परंपरागत एवं पेशेवर शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थानों का योगदान और दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है. इस कारण बड़ी संख्या में छात्र शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. पर कई छात्र पात्रता होने के बावजूद इन संस्थानों में प्रवेश नहीं ले पाते हैं क्योंकि उनके माता-पिता के पास शुल्क चुकाने की क्षमता नहीं होती. बहुत से अभिभावकों के लिए ऋण लेकर शुल्क चुकाना भी संभव नहीं होता है.
ऐसे में निर्धन पृष्ठभूमि से आनेवाले छात्र चिकित्सा, इंजीनियरिंग, प्रबंधन जैसे बेहतर विधाओं में शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते. इस समस्या के समाधान के लिए बड़ी पहल करते हुए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने निर्देश जारी किया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटों के शुल्क सरकारी मेडिकल कॉलेजों के बराबर होंगे. जिस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में निजी कॉलेज होंगे, उनके शुल्क का निर्धारण उस प्रदेश के सरकारी संस्थान के अनुरूप होगा.
उल्लेखनीय है कि हर निजी मेडिकल कॉलेज में कुछ सीटें सरकारी कोटे की होती हैं. ऐसी सीटों पर सरकार की मेरिट सूची के अनुसार दाखिला होता है. निजी कॉलेजों की शुल्क बहुत अधिक होने से सरकारी कोटे में भी गरीब परिवारों के बच्चों के लिए नाम लिखा पाना आसान नहीं होता था. अब उन्हें कुछ सहूलियत हो जायेगी और जरूरत होने पर वे आसानी से बैंकों से भी कर्ज ले सकेंगे. इस निर्देश से जुड़ी एक और बात बेहद अहम है.
हर निजी मेडिकल कॉलेज में सरकारी कोटे का अनुपात एक समान नहीं होता है. कई संस्थानों में यह 50 फीसदी से कम होता है. जिन कॉलेजों में ऐसी स्थिति होगी, वहां सरकारी कोटे की सीटें सरकारी शुल्क के अनुरूप भरने के बाद उतनी सीटों में भी यह नियम लागू करना होगा कि कुल अनुपात 50 प्रतिशत हो जाए. हमारे देश में चिकित्सकों की बहुत कमी है.
आकलनों के अनुसार. देश में साढ़े दस लाख से भी कम डॉक्टर कार्यरत हैं. इस संख्या के हिसाब से प्रति हजार लोगों पर औसत उपलब्धता एक डॉक्टर से भी कम है. दुनिया में सबसे अधिक मेडिकल कॉलेज (595) भारत में हैं, जिनमें 89 हजार से अधिक सीटें हैं. यदि इनमें से 80 प्रतिशत छात्र चिकित्सा स्नातक की शिक्षा पूरी कर लेते हैं और उनमें से 75 फीसदी देश में चिकित्सा देते हैं, तो हर साल 53 हजार अतिरिक्त डॉक्टर हमें मिलेंगे.
लेकिन आबादी की बढ़ोतरी तथा डॉक्टरों की मांग को देखते हुए यह संख्या संतोषजनक नहीं है. इसे बढ़ाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तथा विभिन्न कल्याण कार्यक्रमों के साथ केंद्र सरकार हर जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की भी योजना पर काम कर रही है. अधिक छात्रों को चिकित्सा शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से 2022-23 के बजट में नये मेडिकल कॉलेजों और सीटों के लिए आवंटन में 27 सौ करोड़ रुपये की वृद्धि कर इसे 75 सौ करोड़ कर दिया गया है. शुल्क संरचना को समावेशी बनाने से स्वास्थ्य सेवा के विस्तार में मदद मिलेगी.