महामारी समेत अनेक वैश्विक चुनौतियों के साये में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन कई अर्थों में महत्वपूर्ण है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत की दृष्टि और भूमिका को तो सामने रखा ही, यह भी स्पष्ट कर दिया कि लोकतंत्र ही बेहतर भविष्य का आधार हो सकता है.
भारत में लोकतंत्र की ठोस नींव है, जिसका एक सिरा अतीत से जुड़ता है, तो दूसरा सिरा वर्तमान को परिभाषित कर रहा है. इसे रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ के रूप में प्रतिष्ठित किया. इस अर्थ में लोकतंत्र हमारे लिए केवल एक राजनीतिक सूत्र, विचार या व्यवस्था ही नहीं है, बल्कि वह हमारी संस्कृति का आधारभूत तत्व है. इसी वैचारिक दृष्टि के अनुरूप उन्होंने आतंकवाद का प्रसार करने और आक्रामक वर्चस्व के आधार पर विस्तार करने के कुछ देशों के प्रयासों को अस्वीकार किया.
इस क्रम में उन्होंने विश्व बैंक के व्यापार सुगमता सूचकांक को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करने पर भी प्रश्नचिन्ह उठाया. लोकतांत्रिक मूल्य केवल शब्द और विचार भर नहीं हैं, उन्हें वास्तविक नीति एवं व्यवहार में साकार करना होता है. यह यदि देशों की सरकारों और उनके समाजों से अपेक्षित है, तो वैश्विक संस्थाओं को भी इसका अनुसरण करना चाहिए.
महासभा के मंच से भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के प्रभाव व साख का मुद्दा उठाया है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब शक्तिशाली राष्ट्र इस विश्व संस्था के निर्णयों को अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए प्रभावित करते हैं या उसकी प्रक्रियाओं की अवहेलना या अवमानना करते हैं. विश्व में आज सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश तथा सबसे तीव्र गति से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत इस स्थिति को चुपचाप देखता नहीं रह सकता है.
आशा है कि प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन के बाद संयुक्त राष्ट्र और उसके अंतर्गत आनेवाली संस्थाओं के स्वरूप, संरचना एवं कार्यशैली पर गंभीर विमर्श प्रारंभ होगा. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से अत्यधिक प्रभावित होने के नाते भारत इसके भयावह खतरे से परिचित है, इसलिए उन्होंने अपने संभाषण में इसे प्रमुखता से उठाया. इस संदर्भ में उन्होंने अफगानिस्तान का उल्लेख किया और चेतावनी दी कि उस देश की धरती से अन्य देशों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.
यह विश्व, विशेषकर महत्वपूर्ण देशों, के लिए एक बड़ा प्रश्न है, लेकिन भू-राजनीतिक हितों को साधने की कोशिश में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा प्रयासों का अभाव है. पाकिस्तान द्वारा आतंक को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने तथा चीन की विस्तारवादी नीति पर प्रधानमंत्री मोदी के स्पष्ट शब्दों की अनुगूंज लंबे समय तक सुनायी देगी तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इन खतरों का ठीक से संज्ञान लेना होगा.
भारत में बड़े पैमाने पर चल रहे कल्याण कार्यक्रमों का उनके उल्लेख विकासशील और अविकसित देशों के लिए आदर्श हो सकते हैं. समानता और सहयोग से दुनिया के आगे बढ़ने के सिद्धांत पर आधारित विश्व व्यवस्था बनाने का प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान बेहतर विश्व का आग्रह है.