जल संकट गंभीर वैश्विक समस्या है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, 37 देश पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं. सिंगापुर, पश्चिमी सहारा, कतर, बहरीन, जमैका, सऊदी अरब और कुवैत समेत 19 देश ऐसे हैं, जहां पानी की आपूर्ति मांग से बेहद कम है. हमारा देश इनसे एक पायदान पीछे है. पृथ्वी की सतह पर मौजूद 71 फीसदी पानी में से केवल 2.5 फीसदी ही लवणयुक्त पानी है, जबकि उपलब्ध जल का 0.08 फीसदी पानी मानव के इस्तेमाल के लायक है. हालात इतने खराब हैं कि दुनिया में पांच में से एक व्यक्ति की साफ पानी तक पहुंच नहीं है.
विकासशील देशों में सालाना लगभग 22 लाख लोगों की मौत साफ पानी न मिलने की वजह से हुई बीमारियों से हो जाती है. इसका एकमात्र हल है कि वर्षाजल संरक्षण को बढ़ावा देकर और भूजल रिचार्ज प्रणाली के जरिये गिरते भूजल स्तर को रोका जाए तथा उचित जल-प्रबंधन से सबको शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जाए. इसके बिना समस्या के समाधान की उम्मीद बेमतलब है.
नीति आयोग का कहना है, ‘देश में करीब साठ करोड़ आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है. तीन-चौथाई घरों में पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है. देश में माॅनसून बेहतर रहने के बावजूद यह स्थिति आ सकती है, इसका अहसास कभी नहीं किया गया.’ जल गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में हम 120वें पायदान पर हैं. फिर भी जल संकट से निपटने के बाबत देश में ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई देता, जिससे आशा की किरणंे दिखें.
इसका सबसे बड़ा कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है. इसका खामियाजा समूचा देश कहीं जल संकट, तो कहीं सूखा और भीषण बाढ़ के रूप में भुगत रहा है. जलापूर्ति अधिकतर भूजल पर ही निर्भर है, लेकिन चाहे सरकारी मशीनरी हो, उद्योग, कृषि क्षेत्र हो या आम जन, सबने इसका बेतहाशा दोहन किया है. इससे पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की भयावह स्थिति पैदा हो गयी है.
ये संकेत हैं कि भविष्य में स्थिति कितनी विकराल हो सकती है. यह सब पानी के अत्यधिक दोहन, उसके रिचार्ज न होने के कारण जमीन की नमी खत्म होने, ज्यादा सूखापन आने, भूगर्भीय हलचल की लहरों व पानी में जैविक कूड़े से निकली मीथेन व दूसरी गैसों के इकट्ठा होने से सतह में अचानक गर्मी बढ़ने का परिणाम है.
हम चीन और अमेरिका से 124 प्रतिशत यानी दोगुने से भी अधिक 250 घन किलोमीटर भूजल का दोहन करते हैं, जबकि अमेरिका और चीन में यह आंकड़ा 112 घन किलोमीटर सालाना है. साल 2011 में समूची दुनिया के भूजल का 25 फीसदी अकेले हमारे देश में था. हमारे यहां पानी की मांग और उपलब्धता में काफी अंतर है. इसमें बढ़ती आबादी ने प्रमुख भूमिका निभायी है.
साल 2008 में देश में 634 अरब घन मीटर पानी की मांग के मुकाबले 650 अरब घन मीटर उपलब्धता थी. साल 2030 में यह उपलब्धता होगी केवल 744 अरब घन मीटर, जबकि मांग 1498 अरब घन मीटर. वर्ष 2000 में पानी की उपयोगिता 2000 क्यूबिक मीटर थी, जो 2025 में 1500 क्यूबिक मीटर रह जायेगी, जबकि आबादी 1.39 अरब होगी. यह आंकड़ा 2050 तक 1000 क्यूबिक मीटर रह जायेगा और आबादी 1.600 अरब पार कर जायेगी.
बारिश और नदियों के ड्रेनेज सिस्टम द्वारा सालाना 432 अरब घन मीटर भूजल का पुनर्भरण होता है, जिसमें 395 अरब घन मीटर ही उपयोग लायक होता है. इसका 82 फीसदी सिंचाई और कृषि कार्यों में उपयोग होता है, जबकि 18 फीसदी ही घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए बचता है. जल संग्रहण क्षमता सीमित होने के कारण वर्षा का अधिकांश पानी नदियों से होकर समुद्र में बेकार चला जाता है. सभी सरकारों के लिए यह गंभीर चुनौती है. यह हिस्सा सतही जल संरचनाओं, बांध-जलाशय आदि में उपयोग में लाये जानेवाले हिस्से का दोगुना है. इसका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है.
सदियों से हमारे देश में कुछ मनुष्य और कुछ प्रकृति द्वारा वर्षाजल का संचय होता आया है. लोगों के सरकारी तंत्र पर आश्रित होने के चलते जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी का पतन हो गया. अधिकांश जमीन असंगत रूप से पक्के फर्श में तब्दील हो चुकी है. नतीजतन, कुदरती तौर पर भूजल स्तर के रिचार्ज होने की प्रक्रिया हमने असंभव कर दी है. गिरते भूजल स्तर के कारण खेती, पेयजल और इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों की समस्याओं में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है. ऐसे में स्थानीय विकास के मॉडल को प्राथमिकता देनी चाहिए तथा सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि भूजल का 80 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल तो हम कर ही चुके हैं. हम यह नहीं सोचते कि जब यह भी नहीं मिलेगा, तब क्या होगा? इसका एकमात्र स्थायी हल है रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक का इस्तेमाल और भूजल रिचार्ज प्रणाली पर जोर. दुख की बात यह है कि हमारी जलनीति में भूजल रिचार्ज प्रणाली को समुचित जगह नहीं दी गयी है, जबकि भूजल रिचार्ज के मुकाबले खपत 62 फीसदी अधिक है. यह खतरनाक संकेत है. पानी देश और समाज की सबसे बड़ी जरूरत है. इसलिए हम भूजल रिचार्ज प्रणाली पर विशेष ध्यान दें और वर्षाजल का संचय कर देश और समाज के हितार्थ अपनी भूमिका का सही मायने में निर्वहन करें.