एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में भारत के पहले रक्षा प्रमुख जनरल बिपिन रावत की मृत्यु अत्यंत दुखद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक संदेश में राष्ट्र की भावना को व्यक्त करते हुए जनरल रावत के अनुभव और उनकी अतुलनीय सेवा का स्मरण किया. हादसे में जनरल रावत और उनकी पत्नी के साथ 12 और सैनिकों की मौत हुई है. घायल ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का भी उपचार के दौरान निधन हो गया.
इस दुर्घटना ने कई चिंताओं और सवालों को पैदा किया है. इसमें एक अहम बिंदु यह भी है कि उपकरणों से लैस और सुरक्षित हेलीकॉप्टर से सभी यात्रा कर रहे थे, जिसका इस्तेमाल अति विशिष्ट व्यक्तियों की यात्राओं के लिए होता है. सहयोगी कंपनी के जरिये इन्हें बनानेवाली कंपनी रशियन हेलीकॉप्टर्स इसे अपने वर्ग के सबसे लोकप्रिय और सक्षम हेलीकॉप्टर बताती है.
इस घटना पर जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए. हमें कोर्ट ऑफ इनक्वायरी की आधिकारिक रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए, जिसके गठन का आदेश दिया जा चुका है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग दुर्घटना के कारणों का अनुमान लगा रहे हैं तथा उनके सीमित विश्लेषण राजनीतिक धार के साथ सामने आ रहे हैं, जिससे भ्रम पैदा हो रहा है.
यह पूर्ण और उचित जांच के मसले के लिए उचित नहीं हैं. सभी पक्षों को समझना होगा कि इस दुर्घटना के साथ राजनीति खेलने का यह न तो समय है और न ही विषय. एक वीडियो चल रहा है, जिसमें कथित रूप से एक पूर्व सैनिक पिछली सरकारों की चर्चा करते हुए राजनीति और धर्म की बातें करता दिख रहा है. यह दुर्घटना को विश्लेषित करने या मृतकों की स्मृति को आदर देने का अच्छा तरीका नहीं है.
दुर्भाग्य से, दुर्घटना में अकेले जीवित बचे ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह का भी निधन हो गया है. दुर्घटना से ठीक पहले के बारे में उनकी जानकारी जांच दल के लिए बहुत अहम हो सकती थी. इससे यह पता चल पाता कि बिना किसी जोखिम के सामान्य रास्ते पर जा रहा हेलीकॉप्टर कैसे व क्यों दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है. यह एक विशेष मामला है, जिसमें देश के एक शीर्ष अधिकारी, उनकी पत्नी और उनके सुरक्षा दस्ते की मौत हुई है.
इसकी जांच बहुत गंभीरता से और सोच-समझ के साथ होनी चाहिए. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारतीय रक्षा सेवाओं में उड़ान सुरक्षा का रिकॉर्ड कमजोर है. प्रशिक्षण और सहयोगी उड़ानों की अनेक दुर्घटनाएं हो चुकी हैं और ये मसले संसद समेत विभिन्न मंचों पर उठाये जाते रहे हैं. जून, 2019 में केंद्रीय राज्य मंत्री श्रीपाद नाइक ने लोकसभा को बताया था कि 2016-17 से 2019-20 (20 जून, 2019 तक) के बीच भारतीय वायु सेना के 27 जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुए.
हालांकि वायु सेना और उसके सुरक्षा रिकॉर्ड पर ही ध्यान बना हुआ है, स्वाभाविक तौर पर उड़ानों के साथ अधिक खतरा रहता ही है. ऐसा माना जाता है कि मोर्चे पर सक्रिय लोगों और मशीनों के लिए आम तौर पर समुचित सुरक्षा नहीं है. इसका कोई लेना-देना नेतृत्व की राजनीति से नहीं है, बल्कि इसका पूरा दारोमदार उस संस्कृति पर है, जिसका उन स्तरीय प्रक्रियाओं, व्यवस्थाओं तथा उपायों से जुड़े विचारों से कम जुड़ाव प्रतीत होता है, जिनसे कमियां दूर की जा सकती हैं और बेहतर रखरखाव किया जा सकता है.
