भारतीय फिल्मों की महानतम गायिका

जो उनकी नैसर्गिक गायन प्रतिभा थी, वह सिर्फ सीखने से नहीं आ सकती थी. जैसा गीत का भाव होता था, वैसी ही गहन उनकी प्रस्तुति होती थी.

By संपादकीय | February 7, 2022 10:26 AM
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लता मंगेशकर निश्चित ही भारतीय फिल्म संगीत की महानतम गायिका थीं. ऐसा लगता नहीं है कि लंबे समय तक कोई उनकी जगह ले सकता है. दशकों तक गायन में शीर्ष पर उनके बने रहने की वजह यह रही कि उनकी आवाज कायम रही, सुर-ताल आदि सब चलता रहा. साल 1947 में उनका पहला पार्श्व गीत आया था- पांव लगूं कर जोरी. यह ‘आपकी सेवा में’ फिल्म का गीत था. फिर उनके कई गीत लोकप्रिय हुए और उस दौर के सभी बड़े संगीतकारों ने यह समझा कि यह तो बिल्कुल अलग आवाज है तथा ऐसी विविधता किसी अन्य गायिका में नहीं है.

ऐसे में सभी लता मंगेशकर से गायन कराना चाहते थे, ओपी नैय्यर को छोड़कर, जो कि एक अलग कहानी है. शेष सभी संगीतकारों की नजर में वे सर्वश्रेष्ठ थीं. लता लगातार लोकप्रिय होती चली गयीं. इस बीच अनेक गायिकाएं आयीं, जो प्रतिभाशाली जरूर थीं, लेकिन लता मंगेशकर उनकी तुलना में आगे बनी रहीं. उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर स्वयं बड़े गायक थे, जिनसे उन्हें शिक्षा मिली. बाद में उन्होंने कुछ उस्तादों से शास्त्रीय गायन भी सीखा.

लेकिन जो उनकी नैसर्गिक गायन प्रतिभा थी, वह सिर्फ सीखने से नहीं आ सकती थी. लता मंगेशकर के गायन में जो भाव उभरता था, जो संवेदना का प्रवाह था, वह विशिष्ट था. जैसा गीत का भाव होता था, वैसी ही गहन उनकी प्रस्तुति होती थी.

जहां उनका गायन विशिष्ट था, वहीं वे उसके गायन के महत्व को भी समझती थीं. गीतों की रॉयल्टी के संबंध में हुआ विवाद जगजाहिर है. लता मंगेशकर का मानना था कि गीतों के रिकॉर्ड की बिक्री में गायकों को भी रॉयल्टी मिलनी चाहिए, जबकि मोहम्मद रफी जैसे कुछ लोगों का कहना था कि संगीतकार हमसे गाने गवा लेते हैं और उसके एवज में हमें हमारी फीस दे देते हैं.

सो, हम लोगों को रॉयल्टी की मांग नहीं करनी चाहिए. इस मुद्दे पर फिल्म उद्योग जगत में बहुत विवाद हुआ था. यह विवाद इस हद तक पहुंच गया कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी ने काफी समय तक एक साथ गाना नहीं गाया. यह मसला अहम है क्योंकि यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि लोगों को गायक ही याद रह जाते हैं और संगीतकारों का नाम भूल जाता है.

उनके व्यक्तित्व का एक दूसरा पक्ष यह रहा था कि वे बहुत सामाजिक नहीं थीं और उनका घुलना-मिलना सीमित लोगों से था. फिल्मी दुनिया की बहुत से गतिविधियों से एक प्रकार से उनका परहेज रहता था. इस वजह से उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में सार्वजनिक तौर पर अधिक चर्चा नहीं रही. गाने के मामले में वे पेशेवर थीं. इससे यह भी हुआ कि लोगों का अधिक ध्यान उनके गायन और उनकी गायन प्रतिभा पर रहा.

लता मंगेशकर के गाये सैकड़ों गीत हैं और लोगों की पसंद भी उसी तरह से अलग-अलग है. उनके गीतों में से पसंदीदा गीतों का चयन करना बेहद मुश्किल है क्योंकि सभी गीतों में खासियत है और उनके बारे में बहुत सी बातें की जा सकती हैं. मुझे सबसे पहले उनका गाया गीत- लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो- याद आता है. ‘वो कौन थी’ फिल्म के इस गीत के संगीतकार मदन मोहन थे.

यह लाजवाब पहाड़ीनुमा धुन पर बना गीत है. इस गीत का फिल्मांकन भी शानदार था. आज भी इसे बड़े चाव से सुना जाता है. चित्रगुप्त द्वारा दिये गये संगीत पर उनका गाया गीत- दिल का दीया जला के गया, ये कौन मेरी तनहाई में- उल्लेखनीय है. यह गीत ‘आकाशदीप’ फिल्म में था. ‘ये समां समां ये प्यार का’ भी मेरा बेहद पसंदीदा गीत से है, जिसे कल्याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया था. शंकर-जयकिशन की धुन से सजा ‘लव इन टोक्यो’ फिल्म का गीत- मुझे तुम मिल गये हमदम, सहारा हो तो ऐसा हो- भी बहुत पसंद है.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में गाये लता मंगेशकर के गीतों की बहुत लंबी सूची है. उनमें उनके कुछ सबसे लोकप्रिय गीत शामिल हैं. फिल्म ‘उत्सव’ में उन्होंने अपनी बहन आशा भोंसले के साथ जो गीत गाया है- मन क्यूं बहका रे बहका आधी रात को, बेला महका रे महका आधी रात को- बहुत शानदार गीत है और लोकप्रिय भी है. सचिनदेव बर्मन के संगीत पर उनका गाया गीत- नदिया किनारे हेरा आयी कंगना- का उल्लेख करना चाहूंगा.

यह फिल्म ‘अभिमान’ का गीत है. ‘बंदिनी’ का गीत- मेरा गोरा रंग लेई ले- सभी को पसंद है. राहुलदेव बर्मन के साथ लता मंगेशकर का गाया- घर आ जा घिर आयी बदरा संवरिया- गीत भी लाजवाब है. यह इस जोड़ी का पहला ही गीत था, जो ‘छोटे नवाब’ फिल्म में है.

‘आंधी’ फिल्म का गीत- तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं- भी शानदार गीतों की सूची में है. बाद के संगीतकारों में राजेश रोशन के संगीत पर लता मंगेशकर का गाया- पल भर में ये क्या हो गया- बेहद कर्णप्रिय है. यह ‘स्वामी फिल्म का गीत है. एआर रहमान के साथ उन्होंने कुछ बहुत लोकप्रिय गीत गाये हैं, उदाहरण के लिए, फिल्म ‘दिल से’ का गीत- जिया जले जां जले.

लता मंगेशकर की आवाज की विविधता और उसके व्यापक दायरे को इन कुछ गानों के हवाले से समझा जा सकता है. ऐसी प्रतिभा शायद ही हमारे सिनेमा को जल्दी मिल सकेगी. बहरहाल. लता मंगेशकर भले आज हमारे साथ नहीं हैं, पर उनकी आवाज हमेशा साथ रहेगी.

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