Loading election data...

आज भी प्रासंगिक हैं मौलाना आजाद के विचार

मौलाना आजाद के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं. उनकी गिनती एक बेबाक पत्रकार, भविष्यद्रष्टा, राजनीतिज्ञ, उच्च कोटि के साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, निडर वक्ता और देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में होती है.

By इबरार अहमद | November 12, 2021 5:22 PM

मौलाना आजाद के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं. उनकी गिनती एक बेबाक पत्रकार, भविष्यद्रष्टा, राजनीतिज्ञ, उच्च कोटि के साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, निडर वक्ता और देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में होती है. वह सदैव हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे. इस विचारधारा के समर्थक रहे कि हिंदू-मुसलमान दोनों मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध लड़ाई लड़ें और राष्ट्रीय एकता का उदाहरण प्रस्तुत करें.

इस दृष्टिकोण को उन्होंने अपने अखबार ‘अल-हिलाल’ के पहले अंक के संपादकीय में लिखा था. उन्होंने लिखा- ‘असल मसला यह था कि हिंदुस्तान की निजात के लिए हिंदू-मुस्लिम इत्तेहाद बहुत जरूरी है. यह मेरा अकीदा है, जिसका ऐलान मैं 1912 में अल-हिलाल के पहले ही अंक में कर चुका हूं.

हिंदुस्तान के मुसलमानों का फर्ज है कि वह अहकाम-ए-शरिया (धार्मिक कानून) को सामने रखकर, हुजूर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उस हुस्न-ए-सीरत को पेशे नजर रखें, जो उन्होंने पहले मदीना के मुख्तलिफ मजहबों के लोगों से मसालेहत करते हुए दिखाया. हिंदुस्तान के मुसलमानों का यह फर्जे शरई (धार्मिक कर्तव्य) है कि वह हिंदुस्तान के हिंदुओं से मिलकर मुकम्मल सच्चाई के साथ एक नेशन हो जायें.

अब मैं मुसलमान भाइयों को सुनाना चाहता हूं कि खुदा की आवाज के बाद सबसे बड़ी आवाज जो हो सकती है वह मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आवाज है. इस वजूद-ए-मुकद्दस ने अहदनामा लिखा ‘इन्नहू उम्मतन वाहिदतन.’ हम उन तमाम कबीलों से, जो मदीने के एतराफ में बसते हैं, सुलह करते हैं, इत्तिफाक करते हैं और हम सब मिलकर एक कौम बनना चाहते हैं.

जब देश में धर्म के आधार पर ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ पेश किया गया, तब मौलाना आजाद ने इसका पुरजोर विरोध किया था. उनके अनुसार, राष्ट्र निर्माण का आधार धर्म नहीं बल्कि भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें सभी धर्मों एवं विचारों के लोग रह सकते हैं. इस प्रकार अनेक धर्मों, मतों एवं विचारधाराओं के लोग मिलकर एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं. मौलाना आजाद का यह विचार आज भी प्रासंगिक है.

एक आदर्श एवं सशक्त राष्ट्र के लिए आवश्यक है कि विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के लोग अपने-अपने धर्म एवं परंपराओं को मानते हुए भी एक-दूसरे के प्रति उदार भावना से परिपूर्ण हों और श्रेष्ठ एवं आदर्श समाज के रूप में राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित हों. यह किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं सशक्तिकरण की बुनियादी जरूरत है. इसी संदर्भ में मौलाना आजाद ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए रांची में एक ऐतिहासिक किताब लिखी जिसका नाम ‘जामिउशवाहिद’ है.

यह पुस्तक हिंदू-मुस्लिम एकता का दस्तावेज है. इस पुस्तक की रचना की प्रेरक घटना की चर्चा करना दिलचस्प होगा. पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति पर हिंदुस्तानियों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के लिए ब्रिटिश प्रशासन ने ‘रॉलेक्ट एक्ट’ लागू किया, तो भारतवासियों के बीच खलबली मच गयी. गांधी जी ने इसके विरुद्ध आंदोलन करने का आह्वान किया.

गांधी जी के आह्वान पर लोग आंदोलित हो उठे. दिल्ली में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस गोलीबारी में पांच लोगों के मारे जाने के विरोध में जब चांदनी चौक में प्रदर्शन हुआ, तो प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बंदूक तान दी. पुलिस गोली चलाने ही वाली थी कि स्वामी श्रद्धानंद मौके पर पहुंच गये और सीना तान कर कहा कि गोली चलाना है, तो मुझ पर गोली चलाओ. उनके मजबूत इरादों के सामने पुलिस की हिम्मत जवाब दे गयी.

4 अप्रैल, 1919 को जामा मस्जिद, दिल्ली में एक शोक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें स्वामी श्रद्धानंद को व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था. लोगों ने स्वामी श्रद्धानंद के व्याख्यान की बहुत सराहना की, परंतु कुछ लोगों ने जामा मस्जिद में श्रद्धानंद स्वामी की उपस्थिति का विरोध किया. इस बात का पता जब मौलाना आजाद को चला, तो वे उद्वेलित हो उठे. उस समय वे रांची में नजरबंद थे. उन्होंने इस घटना के बाद अपनी पुस्तक ‘जामिउशवाहिद’ लिखा, जिसमें धार्मिक उदारता एवं सहिष्णुता के विषयवस्तु पर प्रकाश डाला गया है.

इस पुस्तक की विषयवस्तु है कि ‘इस्लाम गैर-मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत’ देता है. मौलाना आजाद ने इस पुस्तक में मुसलमानों से यह आह्वान किया कि सबसे ज्यादा जरूरी हिंदू-मुस्लिम एकता है. उन्होंने तारीख के हवाले से साबित किया कि हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की सभा जो मस्जिद-ए-नबवी में होती थी, उसमें गैर-मुस्लिम भी आया करते थे.

इस पुस्तक का सार है कि धर्म के संबंध में अल्प ज्ञान या गलतफहमी के कारण धार्मिक विवाद पैदा होता है. मौलाना आजाद ने धर्म के वास्तविक मर्म और परस्पर समन्वयकारी अवधारणा को स्पष्ट किया. आज धर्म के नाम पर द्वेष, वैमनस्य और विवाद हो रहा है, तो उसका मूल कारण धर्म के वास्तविक मर्म के ज्ञान का अभाव है. धर्म का वास्तविक मर्म लोगों को आपस में जोड़ना, प्रेम करना और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए मिल-जुलकर रहना है. एक श्रेष्ठ और सुंदर समाज का निर्माण कर साझा संस्कृति को विकसित करते हुए सशक्त और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है. मौलाना आजाद ने इन्हीं तथ्यों को धार्मिक मान्यताओं की रौशनी में बहुत ही प्रभावी ढंग से स्पष्ट किया है, जो आज भी अनुकरणीय है.

Next Article

Exit mobile version