कहने की जरूरत नहीं है कि इसका संबंध हमारी रक्षा तैयारियों से है और इसलिए सुरक्षा और रखरखाव कोई विलासिता नहीं हैं, बल्कि ये देश के वृहत रक्षा व्यवस्था को सक्षम रखने के लिए आवश्यक निवेश का हिस्सा है. एक हद तक यह कल-पुर्जों के खर्च और उपलब्धता का मसला है. खतरों की बढ़ती आशंका को देखते हुए इस्तेमाल हो रहे सैन्य साजो-सामान को तकनीकी रूप से बदलती दुनिया में तथा खर्चों की लगातार बढ़ोतरी के हिसाब से आधुनिक बनाते रहना होगा.
कल-पुर्जों के मामले में एक उल्लेखनीय टिप्पणी 2010-11 की एक रिपोर्ट में की गयी थी. उसमें रेखांकित किया गया था कि हर इकाई आम तौर पर एक हेलीकॉप्टर जमीन पर छह माह तक रखती है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसके कल-पुर्जों का इस्तेमाल किया जा सके. इससे पता चल रहा था कि जरूरी संख्या में हेलीकॉप्टर उड़ने की स्थिति में नहीं हैं, जिससे इकाइयों को दिये काम के लिए उनका इस्तेमाल होने में बाधा पहुंचती है.
हालांकि ध्यान जहाजों और भारतीय वायु सेना पर अधिक है, लेकिन अन्य सेनाओं पर भी सुरक्षा से जुड़े मामलों में असर पड़ा है. याद किया जाना चाहिए कि 2013 में बंदरगाह पर खड़ी एक भारतीय पनडुब्बी में आग लग गयी थी और वह डूब गयी थी. उस दुर्घटना में पनडुब्बी पर तैनात 18 लोगों की मौत हुई थी.
उस हादसे से दो माह पहले ही रूस-निर्मित उस पनडुब्बी की आठ करोड़ डॉलर की लागत से मरम्मत करायी गयी थी. यह हालिया समय की सबसे गंभीर दुर्घटना थी, लेकिन यह अकेली दुर्घटना नहीं थी. यह जानना आश्चर्यजनक लग सकता है कि 2007-08 और 2015-16 के बीच भारतीय नौसेना के जहाजों और पनडुब्बियों के साथ 38 दुर्घनाएं हुई थीं.
यह सूचना देते हुए 2017 की एक आधिकारिक रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि इन दुर्घटनाओं में जान-माल के साथ दो नौसेना पोतों और एक पनडुब्बी का नुकसान हुआ था तथा भारतीय नौसेना के पास उसकी स्थापना के समय से ही सुरक्षा मामलों को देखने के लिए कोई सांस्थानिक व्यवस्था नहीं है.
इन घटनाओं और प्रकरणों के आधार पर वर्तमान कार्य पद्धति और निवेश नियमों से जुड़ी हर बात पर सवाल उठाया जाना चाहिए. इससे भी अहम यह है कि कार्य-संस्कृति में बदलाव लाकर अधिक सूचनाओं और रिपोर्टों को साझा करना चाहिए ताकि दुर्घटना की स्थिति में खुली और समझदार बातचीत हो सके.
बिना सुरक्षा से समझौता किये हुए ऐसा बहुत से मामलों में किया जा सकता है. जांच बंद दरवाजे के पीछे हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान रखते हुए रिपोर्टों को धीरे-धीरे सार्वजनिक की जानी चाहिए. दुर्घटनाओं के कारण उपकरणों की नाकामी भी हो सकती है और मानवीय चूक भी. इस अंतर को भी ठीक से समझा जाना चाहिए और इस पर खुली चर्चा होनी चाहिए. समूचा प्रयास अच्छे सुरक्षा स्तर के साथ अच्छे प्रदर्शन, अच्छी तैयारी और अच्छी क्षमता की दिशा में होना चाहिए