वैश्विक कर प्रणाली
भारत को कर प्रणाली लागू करने की प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभानी है,क्योंकि तकनीकी कंपनियों का बड़ा बाजार हमारे देश में है.
पूंजी, श्रम व तकनीक के विस्तार के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है. एक से अधिक देशों में अपने उद्योग, सेवा और उत्पादन तंत्र से इन कंपनियों की भारी आमदनी होती है, लेकिन उस हिसाब से कई देशों को राजस्व नहीं मिल पाता है. ये कंपनियां या तो उस देश को कर देती हैं, जहां उनके मुख्यालय होते हैं या वे ऐसे देशों में अपने कार्यालय खोलती हैं, जहां उन्हें कम कर चुकाना पड़ता है.
इस वजह से उन देशों को भी राजस्व का नुकसान होता है, जो वास्तव में आय में मुख्य योगदान करते हैं. इस विसंगति को दूर करने के लिए इस वर्ष जुलाई में 130 देशों ने वैश्विक न्यूनतम कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की है. भारत भी इन देशों में शामिल है और वह इस प्रणाली के प्रारूप पर अपनी राय को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है. इसमें प्रावधान किया गया है कि कंपनी जिस देश में कार्यरत होगी, वहां उसे कम-से-कम 15 प्रतिशत कर देना होगा.
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उम्मीद जतायी है कि जल्दी ही सभी देश इस संबंध में निर्णय कर लेंगे. अगले सप्ताह अमेरिकी राजधानी में जी-20 देशों के वित्तमंत्रियों की बैठक संभावित है. भारत उन देशों में शामिल है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा समुचित कर न देने की प्रवृत्ति के शिकार हैं.
कई ऐसी कंपनियां हैं, जो यह तर्क देती हैं कि उनका मुख्यालय अन्यत्र है, इसलिए वे कुछ करों को यहां नहीं भरेंगे. मौजूदा व्यवस्था में ठोस कानूनी प्रावधानों की कमी और ताकतवर देशों के दबाव की वजह से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को राजस्व घाटे के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ता है. डिजिटल तकनीक और इंटरनेट के प्रसार ने भी सरकारों को लाचार कर दिया है.
हालांकि ऐसी कर व्यवस्था की मांग अविकसित और विकासशील देश लंबे समय से कर रहे थे, पर धनी देश अपनी कंपनियों के हितों को प्राथमिकता दे रहे थे. विभिन्न देशों के कानूनों में भिन्नता तथा अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठाकर कंपनियों ने जब विकसित देशों में ही कम कर देना शुरू किया, तब उनकी नींद खुली. इसका परिणाम वैश्विक कराधान के रूप में हमारे सामने है. इसके लागू हो जाने के बाद अगर कोई कंपनी भारत में अपनी गतिविधियों से जो अर्जित करेगी, उस हिसाब से उसे निर्धारित कर देना होगा.
अनेक तकनीकी कंपनियां ऐसी हैं, जिनकी उपस्थिति बड़े उद्योगों की तरह नहीं है, पर वे भारत जैसे देशों से खूब कमाती हैं. कुछ साल से भारत सरकार और तकनीकी कंपनियों में इस मसले पर तनातनी भी है. भारत और चीन समेत 130 से अधिक देशों ने इस व्यवस्था का समर्थन किया है, पर सफलता के लिए अधिकतर देशों की अंतिम सहमति अनिवार्य है, अन्यथा बड़ी कंपनियां कर बचाने के रास्ते निकाल लेंगी. भारत को इस प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभानी है क्योंकि तकनीकी कंपनियों का बड़ा बाजार हमारे देश में है.