहीं हो पाते थे. इन दोनों समस्याओं के समाधान के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) स्कीम लायी गयी है, ताकि विश्व व्यापार संगठन में भी सवाल न खड़े हों और ऐसा भी नहीं हो कि केवल निवेश से थोड़ा-बहुत हासिल होने की संभावना हो.
पीएलआइ योजना उत्पादन से जुड़ी हुई है और इसमें गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण तत्व है. अभी इसे वस्त्र उद्योग के लिए घोषित किया है और इसके लिए 10,683 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. एक दर्जन अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी योजनाएं आनेवाली हैं, जिनके लिए बजट में 1.97 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इस पहल के पीछे सोच यह है कि जो उत्पादन हो, वह विश्वस्तरीय हो ताकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसकी जगह बन सके.
इसमें उत्पादित वस्तु के मूल्य और बिक्री को भी एक निर्धारक बनाया गया. सतही उत्पादों को इस योजना से बाहर रखने के लिए ऐसा किया गया है. जाहिर है कि गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बहुत सस्ते में नहीं बनाये और बेचे जा सकते हैं. अगर ऐसा उत्पाद घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बिक रहा है, तो उसे प्रोत्साहन दिया जायेगा. खुले बाजार व्यवस्था में घरेलू बाजार भी चीन, वियतनाम, बांग्लादेश आदि देशों से आयातित कपड़ों के साथ भी भारतीय उत्पादकों की प्रतिस्पर्धा है और इसमें भी विश्वस्तरीय गुणवत्ता के आधार पर ही उन उत्पादों को चुनौती दी जा सकती है.
इस योजना में यह भी प्रावधान है कि उद्योग का आकार भी ठीक हो. एकदम छोटे उद्यमों को इस योजना की सुविधा नहीं होगी. जो उद्यम फैब्रिक या टेक्निकल टेक्स्टाइल बनाने के लिए कम-से-कम 300 करोड़ रुपये का निवेश करेगा, वही इस योजना में शामिल हो सकेगा. यह प्रावधान पहले चरण की पहल के लिए है. दूसरे चरण में न्यूनतम निवेश की सीमा 100 करोड़ रुपये होगी.
कुछ लोग इसकी आलोचना यह कहकर कर सकते हैं कि इससे छोटे और मझोले उद्यमों को फायदा नहीं होगा, लेकिन इस योजना का उद्देश्य ही अत्याधुनिक तकनीक और बेहतर कौशल पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करना है, जो उम्दा स्तर का उत्पादन कर सकें. यदि भारतीय उत्पादों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना है, तो निश्चित ही हमें बड़े और आधुनिक उद्यमों पर ध्यान देना होगा. टेकस्टाइल के अलावा जिन अन्य क्षेत्रों में पीएलआइ योजना लागू होनी हैं, उनमें मोबाइल निर्माण, सौर ऊर्जा के लिए बैटरी आदि, दवा उद्योग आदि शामिल हैं.
टेक्स्टाइल क्षेत्र में भी यह विशेष कपड़ों और तकनीकी टेक्स्टाइल के उत्पादन के लिए दिया गया है. तकनीकी या औद्योगिक टेकस्टाइल तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है. आगे इसकी मांग बहुत बढ़ेगी. इसके अलावा पहनने के कपड़ों में भी कुछ खास तरह के कपड़ों, जैसे- एंटी-रिंकल (जिन्हें इस्तरी करने की आवश्यकता नहीं होती), खेल के कपड़े आदि, को प्रोत्साहन दिया जा रहा है.
जो आज फाइबर उत्पादित हो रहा है, उसके बहुत तरह के उपयोग हैं. इन्हें अलग-अलग चीजों के मिश्रण से तैयार किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, खिलाड़ियों के लिए ऐसे कपड़ों की मांग बढ़ रही है, जो पसीना सोख सके या विशेष परिस्थितियों के लिए पोशाक आदि के लिए विभिन्न फाइबरों की जरूरत होती है.
ऐसे कपड़ों को सस्ते और छोटे संयंत्रों में नहीं बनाया जा सकता है. इसमें इसीलिए बड़े निवेश की आवश्यकता है क्योंकि तकनीक लाने और कुशल कामगारों के प्रशिक्षण आदि में खर्च भी बहुत अधिक है. अगर भारत को औद्योगिक टेक्स्टाइल और इस क्षेत्र में नवोन्मेष को बढ़ावा देना है तथा चीन, वियतनाम जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करानी है, तो हमें ऐसे बड़े उद्योगों की भी आवश्यकता है और सरकार से उन्हें सहयोग भी मिलना चाहिए.
दूसरे चरण में भी जो 100 करोड़ रुपये के निवेश की सीमा है, वह कम नहीं है. टेकस्टाइल के अलावा भी जिन क्षेत्रों में उत्पादन से जोड़कर प्रोत्साहन सहयोग दिया जाना है, उनमें भी ऐसी शर्तें रखी गयी हैं. पीएलआइ स्कीम के पीछे मूल विचार यही है कि भारत में अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित बड़े उद्योगों का विस्तार हो और ऐसे उत्पाद बनें, जो दुनियाभर के बाजारों में अपने लिए मांग पैदा कर सकें. भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने, देश को मैनुफैक्चरिंग हब बनाने, निर्यात का दायरा बड़ा करने जैसे हमारे इरादों को देखते हुए पीएलआइ स्कीम आवश्यक और सराहनीय है.
इसे लाने का समय भी उचित है क्योंकि विश्वभर की बड़ी कंपनियां उत्पादन के लिए चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रही हैं और भारत उनके लिए एक अहम पड़ाव हो सकता है. (बातचीत पर आधारित)