हादसों से सबक लेना जरूरी
भीड़ प्रबंधन की नाकामी के कारण हुईं पिछली भगदड़ों के ब्यौरे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि उनके सबक अमल में लाये गये होते, तो ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति नहीं होती.
नये साल ने पहले ही दिन अनेक हादसों का दर्द दे दिया है. फिर वही पुराने कर्मकांड हो रहे हैं, जो हर हादसे के बाद दोहराये जाते हैं, मसलन- शोक जताने, जांच कराने, मुआवजे के एलान करने और आरोप-प्रत्यारोप जैसे कर्मकांड. उन तथ्यों को भी झुठलाया जा रहा है, जो दोषियों की ओर संकेत कर सकती हैं. आखिर कौन कह सकता है कि जब तक हम ऐसे हादसों से सबक लेकर उनके कारणों को दूर नहीं करेंगे, इनकी पुनरावृत्ति रोक लेंगे?
सबसे बड़ा हादसा दरअसल यही है कि सबक लेने के इस काम को गैरजरूरी मान लिया गया है. जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर में हुई भगदड़ के सिलसिले में, जिसमें दर्जन भर लोगों की जान चली गयी और कई अन्य जिंदगी और मौत के बीच झूल में रहे हैं,
इसे समझना चाहें, तो तीर्थस्थलों पर भीड़ प्रबंधन की नाकामी के कारण हुईं पिछली भगदड़ों के ब्यौरे चीख-चीखकर कह रहे हैं कि उनमें से किसी के दिये सबक भी अमल में लाये गये होते, तो ऐसी भगदड़ों में जन हानि की पुनरावृत्ति नहीं होती. मंदिरों और अन्य सार्वजनिक जगहों में ऐसे हादसों की एक बड़ी सूची हमारे सामने है.
फिर भी, जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक भगदड़ का कारण बताते हुए यह तो कहते हैं कि मंदिर के गेट नंबर तीन पर कुछ युवकों में तीखी बहस के बाद धक्का-मुक्की हुई, तो लोग डर कर भागने लगे. इस कारण भगदड़ हुई और जानें गयीं.
राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार द्विवेदी बताते हैं कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भगदड़ की जांच के लिए प्रधान सचिव (गृह) की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की है, जिसके अन्य दो सदस्य जम्मू संभागीय आयुक्त राघव लंगर और जम्मू के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश सिंह हैं. इस समिति को एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है.
लेकिन, इनमें से कोई भगदड़ पीड़ितों के इन आरोपों पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है कि वास्तव में मंदिर बोर्ड के कर्मियों द्वारा उगाही के चक्कर में पैसे देनेवालों को पहले दर्शन करवाने के चलते अव्यवस्था पैदा हुई, जो बाद में भगदड़ में बदल गयी. आरोप लगाने वाले अपने कथन की सच्चाई को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने सड़क पर उतरकर पुलिस की लाठियां झेलना भी गवारा कर लिया.
उनकी छोड़ दें, तो यह भी नहीं बताया जा रहा है कि मंदिर के गेटों पर दर्शन करवाने में भ्रष्टाचार रोकना राज्य पुलिस का नहीं, तो और किसका जिम्मा था? वहां कोरोना प्रोटोकॉल के बावजूद इतनी भीड़ क्यों जमा होने दी गयी और उद्गमस्थलों पर ही उसके नियंत्रण व प्रबंधन के उपाय क्यों नहीं किये गये? राज्य की विभिन्न विपक्षी पार्टियों ने भी जम्मू-कश्मीर प्रशासन को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि प्रशासन की विफलता के कारण हुई यह दुर्घटना, दुर्घटना न होकर मानवनिर्मित त्रासदी है, क्योंकि कामकाज देखने से जुड़े लोग ही इस हादसे के लिए जिम्मेदार हैं.
यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि कुछ समय से वैष्णो देवी मंदिर में अति विशिष्ट (वीआइपी) संस्कृति अधिक ही बढ़ती जा रही है. विशिष्ट लोगों को उनकी बारी से पहले ही दर्शन की छूट दी जा रही है और उनकी पूजा को प्राथमिकता मिल रही है. इसके कारण सामान्य श्रद्धालुओं को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और वे स्थिति से रुष्ट व क्षुब्ध होकर ऐसे हादसों की स्थिति पैदा कर देते हैं.
लेकिन उठाये जा रहे ये सारे सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं, तो यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि राज्यपाल द्वारा गठित समिति एक सप्ताह के भीतर विस्तार से जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दे और जैसा कि दावा किया जा रहा है, भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए माकूल मानक संचालन प्रक्रियाओं व उपायों का सुझाव दे दे, तब भी ऐसी कार्य संस्कृति और व्यवस्था के रहते हुए कौन कह सकता है कि समिति के सुझाव ऐसे किसी अगले हादसे तक सरकारी फाइलों में ही कैद नहीं रह जायेंगे?
जांच रिपोर्टों को लेकर यह सवाल हरियाणा के भिवानी जिले के तोशम ब्लॉक के दादम खनन क्षेत्र में भूस्खलन से हुए हादसे के सिलसिले में भी जवाब की मांग करता है, जिसमें चार लोगों की मौत हुई है और करीब आधा दर्जन डंपर, ट्रक तथा कुछ मशीनें मलबे में दब गयी हैं. वहां भी हादसा इसीलिए हुआ है कि ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ की सीख को भुलाकर भूस्खलन के राज्य और उसके बाहर हुए पिछले हादसों के सबकों की अनसुनी कर दी गयी.
तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले में पटाखे बनाने की एक फैक्ट्री में आग लगने से हुए हादसे में भी इसीलिए मौतें हुईं कि पटाखे बनाने के वक्त पालन के लिए निर्धारित दिशानिर्देशों की अवहेलना की गयी, मानो अतीत में पटाखा फैक्टरियों में होते आये हादसों में जन-धन की हानि कोई बड़ी बात न हो.
साफ है कि हादसों से शुरू हुए नये साल में आगे उनकी पुनरावृत्ति रोकना सुनिश्चित करना है तो इधर-उधर की बात न कर हमें इस सवाल का सीधा सामना करना होगा कि हम और हमारा निजाम सबक न लेने की अपनी बीमारी से निजात पाने को तैयार हैं या नहीं? अगर सबक नहीं लिये गये, तो ऐसे हादसे हमारी नियति बने रहेंगे.