मदद पर जोर

आतंक व अराजकता रोकने, मानवाधिकार सुनिश्चित करने और समावेशी सरकार बनाने के बारे में तालिबान ने जो वादे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किये हैं, उन पर तुरंत अमल होना चाहिए.

By संपादकीय | December 24, 2021 2:18 PM
an image

अफगानिस्तान में गंभीर होते मानवीय संकट से अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. हालांकि, भारत समेत विभिन्न देशों और संगठनों द्वारा राहत सामग्री भेजी जा रही है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. तालिबान शासन को अभी किसी देश ने आधिकारिक मान्यता नहीं दी है और उसके बड़े नेताओं पर कई प्रतिबंध है. इससे भी बाधा आ रही है. इस अवरोध को दूर करने की प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रतिबंधों में छूट देने का प्रस्ताव पारित किया है.

भारत ने भी इसका समर्थन किया है. भारत प्रारंभ से ही अफगान जनता की मदद करने का पक्षधर रहा है. कुछ दिन पहले भारत से जीवनरक्षक दवाओं की खेप भेजी गयी है. इसके अलावा गेहूं और अन्य खाद्य वस्तुएं भी भेजी जा रही हैं. भारत ने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए टीके भेजने की इच्छा भी जतायी है.

सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का समर्थन करने के बारे में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरूमूर्ति ने कहा है कि मदद की मात्रा बढ़ायी जानी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थाओं के लिए अड़चनें हटें. भारत ने यह भी कहा है कि जो भी राहत सामग्री भेजी जा रही है, वह सबसे पहले महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों समेत सर्वाधिक वंचित लोगों तक पहुंचनी चाहिए.

तालिबानी शासन को लेकर दुनिया में संदेह बना हुआ है. इसलिए यह देखना भी जरूरी है कि जो सामान और धन अफगानिस्तान भेजा जाये, उसे मानवीय मदद के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल न हो. उल्लेखनीय है कि करीब 2.30 करोड़ अफगान लोगों को तुरंत समुचित भोजन की आवश्यकता है, जिनमें करीब नब्बे लाख बहुत विकट स्थिति में हैं. स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि आबादी के मात्र पांच फीसदी लोगों के पास पर्याप्त खाद्य उपलब्धता है.

अमेरिकी सेनाओं की वापसी और दूतावासों के हटने के समय जो अर्थव्यवस्था 20 अरब डॉलर की थी, उसके सिकुड़कर चार अरब डॉलर होने की आशंका है. ऐसे में लगभग 3.80 करोड़ आबादी के 97 प्रतिशत हिस्से के गरीबी की चपेट में आने का अंदेशा है. अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने से पहले से ही अफगानिस्तान दुनिया के उन देशों की सूची में था, जहां सबसे गंभीर आपात मानवीय स्थिति है. बीते महीनों में यह निरंतर बिगड़ती जा रही है.

चार दशक के युद्ध, गृह युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति, निर्धनता, सूखा, खाद्य सुरक्षा का अभाव और महामारी समेत बीमारियों ने अफगानिस्तान को जर्जर कर दिया है. कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मदद के सहारे ही देश चल रहा है, पर तालिबान की वापसी के बाद इस मदद की आमद पर नकारात्मक असर पड़ा है. लाखों लोग देश छोड़ चुके हैं. आतंक व अराजकता रोकने, मानवाधिकार सुनिश्चित करने और समावेशी सरकार बनाने के बारे में तालिबान ने जो वादे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किये हैं, उन पर तुरंत अमल होना चाहिए.

Exit mobile version