स्पेस सेक्टर में आर्थिक संभावनाएं
अंतरिक्ष क्षेत्र में दशकों के हमारे व्यापक अनुभव और अब तक की उपलब्धियों से वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने का हमें बड़ा आधार मिल सकता है.
अंतरिक्ष क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय बाजार के विस्तार को देखते हुए अपनी भागीदारी बढ़ाने की भारत की कोशिशें सराहनीय हैं. इस क्षेत्र में दशकों के हमारे व्यापक अनुभव और अब तक की उपलब्धियों से इन प्रयासों को बड़ा आधार मिल सकता है. स्पेस सेक्टर को दो हिस्सों- अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम- में बांट कर देखा जा सकता है. अपस्ट्रीम भाग में मुख्य रूप से मैनुफैक्चरिंग गतिविधियां, जैसे- सैटेलाइट बनाना, प्रक्षेपण वाहन का निर्माण, संबंधित कल-पूर्जे तैयार करना, उप-तंत्रों का निर्माण आदि आते हैं.
डाउनस्ट्रीम हिस्से में सेवाओं को गिना जाता है, मसलन- सैटेलाइट टीवी, दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग, जीपीएस, इमेजरी आदि. अभी मुख्य रूप से डाउनस्ट्रीम के हिस्से पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, लेकिन प्रक्षेपण आदि भी नजर में हैं. इसकी वजह यह है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पास मैनुफैक्चरिंग को प्राथमिकता देने के लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध नहीं है.
अगर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखें, तो बजट और आवंटन में कमी के रुझान हैं. सरकार की नीति है कि सैटेलाइट दूरसंचार, रिमोट सेंसिंग आदि सेवा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी और निवेश को प्रोत्साहित किया जाए और वे इसरो के साथ मिलकर वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी में वृद्धि करें.
ऐसे प्रयासों से इसरो के पास जो धन आयेगा, उससे निर्माण और प्रक्षेपण में भी स्थिति मजबूत करने की स्थिति बनेगी. हमारे देश में स्पेस उद्योग में जो स्टार्टअप आये हैं या आ रहे हैं, उन्हें ऐसी गतिविधियों में उल्लेखनीय क्षमता हासिल करने में समय लगेगा. इसलिए इस मामले में इसरो की बढ़त बहुत अधिक है. लेकिन उपभोक्ता सेवाओं, जो बहुत उच्च स्तरीय हैं और उनकी मांग बढ़ती जा रही है, में नीतिगत पहल और निजी क्षेत्र की भागीदारी के अच्छे परिणाम निकल सकते हैं.
एक संभावना उन साजो-सामान की आपूर्ति में हैं, जो धरती पर प्रक्षेपण और सैटेलाइट मॉनीटरिंग, डाटा विश्लेषण आदि से जुड़े हैं, जैसे- नेटवर्क, नियंत्रण कक्ष, डिश, टर्मिनल, डिजिटल रेडियो, नेविगेशन आदि के हार्डवेयर. बहुत संभावना है कि इनमें निजी क्षेत्र के आने से बाजार में जगह बनाने में मदद मिलेगी. फिलहाल 447 अरब डॉलर के आसपास का स्पेस उद्योग का बाजार है, लेकिन इस क्षेत्र के हमारी स्टार्टअप कंपनियों का निवेश 20-22 मिलियन डॉलर का ही है. लेकिन इस आंकड़े से निराशाजनक निष्कर्ष निकालने की हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए.
अभी तो इस महामारी के दौर में इन कंपनियों का विस्तार शुरू हुआ है. आनेवाले समय में निश्चित रूप से निवेश में बढ़ोतरी होगी. वैश्विक बाजार में भारत की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास में सरकार को कुछ कानूनों प्रावधानों तथा नियामक बनाने के आयामों पर भी ध्यान देना होगा. अभी तक स्पेस सेक्टर निजी क्षेत्र के लिए इसलिए नहीं खुला था क्योंकि इसका सीधा संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ था.
इसरो के सैटेलाइटों और अन्य सेवाओं का इस्तेमाल तो रक्षा क्षेत्र द्वारा भी किया जाता है. भू-राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा करना जरूरी भी है. इस मामले को व्यावसायिक विस्तार की पहल से कैसे अलग किया जायेगा, इस पर विचार होना चाहिए. यह एक कानूनी सवाल है.
साल 2017 में सरकार ने अंतरिक्ष गतिविधियों पर एक विधेयक का प्रारूप प्रस्तुत किया था. उसे अभी तक संसद में नहीं लाया गया है. अब इसे कानूनी रूप दे दिया जाना चाहिए क्योंकि स्पेस सेक्टर को खोला जा रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा यह बात भी रेखांकित की जानी चाहिए कि व्यापार बढ़ने के साथ अन्य क्षेत्रों की तरह इसमें भी विवाद होंगे. उनके निपटारे के लिए कानूनी आधार होना चाहिए. अन्य क्षेत्रों में नियामक या प्राधिकरण भी बने हुए हैं, जो उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखते हैं तथा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं.
ऐसी ठोस व्यवस्था की आवश्यकता अंतरिक्ष क्षेत्र में भी होगी. यह करना मुश्किल नहीं है क्योंकि सरकार ने कुछ अहम हिस्सों को छोड़कर रक्षा क्षेत्र में भी निजी और विदेशी निवेश को आमंत्रित किया है. उसके नियमों और रूप-रेखा से स्पेस सेक्टर के लिए भी व्यवस्था की जा सकती है. भारत अंतरिक्ष सुरक्षा के क्षेत्र में भी सक्रिय है. स्पेस कारोबार में उस पहलू को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.
निश्चित रूप से सरकार की पहल से संभावनाओं के द्वारा खुलेंगे और तकनीक व निवेश का विस्तार होगा. इसके साथ, रोजगार के मौके भी बनेंगे. लेकिन अनेक विश्लेषकों की तरह मेरा भी मानना है कि वैश्विक बाजार में दस प्रतिशत हिस्सेदारी का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है. विभिन्न आकलनों के हिसाब से देखें, तो अभी यह हिस्सेदारी दो-तीन फीसदी है. यह भी देखना है कि क्या हम इस क्षेत्र में स्टार्टअप पर ही निर्भर होंगे या बाहर से कुछ स्थापित बड़ी कंपनियां भी भारत आयेंगी. एक संभावना यह भी है कि कुछ बड़े भारतीय उद्योग स्पेस इंडस्ट्री में निवेश करें.
आखिरकार बाजार में प्रतिस्पर्द्धा होगी और परस्पर सहयोग के अवसर बनेंगे, उसमें विदेशी अंतरिक्ष कंपनियों की उपस्थिति निश्चित ही रहेगी. अगर सरकार की कोशिशें और निजी क्षेत्र की उद्यमिता कारगर रही, तो संचार के अत्याधुनिक तकनीकों की उपलब्धता और उपभोग को भी बढ़ावा मिलेगा, जो भविष्य की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण आधार होंगे. इसके अलावा, विभिन्न प्रकार के उपकरणों के निर्माण और संबंधित गतिविधियों का बाजार भी विस्तृत होगा. इन अनुभवों का लाभ स्पेस सेक्टर के साथ अन्य कुछ क्षेत्रों को भी मिलेगा. नये तरह के रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. लेकिन, हमें कुछ इंतजार करना होगा. (बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)