नवाचार की आज जितनी अहमियत है, उतनी पहले कभी नहीं रही. यही वजह है कि विश्व अर्थव्यवस्था तेजी से औद्योगिक आर्थिकी से नवाचार आर्थिकी का रूप अख्तियार कर रही है. दरअसल, नवाचार क्षमता निर्माण की वह प्रक्रिया है, जिसमें नये विचारों के साथ उद्यमशीलता का विकास होता है. विकास, रोजगार, प्रतिस्पर्धा और 21वीं सदी में अवसर के नजरिये से नवाचार एक इंजन की भांति है.
इसके महत्व को देखते हुए भारत सरकार की तरफ से बीते एक दशक में राष्ट्रीय नवाचार परिषद, अटल इनोवेशन मिशन, भारत समावेशी नवाचार कोष जैसे अनेक प्रयास हुए हैं. हालांकि, शोध और नवाचार में कम निवेश के चलते उक्त पहलें पर्याप्त नहीं रहीं. भारत में शोध और नवाचार पर निवेश जीडीपी का एक प्रतिशत भी नहीं है, जबकि अमेरिका में यह 2.8 प्रतिशत, इस्राइल में 4.3 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 4.2 प्रतिशत तक है.
हालांकि, विश्व बाजार में सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्युटिकल्स और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बेजोड़ छवि है, साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स जैसी नये दौर की प्रौद्योगिकी में भी बढ़त बन रही है. इससे देश की नवाचार-उन्मुख देश के रूप में पहचान बनी है. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआइपीओ) के वैश्विक नवाचार सूचकांक की नवीनतम रिपोर्ट में भारत को 46वां स्थान दिया गया है, जबकि 2015 में भारत 81वें स्थान पर था.
इस प्रकार भारत ने मात्र छह वर्ष की अवधि में 35 स्थान की लंबी छलांग लगायी है. विशाल ज्ञान पूंजी वाले भारत में बीते कुछ वर्षों में अनुसंधान संगठनों ने उद्यमिता के लिए एक जीवंत पारिस्थितिकी तैयार की है. ब्लूमबर्ग के वार्षिक नवाचार सूचकांक में भी भारत में विनिर्माण क्षमता विस्तार, सार्वजनिक संस्थानों में उच्च तकनीक की सघनता के बढ़ने को महत्व दिया गया है.
देश में नवाचार की संस्कृति के विकास हेतु नीति आयोग 2019 से राज्यों के लिए नवाचार सूचकांक जारी कर रहा है. वर्तमान में कर्नाटक देश का सबसे नवाचारी राज्य है, तो वहीं तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हरियाणा ने भी मजबूत इच्छाशक्ति दिखायी है. सबसे युवा आबादी वाले देश में सतत विकास के लिए ऐसा कार्यबल तैयार करने की आवश्यकता है, जो रोजगार कौशल और ज्ञान से युक्त हो. इसके लिए मानव संसाधन और कौशल विकास पर बड़े निवेश की जरूरत है.
चुनौतीपूर्ण और आर्थिक अनिश्चितता से भरी उद्यमिता की दुनिया में युवाओं को प्रेरित करने के लिए नीतिगत स्तर पर अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करना होगा. नये विचारों को विकसित करने के लिए समय और प्रयोग दोनों की जरूरत होती है. जिस समाज में चुनौती का सामना करने का प्रचलन नहीं होगा, वहां नवाचार सीमाओं में ही बंधा रहेगा. अगर सरकारी नीतियां नवाचार के लिए अनुकूल होंगी, तो निश्चित ही उसका अर्थव्यवस्था के विकास और रोजगार सृजन में सकारात्मक प्रभाव होगा.