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राहत की उम्मीद

एक वर्ष में खाद्य तेलों की कीमत में लगभग 60 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है. शुल्क में कमी से खुदरा कीमत में कमी आने की आशा है.

पिछले कुछ समय से खाद्य तेलों के दाम में बढ़ोतरी रसोई के बजट पर असर डाल रही है. इससे खाद्य मुद्रास्फीति भी बढ़ी है. अब महंगाई से कुछ राहत मिलने की संभावना है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में कटौती करने की घोषणा की है. कच्चे पाम ऑयल के आयात पर अभी 10 प्रतिशत शुल्क लिया जाता है. अब यह केवल 2.5 प्रतिशत होगा. इसी तरह कच्चे सोया और सूरजमुखी के तेल पर लगनेवाले शुल्क को 7.5 प्रतिशत से घटाकर 2.5 प्रतिशत कर दिया गया है.

कृषि अधिशुल्क को जोड़कर अभी तक इन तेलों के आयात पर प्रभावी शुल्क 30.25 प्रतिशत है, जो अब कम होकर 24.75 प्रतिशत रह जायेगा. खाद्य मंत्रालय का आकलन है कि इस कटौती से तेलों की खुदरा कीमत में प्रति लीटर चार से पांच रुपये की कमी होगी. उम्मीद की जानी चाहिए कि तेल उत्पादक जल्दी ही इसका लाभ ग्राहकों को देंगे. सरसों की आवक में कमी खाद्य तेलों के दाम में उछाल की मुख्य वजह है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें घटने लगी हैं. ऐसे में जल्दी ही भारतीय बाजार में सुधार की आशा है. शुल्क घटाने से आयातकों का बोझ कम होगा और वे अधिक आयात कर सकेंगे. उससे भी सरसों की कमी का दबाव कम होगा. उल्लेखनीय है कि खाद्य तेल और दालों की महंगाई का योगदान मुद्रास्फीति बढ़ाने में सबसे अधिक होता है. एक वर्ष पहले की तुलना में खाद्य तेलों की कीमत में लगभग 60 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है.

आयात में कुछ गिरावट और घरेलू आपूर्ति में कमी से उत्पन्न स्थिति की बेहतरी के लिए सरकार करों और शुल्कों को कम करने पर विचार कर रही है तथा इस संबंध में राज्य सरकारों से बातचीत की योजना है. आयात शुल्क में कमी इसी प्रयास का हिस्सा है. एक उम्मीद फसलों के बाजार में आने से भी है. सरकार का आकलन है कि तब मुद्रास्फीति चार से छह प्रतिशत के दायरे में आ जायेगी. रिजर्व बैंक ने भी अपने अनुमान में बताया है कि फसलों की आवक से मुद्रास्फीति घटेगी. महंगाई बढ़ने के कारण लोगों की बचत पर भी असर पड़ा है,

जो पहले से ही कोरोना महामारी से पैदा हुई स्थितियों तथा पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के महंगे होने से चिंताजनक स्थिति में है. खाद्य पदार्थों की महंगाई सबसे अधिक गरीब और निम्न आय वर्गीय परिवारों को प्रभावित करती है, जो अपनी कमाई का अधिकांश भोजन पर खर्च करते हैं. यही वर्ग महामारी, लॉकडाउन और बेरोजगारी से भी सबसे अधिक परेशानी में हैं.

खाद्य मुद्रास्फीति को नहीं रोका गया, तो रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति संबंधी लक्ष्य भी हासिल नहीं हो सकेंगे. अर्थव्यवस्था की गति तेज करने के लिए मांग बढ़ाना जरूरी है, जो तभी होगा, जब लोगों के पास बचत होगी. बहरहाल, करों व शुल्क में कटौती के साथ अगले कुछ महीनों में फसलों के बाजार में आने से दामों में गिरावट होगी.

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