जनरल बिपिन रावत जैसे सेनानायक का यूं अचानक चले जाना बहुत दुखद और नुकसानदेह है. नुकसानदेह इसलिए कि वर्तमान में जो भू-राजनैतिक परिदृश्य है, उसमें उत्तर में, लद्दाख में चीनी सैनिक हरकतों से बाज नहीं आ रहे, वहीं पूर्वोत्तर में भी, पूरे तिब्बत के अंदर बड़े पैमाने पर चीनी सैनिक तैनात हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठिये बहुत ज्यादा सक्रिय हैं.
पिछले दो वर्षों से, जब से धारा 370 और 35ए समाप्त हुआ है, तब से पाकिस्तान की कोशिश यही रही है कि किसी तरह कश्मीर में फिर से अस्थिरता पैदा की जाए, क्योंकि वहां के हालात सामान्य होते जा रहे हैं, विकास हो रहा है और आमजन की जिंदगी में काफी सुधार आया है, जो उसे सहन नहीं हो रहा.
वहीं, अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता दोबारा से आ गयी है. वर्ष 1990 के अंदर कश्मीर विद्रोह शुरू करने के लिए पाकिस्तान ने तालिबान का इस्तेमाल किया था. हालांकि, अब तक ऐसी कोई चीज देखने में नहीं आयी है, लेकिन हम इस बात को खारिज भी नहीं कर सकते हैं कि आनेवाले समय में पाकिस्तान अस्थिरता फैलाने के लिए तालिबान की कुछ मदद ले ले. ऐसे समय में जनरल रावत के चले जाने से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा बहुत संवेदनशील स्थिति में है.
जनरल रावत संस्था निर्माता थे. जब कोई नयी चीज शुरू की जाती है, तो उसकी दिशा सही होनी चाहिए. जनरल रावत पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी, उन्होंने उम्दा तरीके से अपने कर्तव्य को निभाया है. नयी-नयी चीजें उन्होंने शुरू की हैं. इनमें सबसे अहम है सेना के तीनों अंगों को आपस में एकीकृत करना, ताकि उनके बीच तालमेल बना रहे.
जब भी युद्ध हो और उसमें तीनों सेना- जल, थल और वायु- शामिल हों, तो वे बेहतर तालमेल के साथ व प्रभावी तरीके से साथ काम कर सकें. इसके लिए उन्होंने बहुत काम किया है. जनरल रावत ने जो योजनाएं बनायी हैं, नये-नये आयाम उन्होंने कायम किये हैं, जो आधुनिकीकरण उन्होंने किया है, उसे लेकर बहुत अच्छा काम होता रहेगा. हालांकि उनके चले जाने का थोड़ा असर पड़ेगा, लेकिन इस समय पास काफी सीनियर कमांडर हैं, जो बहुत सक्षम हैं और वे इन चीजों को संभाल लेंगे.
देश में थियेटर कमांड की जो बात उठी है, उसका विचार और योजना जनरल रावत की ही थी. उनकी इस सोच के कारण आनेवाले समय में भारतीय सेना को बहुत लाभ होनेवाला है. आज के समय इसकी जरूरत भी है, ताकि युद्ध की जो भी योजना बने, वह बिल्कुल सही रहे.
सही समय पर, सही तरह की सेना और सही तरह के हथियारों का इस्तेमाल हो, जो आर्थिक रूप से भी सही रहे और सेना का उद्देश्य भी जल्द से जल्द पूरा हो सके. सेना के अंदर आपको हर हाल में विजयी होना होता है, इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता. लिहाजा, उस जीत को पाने के लिए संस्था के अंदर जो बदलाव किये गये हैं, उन्हें सीडीएस के तौर पर जनरल रावत ने ही शुरू किया था.
हम आज भी अपने तकरीबन 70 प्रतिशत हथियार, गोला-बारूद दूसरे देशों से आयात करते हैं. इसे देखते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान के जरिये हमारे प्रधानमंत्री ने नयी मुहिम शुरू की है. हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें, इसके लिए प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री दोनों काम कर रहे हैं. अब भी हमारे पास तकनीक और हथियार बनाने के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है. हालांकि आत्मनिर्भर भारत अभियान के जरिये अब इसमें तेजी लाने की कोशिश की जा रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा हथियार, गोला-बारूद हमारे देश में बनें और हम उस इसे आयात करने की जगह, उनका निर्यात करने की स्थिति में आ जाएं.
अभी तक केवल सरकारी कंपनियां, पीएसयू ही हथियारों का निर्माण कर रही थीं, लेकिन अब निजी क्षेत्र भी हथियार निर्माण के क्षेत्र में आगे आ रहे हैं. इन सबके लिए योजना बनाना कि क्या चीज चाहिए, कितनी तादाद में चाहिए, किस तरह की तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए, इसे लेकर सीडीएस मुख्यालय में मंत्रणा होती थी और उसे आगे बढ़ाया जाता था.
चूंकि जनरल रावत सीडीएस थे, तो सेना की तरफ से सरकार को जो सलाह देनी होती है, वे ही देते थे. वे वन प्वाइंट एडवाइजर का काम करते थे. अब तक यह होता था कि सेना के तीनों अंगों के अलग-अलग प्रमुख होते थे, पर हमारी एक व्यवस्था थी, जिसके तहत तीनों से सलाह होती थी. हालांकि उस व्यवस्था में थोड़ी-सी कमी थी, लेकिन सीडीएस का रैंक आने के बाद यह कमी काफी हद तक दूर हाे गयी.
सीडीएस एक नयी संस्था है, जो भारत के लिए बहुत जरूरी है. जनरल रावत बहुत स्पष्ट सोच के व्यक्ति थे. बहुत कम बोलने वाले, लेकिन काम में एकदम माहिर. बेहद बुद्धिमान और स्मार्ट अधिकारी थे. चूंकि वे बेहद काबिल थे, उनका करियर बहुत उत्कृष्ट रहा है, इसी कारण वे पहले सीडीएस भी बने. इस काम के लिए वे एकदम सही व्यक्ति थे.
पहले सीडीएस होने के नाते उनके ऊपर बहुत ज्यादा जिम्मेदारी थी कि इस संस्था को इस प्रकार शुरू किया जाए, ताकि उनके बाद जो भी सीडीएस आएं, उनको पूरी तरह से गतिशील व सक्रिय व्यवस्था मिले, ताकि वे सही तरीके से काम कर सकें. इसके लिए जनरल रावत पूरे मनोयोग से काम कर रहे थे.
सैन्य बलों की क्षमता को बढ़ाने में योगदान देने के लिए राष्ट्र उन्हें याद रखेगा. वास्तव में सैन्य बलों और राष्ट्र के लिए यह कभी न भरने वाली कमी है. हमारी भावी पीढ़ी प्रतिष्ठित सेनानायक से प्रेरणा लेना जारी रखेगी. (बातचीत पर आधारित).