शौचालयों से बदलेगा समाज

विश्व शौचालय दिवस- 2021 का विषय ‘शौचालयों का महत्व’ है. अगर दुनिया में किसी देश ने सही मायने में शौचालय को महत्व दिया है, तो वह इस सरकार के अधीन यह देश है.

By गजेंद्र सिंह | November 23, 2021 9:12 AM

हाल में नंगे पांव आदिवासी पोशाक पहने पद्मश्री से सम्मानित 72 वर्षीय तुलसी गौड़ा की सोशल मीडिया में छाई तस्वीर बड़ी चर्चित हुई. उस तस्वीर ने उन चैंपियनों को पुरस्कृत करने की सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया, जो जमीनी स्तर पर अपना योगदान दे रहे हैं और सुर्खियों से दूर साधु जैसी एकाग्रता के साथ अपना काम करते हैं. ऐसी ही एक तस्वीर 2016 में वायरल हुई थी.

वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 105 वर्षीय कुंवर बाई को नमन करते हुए तस्वीर थी. कुंवर बाई ने अपने गांव में शौचालय बनाने के लिए 10 बकरियां और अपनी अधिकांश संपत्ति बेच दी थी. ऐसे दृश्य हमारी उपलब्धियों के समान ही मर्मस्पर्शी और जश्न मनाने लायक हैं. जब भारत ने 108 मिलियन शौचालयों का निर्माण कर खुले में शौच से मुक्त का दर्जा हासिल किया, तो यह कुंवर बाई की उतनी ही जीत थी, जितनी प्रधानमंत्री की.

चैंपियन हमेशा सरकार की नीतियों के सह-उत्पाद नहीं होते, बल्कि कभी-कभी नीतियां भी चैंपियनों से प्रेरणा लेती हैं. प्रधानमंत्री मोदी अक्सर कहते हैं, जब प्रत्येक भारतीय सिर्फ एक कदम उठाता है, तो भारत 135 करोड़ कदम आगे बढ़ता है. स्वच्छ भारत अभियान, जल शक्ति अभियान, जल जीवन मिशन और टीकाकरण अभियान जैसे जनांदोलन इस उक्ति के जीवंत उदाहरण हैं.

मार्मिकता और प्रेरणा एक तरफ, लेकिन किसी आंदोलन की शुरुआत करना और उसे गति देना नीतिगत मूल्य शृंखला का केवल एक पहलू है. उसकी गति बनाये रखना और पुरानी आदतों की ओर लौटने को हतोत्साहित करना कहीं अधिक बड़ी चुनौती है. इसके लिए व्यापक तकनीकी विशेषज्ञता एवं आधारभूत संरचना की जरूरत होती है.

इसके लिए स्वच्छता से संबंधित मूल्य शृंंखला के सभी स्थिर और गतिमान हिस्सों की पड़ताल यानी मल अपशिष्ट की रोकथाम, उसे खाली करना, उसका परिवहन, उसका शोधन और उसके दोबारा उपयोग या निबटान का अहम महत्व है. इन तथ्यों के आलोक में भारत सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-2 को 1,40,881 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ मंजूरी दी थी.

इस समस्या का केंद्र है मल से संबंधित गाद का प्रबंधन, जो ‘खुले में शौच से मुक्त’ (ओडीएफ) प्लस भारत का एक महत्वपूर्ण, लेकिन चुनौतीपूर्ण हिस्सा है. सामुदायिक शौचालयों के निर्माण, ठोस एवं तरल कचरे के प्रभावी प्रबंधन और गांवों की सफाई के साथ ओडीएफ प्लस की स्थिति को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-2 के प्रमुख फोकस क्षेत्र के रूप में गिना जाता है.

आगामी चुनौतियां हमें सर्वोत्तम प्रथाओं और केस स्टडी की पहचान करने के लिए मजबूर करती है. ऐसा एक उदाहरण मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के काली बिल्लौद गांव का है. ग्राम पंचायत द्वारा संचालित एवं व्यवस्थित मल गाद शोधन संयंत्र तीन ग्राम पंचायतों के समूह के 45,870 लोगों की जरूरतों को पूरा करता है और इसकी क्षमता तीन किलोलीटर मल से संबंधित गाद के शोधन की है. इसका अंतिम उत्पाद एक किस्म का शोधित अपशिष्ट होता है, जो आसपास के परिदृश्य को सुंदर बनाने के काम आता है.

ग्रामीण भारत में जल निकासी की व्यवस्था का न होना सबसे बड़ी बाधा है. ट्विन लीच पिट को छोड़ कर, सिंगल पिट और सेप्टिक टैंक जैसी मल अपशिष्ट की रोकथाम से जुड़ी अन्य प्रणालियों में मल से संबंधित गाद को हटा कर खाली करने की जरूरत होती है. स्वच्छ भारत अभियान द्वारा स्वास्थ्य और मानव दिवस की दृष्टि से प्रति परिवार प्रति वर्ष 50 हजार रुपये की बचत का एकमात्र कारण ट्विन पिट जैसे दूरदर्शी उपाय की शुरुआत थी.

ट्विन पिट इस सरकार की दूरदर्शिता का एक आदर्श उदाहरण है. बिना ट्विन पिट के बने 108 मिलियन शौचालयों ने पूरे इकोसिस्टम को नष्ट कर दिया होता, भू-जल को जहरीला बना दिया होता और आम तौर पर हर किसी के लिए जीवन को एक बदबूदार नरक बना दिया होता. अधिकतर चुनौतियों की जड़ें स्वच्छ भारत के पूर्व के दिनों में हैं, जहां शौचालयों का निर्माण बिना रख-रखाव के बारे में सोचे-समझे किया जाता था.

मिशन गाद के प्रबंधन के जरिये वर्तमान में जो हो रहा है, वह अतीत की गलतियों को दूर करना और स्वच्छता की खराब प्रणालियों के कारण भू-जल एवं जल निकायों में मल की वजह से पैदा होनेवाले रोगजनकों के रिसाव को रोकना है. इस क्षेत्र में छोटे स्तर के अकुशल एवं अक्सर बिना मशीनी सुविधा वाले अनौपचारिक सेवा प्रदाताओं की भीड़ है. सर्वोत्तम प्रथाओं, जिनके बारे में हमने इस लेख में गंभीरता से चर्चा की है, को संस्थागत बनाना आगे के रास्तों में एक है.

विश्व शौचालय दिवस, 2021 का विषय ‘शौचालयों का महत्व’ है. अगर दुनिया में किसी देश ने सही मायने में शौचालय को महत्व दिया है, तो वह इस सरकार के अधीन यह देश है. जहां दूसरों ने शौचालयों को कचरे के रूप में देखा, वहीं हमने इसे महिलाओं के आत्मसम्मान को बनाये रखने के एक साधन के रूप में देखा.

कई लोगों ने एक विषय के रूप में शौचालयों की चर्चा को प्रधानमंत्री पद की गरिमा के प्रतिकूल माना, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से इसके बारे में बात की. मुझे विश्वास है कि 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों में शामिल छठे लक्ष्य- सभी के लिए पानी एवं स्वच्छता- को हासिल कर लिया जायेगा. हम एक बार फिर खुद को गौरवान्वित करने के लिए तैयार हैं.

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