बिजली खर्च करने में संयम

यदि ऊर्जा का किफायती इस्तेमाल सुनिश्चित किये बगैर ऊर्जा के उत्पादन की मात्रा बढ़ायी जाती रही, तो इस कार्य में खर्च किया जा रहा पैसा व्यर्थ जाने की संभावना है और इसका विषम प्रभाव अर्थव्यवस्था के विकास पर पड़ेगा.

By पंकज चतुर्वेदी | December 2, 2021 8:01 AM

एक महीने पहले कोयले की कमी के चलते अंधियारा छाता दिख रहा था. भारत की अर्थव्यवस्था में आये उछाल ने ऊर्जा की खपत में तेजी से बढ़ोतरी की है. यही कारण है कि देश गंभीर ऊर्जा संकट के मुहाने पर खड़ा है. आर्थिक विकास के लिए सहज और भरोसेमंद ऊर्जा की आपूर्ति अत्यावश्यक होती है,जबकि नयी आपूर्ति का खर्च तो बेहद डांवाडोल है. दूसरी तरफ हमारे सामने 2070 तक शून्य कार्बन की चुनौती भी है.

भारत में दुनिया का कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन खपत के कारण कोयला आयात करने में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. हमारे कुल बिजली उत्पादन 3,86,888 मेगावॉट में थर्मल पावर की भागीदारी 60.9 फीसदी है. इसमें कोयला आधारित 52.6 फीसदी, लिग्नाइट, गैस व तेल आधारित बिजली घरों की क्षमता क्रमश: 1.7, 6.5 और 0.1 प्रतिशत है. हम हाइड्रो परियोजना से महज 12.1 प्रतिशत, परमाणु से 1.8 और अक्षय ऊर्जा स्रोत से 25.2 प्रतिशत बिजली प्राप्त कर रहे हैं.

सितंबर, 2021 तक देश के कोयला आधारित बिजली उत्पादन में लगभग 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. बिजली संयंत्रों में कोयले की दैनिक औसत आवश्यकता लगभग 18.5 लाख टन है, जबकि हर दिन महज 17.5 लाख टन कोयला ही वहां पहुंचा. कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी आयी है और बीते दो महीनों में ही बिजली की खपत 2019 के मुकाबले में 17 प्रतिशत बढ़ गयी है. इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है.

कोयले का इस्तेमाल हम अनंत काल तक कर नहीं सकते, क्योंकि इसका भंडार सीमित है. दुनिया पर मंडरा रहे जलवायु परिवर्तन के खतरे के कारण भारत के सामने भी कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने की चुनौती है. कोयले से संचालित बिजलीघरों से वायु प्रदूषण की समस्या खड़ी हो रही है.

नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड के कारण अम्ल बारिश जैसे कुप्रभाव भी संभावित हैं. इन बिजलीघरों से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड धरती के गरम होने और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव का कारक है. परमाणु बिजलीघरों के कारण पर्यावरणीय संकट अलग तरह का है. परमाणु विखंडन से बिजली बनाना किसी भी समय परमाणु बम के विस्फोट जैसे कुप्रभावों को न्योता है. आण्विक पदार्थों और रेडियो एक्टिव कचरे का निपटारा बेहद संवेदनशील और खतरनाक काम है.

हवा सर्वसुलभ और खतराहीन ऊर्जा स्रोत है, लेकिन इसे महंगा, अस्थिर और गैर-भरोसेमंद माध्यम माना जाता रहा है. इस समय देश में महज 39.870 हजार मेगावॉट बिजली हवा से बन रही है. पवन ऊर्जा उपकरणों की असफलता का मुख्य कारण भारत के माहौल के मुताबिक उसकी संरचना का नहीं होना है. हमारे यहां बारिश, तापमान, आर्द्रता और खारापन, पश्चिमी देशों से भिन्न है. जिन स्थानों पर बेहतर पवन बिजली की संभावना है, वहां तक संयंत्र के भारी-भरकम खंभों और टरबाइन को ले जाना भी बेहद खर्चीला है.

सूरज से बिजली पाना भारत के लिए बहुत सहज है. हमारे यहां साल में आठ से दस महीने धूप रहती है. जहां अमेरिका व ब्रिटेन में प्रति मेगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन पर खर्चा क्रमश: 238 और 251 डॉलर है, वहीं भारत में यह महज 66 डॉलर प्रति घंटा है. कम लागत के कारण घरों और वाणिज्यिक एवं औद्योगिक भवनों में इस्तेमाल किये जाने वाले छत पर लगे सौर पैनल जैसी रूफटॉप सोलर फोटोवोल्टिक (आरटीएसपीवी) तकनीक, वर्तमान में सबसे तेजी से लगायी जाने वाली ऊर्जा उत्पादन तकनीक है.

अनुमान है कि आरटीएसपीवी से 2050 तक वैश्विक बिजली की मांग का 49 प्रतिशत तक पूरा होगा. यदि केवल सभी ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी, सरकारी भवन, पंचायत स्तर पर सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था को स्तरीय सोलर सिस्टम में बदल दिया जाये, तो हम हर साल हजारों मेगावाट बिजली का कोयला बचा सकते हैं.

सौर ऊर्जा के लिए अधिक भूमि की जरूरत होती है. सोलर प्लांट में इस्तेमाल प्लेट्स के खराब होने पर उसके निस्तारण का कोई तरीका अभी तक खोजा नहीं गया है. यदि उन्हें वैसे ही छोड़ दिया गया तो जमीन में गहराई तक उसके प्रदूषण का प्रभाव होगा. पिछले कुछ सालों में हमारे यहां अक्षय ऊर्जा से प्राप्त बिजली संचय और उपकरणों में बैटरी का प्रयोग बढ़ा हैं, जबकि यह गौर नहीं किया जा रहा है कि खराब बैटरी का सीसा और तेजाब पर्यावरण की सेहत बिगाड़ देता है.

बिजली के बगैर प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती, जबकि बिजली बनाने के हर सलीके में पर्यावरण के नुकसान की संभावना है. यदि ऊर्जा का किफायती इस्तेमाल सुनिश्चित किये बगैर ऊर्जा के उत्पादन की मात्रा बढ़ायी जाती रही, तो इस कार्य में खर्च किया जा रहा पैसा व्यर्थ जाने की संभावना है और इसका विषम प्रभाव अर्थव्यवस्था के विकास पर पड़ेगा.

विकास के समक्ष इस चुनौती से निबटने का एकमात्र रास्ता है- ऊर्जा का अधिक किफायत से इस्तेमाल करना. ऊर्जा का संरक्षण करना उसके उत्पादन के बराबर है- पूरी दुनिया में लोगों का ध्यान ऊर्जा की बचत की ओर आकर्षित करने के लिए इस नारे का इस्तेमाल किया जा रहा है. बिजली की बचत करना, नये बिजली घर लगाने के बनिस्पत बेहद सस्ता होता है.

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