ऊर्जा संकट की आशंका
यूरोप और चीन में बिजली और ईंधन की कमी ने दुनिया के सामने ऊर्जा संकट और मुद्रास्फीति की चिंताओं को गहरा कर दिया है.
यूरोप और चीन में गंभीर होता ऊर्जा संकट दुनियाभर के लिए चिंता की वजह बनता जा रहा है. जीवाश्म आधारित ईंधनों की खपत के मामले में शीर्षस्थ देशों में शामिल चीन में कुछ माह पहले से ही बिजली कम खर्च करने की कवायद शुरू हो गयी थी. यह कटौती फैक्टरियों पर भी लागू हो रही है. कई शहरों में कुछ घंटे बिजली गुल रह रही है.
यूरोप के ऊर्जा बाजार में इन दिनों प्राकृतिक गैस से लेकर विभिन्न पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें इतिहास में सबसे अधिक हैं. ब्रिटेन की राजधानी लंदन में कई गैस स्टेशन बंद हैं. नॉर्वे के ग्रिड से अनेक यूरोपीय शहरों और उद्योगों को बिजली आपूर्ति होती है, पर वहां पानी की कमी से उत्पादन पर नकारात्मक असर की आशंका बढ़ गयी है.
हवाओं की रफ्तार घटने से पवनचक्कियों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है. बाजार के जानकारों का मानना है कि इस स्थिति में जल्दी सुधार की संभावना नहीं है और जाड़े के मौसम में किल्लत और बढ़ सकती है क्योंकि तब ईंधन एवं ऊर्जा की मांग में बहुत वृद्धि होगी. उल्लेखनीय है कि यूरोप में पिछले जाड़े की लंबी अवधि में बिजली की खपत बहुत बढ़ गयी थी, जिससे भंडारों में रखी ईंधन की मात्रा घट गयी है.
कोरोना संकट और लॉकडाउन से भी स्थिति बिगड़ी है. यूरोप में भारी मात्रा में गैस आपूर्ति करनेवाले रूस जैसे देश अपने देश में भंडारण को प्राथमिकता दे रहे हैं. जो देश ईंधनों का आयात करते हैं, वे भी जमा करने की होड़ में हैं. पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमत के कारण कोयला का इस्तेमाल बढ़ने से जलवायु परिवर्तन को रोकने की कोशिशों के लिए खतरा भी बढ़ गया है.
खाद संयंत्रों में उत्पादन घटने से खेती भी प्रभावित हो सकती है. ऐसी स्थिति में चीन और यूरोप से होनेवाले निर्यात में कमी आ सकती है. कच्चे माल और ढुलाई के लिए कंटेनरों की कमी कोरोना महामारी के असर से निकलने की कोशिश कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए पहले से ही चिंता का विषय बनी हुई हैं. अब यह चीन और यूरोप का ऊर्जा संकट सामने है. कच्चे तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि भारत समेत कई देशों के लिए परेशानी की वजह है. कच्चा तेल अस्सी डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है, तो कोयले के दाम बीते 13 वर्षों में सर्वाधिक हैं.
मौजूदा स्थिति में इनमें कमी की कोई गुंजाइश नहीं है. हमारा देश पेट्रोलियम उत्पादों का बड़ा आयातक है. इसका खर्च तो बढ़ेगा ही, साथ ही हमें अन्य उत्पादों के आयात पर भी अधिक दाम चुकाना पड़ेगा. इससे मुद्रास्फीति भी बढ़ेगी. यूरोप और चीन का वर्तमान ऊर्जा संकट भारत जैसे देशों के समक्ष भी आ सकता है क्योंकि कोरोना महामारी पर नियंत्रण के बाद औद्योगिक एवं अन्य गतिविधियां तेज हो रही हैं. इस स्थिति में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की क्षमता बढ़ाना तथा आधुनिक तकनीक से खपत कम करना एक समाधान हो सकता है.