मेडिकल शिक्षा हो सुलभ
प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकारों का आह्वान किया है कि वे ऐसी नीतियां बनायें, जिनसे मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए जमीन आवंटन में आसानी हो सके.
यूक्रेन संकट के कारण वहां पढ़ रहे हजारों भारतीय छात्रों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है. उन्हें सुरक्षित भारत लाने की कोशिशें जोरों पर हैं, लेकिन अगर यह लड़ाई अधिक दिनों तक जारी रहती है या अस्थिरता कायम रहती है, इन छात्रों की पढ़ाई अधूरी रह सकती है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह सलाह बेहद अहम है कि छोटे देशों में मेडिकल शिक्षा हासिल करने के बजाय हमारे छात्र देश में ही दाखिला लें.
उन्होंने यह भी रेखांकित किया है कि ऐसे देशों में भाषा को लेकर भी मुश्किलें होती हैं. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेन का नाम नहीं लिया, पर मौजूदा संदर्भों में उनके कहने का आशय समझा जा सकता है. देश में मेडिकल कॉलेजों की कम संख्या और निजी संस्थानों की भारी फीस के कारण छात्रों को यूक्रेन जैसे देशों का रुख करना पड़ता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत देश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की दिशा में सरकार प्रयासरत है.
हाल ही में सरकार ने यह निर्देश भी जारी किया है कि निजी मेडिकल कॉलेज 50 प्रतिशत सीटों की फीस सरकारी शिक्षण संस्थाओं से अधिक नहीं रख सकते हैं. इन उपायों से यह उम्मीद की जा सकती है कि जल्दी ही सीटों की संख्या भी बढ़ेगी और बहुत से छात्र कम शुल्क देकर डॉक्टर बन सकेंगे. प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य सरकारों का आह्वान किया है कि वे ऐसी नीतियां बनायें, जिनसे मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए जमीन आवंटन में आसानी हो सके.
हमारे देश में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी कमी है. इस वजह से हमारी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है. ज्यादातर डॉक्टर और अस्पताल शहरी क्षेत्रों में हैं. इससे न केवल ग्रामीण आबादी और दूर-दराज के इलाकों में रहनेवाले लोगों को असुविधा होती है, बल्कि उन्हें अधिक खर्च भी करना पड़ता है. उल्लेखनीय है कि मेडिकल शिक्षा से जुड़े सुधारों के साथ-साथ केंद्र सरकार ने आगामी कुछ वर्षों में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च को लगभग दोगुना बढ़ा कर सकल घरेलू उत्पादन का 2.5 फीसदी तक करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है.
इससे स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के अलावा डॉक्टरों, नर्सों आदि की कमी को पूरा करने में भी मदद मिलेगी. राज्य सरकारें भी इस दिशा में प्रयास कर रही हैं, पर इसकी गति बढ़ाने की जरूरत है. भारतीय छात्रों के विदेश जाने से भारी मात्रा में धन भी बाहर चला जाता है. अनेक देशों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी प्रश्नचिह्न लगते रहते हैं.
ऐसा भी देखा गया है कि बहुत से छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद विदेशों में ही बस जाते हैं. यदि मेडिकल समेत हर तरह की पढ़ाई की व्यवस्था देश में ही सुलभ होगी, तो प्रतिभा पलायन को भी रोका जा सकता है. साथ ही, भू-राजनीतिक संकटों से भी अपने होनहारों को बचाया जा सकेगा. आशा है, केंद्र और राज्य सरकारें इस दिशा में अपनी कोशिशों को तेज करेंगी.