टेक कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी
चूंकि तकनीक के क्षेत्र में बीते वर्षों में बहुत तेज गति से बदलाव हुआ है. ऐसे में अनेक स्तरों पर पहलकदमी की जरूरत महसूस की जा रही है.
कोरोना महामारी के दौर में एक ओर जहां डिजिटल सूचना तकनीक की जरूरत बड़े पैमाने पर बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर इस स्थिति का फायदा उठाते हुए गूगल, आमेजन, एप्पल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट जैसी तमाम कंपनियों ने अपने तरीके से व्यवसाय का विस्तार और अपने एकाधिकार बढ़ाने की कवायद भी तेज कर दी है. इसका ही नतीजा है कि अमेरिका एवं भारत सहित कई प्रमुख देशों की सरकारों ने इन कंपनियों के एकाधिकार पर रोक लगाने के लिए पुराने कानूनों में संशोधन करना एवं नये कानून बनाना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही दुनियाभर में इस मसले पर बहस भी तेज हो गयी है.
वैश्विक टेक कंपनियों में एकाधिकार का द्वन्द्व बहुत ही गंभीर होता जा रहा है. उदाहरण के लिए, गूगल ने एप्पल और अन्य मोबाइल निर्माता कंपनियों, सेवा प्रदाताओं एवं ब्रॉउजरों को पैसे देकर अपने सर्च इंजन एवं अन्य एप को बुनियादी एप के तौर पर डालने के लिए कहा, ताकि उनके उपभोक्ता इन्हीं का इस्तेमाल करें. इसका असर यह हुआ कि अन्य सर्च इंजन कंपनियों के उपभोक्ता कम होते गये और गूगल के उपभोक्ताओं में वृद्धि होती गयी.
ऐसे भी आरोप लगे हैं कि गूगल और एप्पल ने मिलकर नोकिया और ब्लैकबेरी जैसे प्रतिस्पर्धी कंपनियों को मुकाबले से बाहर कर दिया है. अब स्थिति यह है कि अधिकतर एप डाउनलोड करने के लिए उपभोक्ता को या तो गूगल प्ले स्टोर पर जाना होगा या फिर उसे एप्पल के एप स्टोर से उन्हें डाउनलोड करना होगा. ऐसे में अन्य एपों के सामने मैदान से हट जाने का संकट पैदा हो जाना स्वाभाविक है. अपने स्टोर पर जगह देने के लिए गूगल और एप्पल एप निर्माता कंपनियों से 30 फीसदी तक का कमीशन भी लेते हैं, इस प्रकार उनकी बड़ी कमाई भी होती है और उनका एकाधिकार भी बढ़ता जाता है.
ई-कॉमर्स कंपनियों में एकाधिकार का अलग ही द्वन्द्व जारी है. ये कंपनियां अपने मंच पर अपने चुने हुए पसंदीदा वेंडरों को ही बढ़ावा देकर अपने संचालन और उत्पाद के मूल्यों को नियंत्रित कर रही हैं. इस कवायद में भी कमीशन और अन्य तरह के सेवा शुल्कों के माध्यम से उनकी कमाई होती है. ऐसा करने से बहुत से वेंडर डिजिटल बाजार में नहीं टिक पाते हैं, क्योंकि वे अपने उत्पादों को ग्राहकों और उपभोक्ताओं के सामने प्रमुखता से नहीं रख पाते.
इसके अलावा, उनके सामने अपने उत्पाद की कीमतें कम रखने का विकल्प भी नहीं होता. देश की राजधानी दिल्ली के खुदरा व्यापारियों के संगठन दिल्ली व्यापार महासंघ ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सामने आमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराया था, जिसमें गलत तरीकों का उपयोग कर प्रतिस्पर्द्धा को खत्म करने के कोशिश का आरोप लगाया गया था.
इस शिकायत पर आयोग ने प्राथमिक जांच का निर्देश महानिदेशक को दिया था. इन जांचों से बचने के लिए आमेजन और फ्लिपकार्ट ने पहले कर्नाटक उच्च न्यायालय और फिर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया था, पर अदालतों से उन्हें कोई राहत नहीं मिल पायी. इन कंपनियों की ऐसे रवैये की रोकथाम जरूरी है, ताकि सभी वेंडरों को बराबरी के साथ कारोबार करने का मौका मिल सके. ऐसा करना देश में ई-कॉमर्स के विस्तार को सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है.
कंप्यूटर की अग्रणी कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट ने नब्बे के दशक में विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की सफलता के बाद से ही कई सफल सॉफ्टवेयर को विंडोज के लिए असंगत बना दिया था. नेटस्केप नाम के वेब ब्राउजर को प्रतिबंधित कर इंटरनेट एक्स्प्लोरर को आगे बढ़ाया गया. वैसे ही सर्च इंजन बिजनेस हो या क्लाउड कंप्यूटिंग या सोशल मीडिया, माइक्रोसॉफ्ट व्यवसाय के हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धियों को मात देने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आता.
ऐसी एकाधिकारवादी प्रवृत्तियों की आलोचना भी होती रही है. माइक्रोसॉफ्ट पर भी 2001 में एंटीट्रस्ट मुकदमा चल चुका है. एंटीट्रस्ट के पहले भी बड़े मामले घटित हो चुके हैं और कठोर कदम भी उठाने पड़े हैं. साल 1911 में जॉन डी रॉकफेलर की कंपनी स्टैंडर्ड ऑयल को एंटीट्रस्ट के उल्लंघन करने के मामले में 34 भागों में बांट दिया गया था.
अमेरिकी कांग्रेस ने जून महीने में एंटीट्रस्ट नियमन से संबंधित पांच नये विधेयकों को पारित किया है. यूरोपीय संघ ने दिसंबर, 2020 में दो विधेयकों को प्रस्तावित किया है. भारत में एंटीट्रस्ट के लिए 1969 से एकाधिकार और अवरोधक व्यापर व्यवहार नियम चलता आ रहा था, लेकिन नब्बे के दशक के वैश्वीकरण के दौर में यह नियम असरहीन साबित हो रहा था. इस कारण बदलती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए 2002 में प्रतिस्पर्धा अधिनियम को पारित किया गया.
इसी अधिनियम के तहत 2009 में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग गठित हुआ था. चूंकि तकनीक के क्षेत्र में बीते वर्षों में बहुत तेज गति से बदलाव हुआ है. ऐसे में अनेक स्तरों पर पहलकदमी की जरूरत महसूस की जा रही है. इस कड़ी में नया आइटी कानून- इंटरमेडियरी गाइडलाइन्स एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड 2021 और उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) अधिनियम 2020 में संशोधन उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और टेक कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए उठाये गये कुछ प्रमुख कदम हैं. समय-समय पर सरकार कुछ नियमन भी करती रही है और कुछ प्रस्ताव विचाराधीन भी हैं. बड़ी टेक कंपनियों के एकाधिकार और मनमानी पर लगातार नजर रखने की जरूरत है.