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मुक्त व्यापार समझौतों की संभावनाएं

निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और आरसेप के कारण बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में एफटीए को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर बैठक संपन्न हुई. इसमें भारत और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (जिसमें रूस, कजाकिस्तान, अर्मेनिया, बेलारूस, किर्गीस्तान और तजाकिस्तान शामिल हैं) के बीच सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की संभावनाएं आगे बढ़ी हैं. इस समय अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका आदि प्रमुख देशों के साथ भी भारत एफटीए करने को लेकर आगे बढ़ रहा है.

इन देशों को भारत जैसे बड़े बाजार की जरूरत है. बदले में वे भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने को उत्सुक हैं. इससे घरेलू सामानों की पहुंच बड़े बाजार तक हो सकेगी. विगत 23 नवंबर को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच के तहत दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण व्यापार समझौता हुआ है.

साथ ही दोनों देशों के बीच सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौते की संभावनाएं बढ़ी हैं. भारत ने पिछला व्यापार समझौता 2011 में मलेशिया के साथ किया था. उसके बाद फरवरी, 2021 को मॉरीशस के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए पर हस्ताक्षर हुए हैं.

हाल ही के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हुई हैं, उतनी ही तेजी से एफटीए बढ़ते गये हैं. इस समय दुनियाभर में एफटीए की संख्या 300 के पार हो चुकी है. डब्ल्यूटीओ कुछ शर्तों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए की इजाजत भी देता है.

एफटीए में दो या दो से ज्यादा देश आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि में तरजीह देने पर सहमत होते हैं. सीमित दायरे वाले ट्रेड एग्रीमेंट मुक्त व्यापार समझौते की तरह बाध्यकारी नहीं होते हैं यानी किसी कारोबारी मुद्दे पर आ रही समस्या को दूर करने का विकल्प खुला होता है. नवंबर, 2020 को दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसेप) ने 15 देशों के हस्ताक्षर के बाद मूर्तरूप लिया है, भारत उसमें शामिल नहीं हुआ.

बीते 28 अक्तूबर को आसियान देशों के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्वरूप में भारत आरसेप का सदस्य होने का इच्छुक नहीं है. अब तक भारत की चिंताओं का निदान नहीं किया गया है. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जी-20 के शिखर सम्मेलन में जी-20 के विभिन्न राष्ट्र प्रमुखों के साथ प्रभावी बातचीत की गयी. सरकार यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, यूएई और ब्रिटेन के साथ सीमित दायरे वाले व्यापार समझौते के लिए तेजी से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है.

भारत की 27 देशों वाले यूरोपियन यूनियन के साथ 2013 से एफटीए पर कवायद चल रही है. यूरोपीय यूनियन भारतीय निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है, लेकिन कई मुद्दों पर मतभेद के कारण एफटीए को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका. हालांकि, मई 2021 के बाद बदले वैश्विक आर्थिक परिवेश में भारत और यूरोपीय संघ के बीच एफटीए की संभावनाएं बढ़ी हैं.

ऑस्ट्रेलिया, यूएई और ब्रिटेन समेत कुछ और देशों के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए के लिए चर्चाएं संतोषजनक हैं. अब भारत मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित अपनी रणनीति में देश की कारोबार जरूरतों और वैश्विक व्यापार परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए जरूरी बदलाव के लिए तैयार हैं.

जुलाई, 2020 में भारत और अमेरिका की वर्चुअल वार्ता में यह विचार किया गया था कि शुरुआत में सीमित कारोबारी समझौता किया जाए. फिर, द्विपक्षीय कारोबार की मदों को चिह्नित करने के साथ एक प्रभावी एफटीए की संभावना को आगे बढ़ाया जाए. प्रधानमंत्री मोदी की सितंबर, 2021 में अमेरिका की यात्रा और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ वार्ता ने आर्थिक और कारोबारी संबंधों की नयी संभावनाओं का परिदृश्य तैयार किया है.

वस्तुतः भारत की विभिन्न देशों के साथ एफटीए वार्ताओं के लंबा खिंचने का एक बड़ा कारण विनिर्माण जैसे कुछ बेहद गतिशील व्यापार क्षेत्रों में ऊंचे घरेलू शुल्कों का होना है. स्थिति यह है कि भारत अपने एफटीए समझौतों में लगभग सभी व्यापार को अधिक तरजीही शुल्क ढांचे के रूप में प्रस्तुत करने से हिचकिचाता रहा है.

लिहाजा, अब एफटीए पर होने वाली वार्ताओं में तरजीही व्यापार उदारीकरण के समकक्ष स्तर और भारत में नियामकीय नीतिगत सुधारों की बात मानी जा रही है. निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था के मद्देनजर एफटीए भारत के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, लेकिन अब एफटीए का मसौदा बनाते समय यह ध्यान दिया जाना होगा कि एफटीए वाले देशों में कठिन प्रतिस्पर्धा के बीच कारोबारी कदम आगे कैसे बढ़ाये जा सकेंगे?

विकसित देशों के साथ एफटीए में भारत के वार्ताकारों द्वारा डेटा संरक्षण नियम, ई-कॉमर्स, बौद्धिक संपदा तथा पर्यावरण जैसे नयी पीढ़ी के कारोबार मसलों को ध्यान में रखा जाना होगा. एफटीए के समय साझेदार देश से सहयोग और सद्भाव की हरसंभव गारंटी लेने से कारोबार की डगर आसान हो सकेगी.

हमें एफटीए वाले देशों में कारोबार प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए उत्पादों की कम लागत और अधिक गुणवत्ता की बुनियादी जरूरत के रूप में ध्यान रखना होगा. हमें ध्यान में रखना होगा कि एफटीए का दूसरे अंतरराष्ट्रीय समझौते से बेहतर समन्वय किया जाये. एफटीए का लाभ उपयुक्त रूप से लेने के लिए जरूरी है कि सीमा शुल्क अधिकारियों, संबंधित विशेषज्ञ पेशेवरों और उद्योगपतियों के द्वारा समिन्वित व संगठित रूप से काम किया जाए.

निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और आरसेप के कारण बदली हुई वैश्विक व्यापार व कारोबार की पृष्ठभूमि में एफटीए को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव का स्वागत किया जाना चाहिए. अब भारत दुनिया के विभिन्न देशों के साथ नये सीमित दायरे वाले मुक्त व्यापार समझौतों की डगर पर और तेजी से आगे बढ़ेगा. हम उम्मीद करें कि अब यूरोपीय संघ, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ सीमित दायरे वाले एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा और इससे भारत के विदेश-व्यापार के नये अध्याय लिखे जा सकेंगे.

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