महंगा होता तेल
यह भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि पिछले साल अप्रैल और नवंबर के बीच हमारा आयात खर्च दुगुना होकर 71 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है.
भू-राजनीतिक तनावों के गहराने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की आपूर्ति को लेकर नयी आशंकाएं पैदा हो गयी हैं. विश्लेषकों का आकलन है कि आगामी महीनों में कच्चे तेल की प्रति बैरल की कीमत 100 डॉलर से अधिक हो सकती है. कुछ दिन पहले संयुक्त अरब अमीरात में हुए ड्रोन हमलों के बाद दाम 88 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गये हैं, जो सात वर्षों में सर्वाधिक है.
इसके अलावा रूस-यूक्रेन सीमा पर तनातनी बनी हुई है और अगर वहां स्थिति बिगड़ेगी, तो यूरोप में तेल और गैस की आपूर्ति पर बड़ा असर होगा क्योंकि यूक्रेन से होकर ही रूस से इन ऊर्जा स्रोतों को यूरोप भेजा जाता है. कुछ दिन पहले इराक-तुर्की तेल पाइपलाइन की आंशिक गड़बड़ी ने भी असर डाला है. ठंड के मौसम में तेल की मांग भी बढ़ी है, जो पहले से ही अधिक है क्योंकि महामारी की पाबंदियों के हटने के साथ दुनियाभर में औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों में तेजी आयी है.
कई महीनों से आपूर्ति शृंखला में अवरोध होने के कारण वैश्विक स्तर पर बहुत सारी चीजों के साथ तेल की उपलब्धता भी प्रभावित हुई है. तेल की मांग महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच गयी है, पर आपूर्ति में हर दिन कम-से-कम दस लाख बैरल की कमी है. लगभग सभी देश उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं. इससे राहत पाने के लिए भारत समेत पांच बड़े उपभोक्ता देशों ने पिछले माह संरक्षित भंडार से तेल निकाला था.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में चीन, अनेक यूरोपीय देश और अमेरिका में ऊर्जा संकट भी पैदा हो गया था. कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने की वैश्विक मांग को भी उत्पादक देशों ने अनसुना कर दिया है. माना जा रहा है कि ये देश महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई कर लेना चाहते हैं.
एक समस्या उत्पादन प्रणाली की सीमित क्षमता तथा कुछ उत्पादक देशों पर अमेरिका की पाबंदियों को लेकर भी है. यह स्थिति भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि घरेलू जरूरतों का 85 फीसदी हिस्सा आयात से पूरा होता है. दिसंबर में घरेलू उत्पादन में भी कुछ कमी आयी है. पिछले साल अप्रैल और नवंबर के बीच ही हमारा आयात खर्च दुगुना होकर 71 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है.
सरकारी प्रयासों की वजह से दो दिसंबर से तेल व गैस की खुदरा कीमतें स्थिर हैं, पर अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुधार नहीं होता है, तो फिर दाम बढ़ने लगेंगे. यदि प्रति बैरल दाम में एक डॉलर बढ़ेगा, तो देश में पेट्रोल व डीजल की कीमतों में 50 पैसे की वृद्धि करनी पड़ सकती है. इससे व्यापार घाटा तो बढ़ेगा ही, घरेलू मुद्रास्फीति के घटने की उम्मीदें भी टूट सकती हैं. अन्य कई देशों की तरह भारत में भी निर्माण, उत्पादन और कारोबार में बढ़ोतरी हो रही है, इसलिए तेल की मांग भी बढ़ रही है.