आधार भुगतान में खामियां दूर हों
एइपीएस उन लोगों के लिए एक गंभीर जोखिम है, जिन्हें नहीं पता कि यह काम कैसे करता है और उनके साथ यह धोखाधड़ी का साधन बन सकता है. एइपीएस की खामियों को कम करना संभव है.
आधार यह सुनिश्चित करने के लिए था कि ‘पैसा सही व्यक्ति के पास जाए’, लेकिन कई बार इसका विपरीत प्रभाव होता है. झारखंड के लातेहार जिले के विशुनबंद गांव की रहनेवाली नगीना बीबी एक बुजुर्ग महिला हैं. एक दिन कोई व्यक्ति बायोमेट्रिक पीओएस मशीन लेकर उनके घर आया. पेश है ज्यां द्रेज और विपुल पैकरा की रिपोर्ट:
उसने गैस सब्सिडी पाने में मदद करने के बहाने नगीना की उंगली आठ बार पीओएस मशीन में लगायी और उनकी जानकारी के बिना उनके बैंक खाते से 24,000 रुपये निकाल लिये. यह पैसा नगीना की मामूली पेंशन और कठिन परिश्रम से कमाये नरेगा मजदूरी के थे, जो उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए बचा कर रखा था.
नगीना को जब पता चला कि उनके बैंक खाते से 24,000 रुपये निकाल लिये गये हैं, उसने बैंक मैनेजर से शिकायत की, लेकिन मैनेजर ने मदद करने में लाचारी दिखायी. ठगी करनेवाले की पहचान का कोई ब्योरा नहीं था. उसका कहना था कि अगर नगीना एफआइआर दर्ज कराती है, तो वे ऑनलाइन विस्तृत लेनदेन रिकॉर्ड का अनुरोध कर सकते हैं. हालांकि, पुलिस ने एफआइआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव में ही बैंक और पुलिस मामले को आगे बढ़ाने के लिए राजी हुए.
यह आधार-इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (एइपीएस) की मदद से धोखाधड़ी का उदाहरण है. एइपीएस द्वारा व्यक्ति स्थानीय ‘बिजनेस कॉरस्पोंडेंट’ (बीसी) के माध्यम से देश में कहीं भी बैंक खाते से पैसे निकाल सकता है. बीसी एक अनौपचारिक बैंक एजेंट है, जिसके पास बायोमेट्रिक पीओएस मशीन होती है. अगर आप बीसी द्वारा पांच सौ रुपये निकालना चाहते हैं, तो आपको बस उसे अपने बैंक का नाम देना होगा और खुद को आधार बेस्ड बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन में सत्यापित करना होगा. बीसी आपको पांच सौ रुपये नकद में देगा और उसके खुद के खाते में इतनी ही राशि जमा होगी.
अब तक सब अच्छा है, लेकिन क्या होगा अगर बीसी पीओएस मशीन में ‘एक हजार रुपये’ अंकित कर आपको 500 ही दे? उस स्थिति में, आपके खाते से एक हजार बीसी के खाते में जमा हो जायेंगे. यदि आप शिक्षित और सतर्क हैं तो आपके साथ ऐसा होने की संभावना कम है- आप रसीद मांगेंगे और बीसी तुरंत आपको पीओएस मशीन द्वारा निकली रसीद देगा. हालांकि, बीसी अक्सर गरीब लोगों को मांगने के बाद भी रसीद नहीं देते हैं.
एक भ्रष्ट बीसी अनजान ग्राहकों से किसी भी बहाने पीओएस मशीन में उनकी उंगली के निशान लेकर बिना उनको पैसे दिये चंपत हो सकते हैं. नगीना बीबी के साथ भी ऐसा ही हुआ. लातेहार में एइपीएस की मदद से धोखाधड़ी के ऐसे ही कई मामले सामने आये हैं. उनमें से अधिकांश अनसुलझे हैं. यदि बीसी का पता लग भी जाए, तो वह आसानी से दावा कर सकता है कि उसने रिकॉर्ड के अनुसार नकदी भुगतान किया है- यह पीड़ित के बयान बनाम उसका बयान है. संक्षेप में, भ्रष्ट बीसी बिना किसी दंड के भय के धोखाधड़ी को अंजाम दे रहे हैं.
यह एक झलक मात्र है. झारखंड में हाल ही में हुए छात्रवृत्ति घोटाले से पता चलता है कि एइपीएस की मदद से हो रही धोखाधड़ी छिटपुट समस्या मात्र नहीं, बल्कि व्यवस्थागत नाकामी है. संक्षिप्त में, शातिर बिचौलियों ने स्कूल प्रधानाध्यापकों को रिश्वत देकर अल्पसंख्यक बच्चों के नाम और स्कूल के एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडिस) कोड और लॉगिन जैसी अन्य जानकारी प्राप्त की है.
उन्होंने स्थानीय बीसी को भरोसे में लेकर बच्चों के नाम से, आधार के माध्यम से बैंक खाता खोले और बच्चों की ओर से छात्रवृत्ति आवेदन जमा किये. बाद में बच्चों को नाम मात्र की रकम दी जाती थी और बाकी रकम उनकी जानकारी के बिना गबन कर ली जाती थी. यह एइपीएस के द्वारा संभव हुआ था. यदि बच्चों ने बैंक जाकर छात्रवृत्ति ली होती, तो बैंक कर्मचारी से न सही, उन्हें अपनी पासबुक देख कर सही छात्रवृति राशि का पता होता.
एइपीएस उन लोगों के लिए एक उपयोगी सुविधा है जो इसका सुरक्षित उपयोग करने में सक्षम हैं. यह बैंकों में भीड़ कम करने में मददगार है. यह उन प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है, जिनके पास एटीएम की सुविधा नहीं है. लेकिन, एइपीएस उन लोगों के लिए एक गंभीर जोखिम है, जिन्हें नहीं पता कि यह काम कैसे करता है और उनके साथ यह धोखाधड़ी का साधन बन सकता है.
एइपीएस की खामियों को कम करना संभव है. उदाहरण के लिए, ग्राहक को पासबुक दी जा सकती है, जिसमें लेन-देन की डिजिटल एंट्री संभव न भी हो, तो बीसी को लिखित एंट्री करना आवश्यक होगा. यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बीसी की जानकारी स्थानीय बैंक प्रबंधक द्वारा ग्राहक के लेन-देन रिकॉर्ड से आसानी से पता लगायी जा सके. यदि ग्राहक के पास मोबाइल फोन हो, तो एसएमएस से स्वचालित रसीद भेजी जा सकती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एइपीएस आधारित धोखाधड़ी के पीड़ितों को बेहतर शिकायत निवारण व्यवस्था उपलब्ध करायी जानी चाहिए.
एइपीएस की खामियां नगीना बीबी जैसे कई अनगिनत लोगों को उनकी मेहनत से अर्जित कमाई के लुट जाने के खतरे में डाल रही हैं. पुख्ता सुरक्षा उपायों को तत्काल लागू किये जाने की आवश्यकता है, नहीं तो एइपीएस का दुरुपयोग और बढ़ने की आशंका है.