यह पहला अवसर है, जब भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता की है. बरसों पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता विजयलक्ष्मी पंडित ने की थी, पर वे प्रधानमंत्री नहीं थीं. यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस बैठक की अध्यक्षता की है, उसके दो अहम पहलू हैं. पहला, किस तरह से सामुद्रिक सुरक्षा को बढ़ावा दिया जाए और दूसरा, किस तरह से अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत बनाया जाए.
प्रधानमंत्री मोदी ने सहकार आधारित सहभागिता की बात कही है. सामुद्रिक सुरक्षा के संबंध में पहले भी कई बार चर्चा हुई है और अनेक नियम भी निर्धारित किये गये हैं. साल 1982 में सामुद्रिक नियमों के बारे में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ. उसके बाद 1988 में नियम बनाये गये और 2005 में कुछ प्रोटोकॉल तय हुए, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इस मसले की अहमियत बहुत बढ़ गयी है.
हम देख रहे हैं कि साउथ चाइना सी में क्या चल रहा है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियां हैं, समुद्री लुटेरे बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं. हमने समुद्री लुटेरों को रोकने के लिए दो विशेष जहाज रखे हैं, जो व्यापारिक जहाजों के आवागमन में सुरक्षा प्रदान करते हैं. भले ही तकनीक और आवागमन के साधन बढ़ गये हैं, पर गैस, तेल, विभिन्न प्रकार की वस्तुओं आदि की आवाजाही आज भी मुख्य रूप से समुद्री मार्गों के जरिये ही होती है. इसमें किसी तरह की बाधा को दूर करने के लिए बहुत जरूरी है कि सभी देश साथ मिल कर काम करें.
जहां तक भू-राजनीति का प्रश्न है, वह तो चलती रहेगी, लेकिन नियमों का पालन सही ढंग से हो, यह आवश्यक है. सुरक्षा परिषद की इस बैठक में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हुए. वियतनाम के शासन प्रमुख भी थे और अमेरिकी विदेश सचिव भी उपस्थित थे. इसका संकेत यह है कि जो भी बड़े राष्ट्र हैं, वे इस मसले की गंभीरता का संज्ञान ले रहे हैं. रही बात चीन और पाकिस्तान की, तो उनका अलग तरह का रवैया है. बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने जो बातें कहीं है, वे भारत पहले से कहता रहा है.
उनका इरादा कतई यह नहीं था कि वे किसी देश के ऊपर दोषारोपण करें या रणनीतिक तौर पर किसी को निशाना बनाएं. साल 2018 में जब हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संबंध में बातचीत हुई थी, तब भी प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जो भारत की रणनीति है, वह किसी एक देश के खिलाफ नहीं है. अमेरिका भले ही उसे चीन को नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में मानता हो, लेकिन भारत के हिसाब से वह प्रयास चीन या किसी अन्य देश के विरुद्ध नहीं है.
उन्होंने स्पष्ट रूप से अपने संबोधन में कहा है कि एक सर्वमान्य नियम आधारित व्यवस्था होनी चाहिए और सभी देशों की सामुद्रिक सीमाओं का सम्मान होना चाहिए. जो नियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत हुए हैं, उनका पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए. अमेरिका ने 1982 के कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किया है, लेकिन वह भी उसे अंतरराष्ट्रीय कानून मानता है. नियमों को मानने से ही देशों के बीच विवादों का निपटारा हो सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक में एक बड़ी अहम बात दुनिया के सामने रखी कि जो हमारे सामुद्रिक विवाद दूसरे देशों के साथ थे, उन्हें हमने बड़े सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया है. इसलिए सहकार आधारित व्यवस्था की जरूरत बढ़ जाती है.
आज के जमाने में समुद्री डाकू और आतंकवादी गिरोह भी सामुद्रिक मार्गों का इस्तेमाल करते हैं. इनकी चुनौतियों से निबटना भी सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है, खासकर उन देशों की, जिनके पास सामुद्रिक सीमाएं हैं. भारत बहुत पहले से अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ इन समस्याओं के समाधान की कोशिश में लगा हुआ है. आज की विश्व व्यवस्था में एक ठोस सामुद्रिक सुरक्षा दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है ताकि तनाव और संघर्ष का रास्ता अपनाने की बजाय बातचीत से विवादों का शांतिपूर्ण हल निकाला जा सके.
साल 2015 में भारत ने ‘सागर’ पहल की बात की थी. इसका उद्देश्य है- क्षेत्र में सभी के लिए वृद्धि और सुरक्षा. इसे प्रधानमंत्री मोदी ने सुरक्षा परिषद में उल्लिखित किया है. हमारा लक्ष्य है कि सभी देश निरंतर विकास की ओर अग्रसर हों. पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन में भी भारत ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए सात बिंदुओं का उल्लेख किया था. समुद्र के भीतर व्यापक संपत्ति है. उसे निकालने के लिए सभी देशों को आपसी सहयोग करना होगा अन्यथा व्यर्थ के विवाद उत्पन्न होंगे, जो संघर्षों का कारण बन सकते हैं.
इससे जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रही स्थितियों से निपटने और सामुद्रिक पारिस्थितिकी के संतुलन को बनाये रखने के मसले भी जुड़े हुए हैं. इस संबंध में भारत ने अपने स्तर पर भी कोशिशें की हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठाया है. मेरे कहने का मतलब यह है कि जो बातें हुई हैं, वे अचानक से नहीं आयी हैं, बल्कि भारत इन मामलों पर हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है.
आठवीं बार भारत को सुरक्षा परिषद में यह अवसर मिला है. इस संस्था में जब भी हम अस्थायी सदस्य के रूप में या अध्यक्ष के तौर पर आये हैं, हमने वैश्विक मामलों को सौहार्दपूर्ण परस्पर संवाद से सुलझाने में सक्रिय योगदान दिया है. भारत ने सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के साथ मिल कर संयुक्त राष्ट्र में बदलती स्थितियों के अनुसार सुधार करने के प्रयासों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. जबसे संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई है, तब से भारत ने उसे अपना पूरा सहयोग दिया है.
शांति सेना में हम सबसे अधिक योगदान करनेवाले देशों में शामिल रहे हैं. इस नाते इस मसले में भी हमारी रुचि है. कुछ दिन बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर इस विषय पर होनेवाली सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता करेंगे. उसमें शांति सेना को अधिक प्रभावी बनाने के साथ शांति सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों पर विचार-विमर्श होगा. एक और महत्वपूर्ण बैठक आतंकवाद की रोकथाम को लेकर होगी.
भारत समेत समूची दुनिया इस समस्या से परेशान है और इस पर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गंभीरता से पहल करना होगा. शक्तिशाली संस्था होने के नाते सुरक्षा परिषद की निश्चित रूप से बड़ी भूमिका है. इन मुद्दों के अलावा अफगानिस्तान की स्थिति, पर्यावरण संरक्षण, हिंसा आदि के प्रश्न भी हैं. भारत ने इन मुद्दों को उठाया है. भारत ने पहले फिलीस्तीन के मसले पर भी सकारात्मक भूमिका निभायी है. पीएम मोदी के संबोधन और भारतीय प्रतिनिधियों द्वारा समय-समय पर उठाये गये मुद्दों से स्पष्ट है कि भारत एक जिम्मेदार देश है और वैश्विक समुदाय भी उसे इसी नजर से देखता है. (बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं )