प्रदूषण का बोझ

वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि विकराल होती इस स्थिति को बदलने के लिए अभी भी हमारे पास वक्त है, बशर्ते कि तत्काल और महत्वाकांक्षी कार्रवाई हेतु उपाय शुरू हों.

By संपादकीय | February 22, 2022 9:58 AM

अनेक तरह के रसायनों और प्लास्टिक से होनेवाला प्रदूषण जैवविविधता को संकटग्रस्त कर रहा है. इससे पारिस्थितिकी प्रणाली अभूतपूर्व चुनौतियों में घिरती जा रही है. कीटनाशकों के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल से जीव-जंतुओं का जीवन खतरे में है. मनुष्यों द्वारा प्रयोग में लाये जानेवाले कुछ रसायन हार्मोन सिस्टम को प्रभावित कर रहे हैं. इन रसायनों से वन्यजीवों का विकास, उपापचय और प्रजनन बाधित हो रहा है, जो उनके अस्तित्व के लिए खतरनाक है.

वैज्ञानिक आगाह कर रहे हैं कि मानवनिर्मित रसायन और प्लास्टिक कचरा इस ग्रह और मानव जीवन को असहनीय बना रहे हैं. बाजार में लगभग 3.50 लाख प्रकार के उत्पादित रसायन हैं. इसकी बड़ी मात्रा कचरे के रूप में पर्यावरण में पहुंचती है. एक हालिया अध्ययन के अनुसार, आज हम जिन प्रभावों को देख रहे हैं, वे धरती और उसकी प्रणालियों के महत्वपूर्ण कार्यों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं.

रसायनिक प्रदूषकों को रोकने के लिए बड़े स्तर पर प्रयासों की दरकार है. रसायनों और प्लास्टिक कचरों को कम करने जैसे उपायों के साथ वैज्ञानिक अन्य कठोर समाधानों पर जोर दे रहे हैं. अभी तक पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) जैसे उपाय औसत परिणाम ही दे पाये हैं. बीते दो दशकों में प्लास्टिक कचरे का उत्पादन दोगुने से अधिक होकर 367 मिलिटन टन हो गया है, लेकिन, अभी भी 10 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण हो पाता है.

साल 2019-20 में भारत में 34 लाख टन प्लास्टिक टन कचरा उत्पन्न हुआ, जिसमें 60 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण हो पाया. एक रिपोर्ट के अनुसार, आज धरती पर प्लास्टिक का कुल वजन सभी जीवित जानवरों के कुल बायोमास का चार गुना से अधिक है. धरती को जीवनोपयोगी बनाये रखने के लिए इन प्रदूषकों पर नियंत्रण, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी जैसे सवालों पर संजीदगी से विचार करने की जरूरत है.

अगर इन सीमाओं को लांघने की हमारी आदत जारी रही, तो भविष्य में कठोर परिणाम लाजिमी होंगे. प्लास्टिक, एंटीबायोटिक, पेस्टिसाइड्स और गैर-प्राकृतिक धातुओं जैसे मानव निर्मित रासायनिक उत्पादों से स्थिति लगातार बिगड़ रही है. हमें इन जोखिमों के दीर्घकालिक प्रभावों को समझना होगा. हम ज्यादातर रसायनों और उनसे उत्पन्न कचरों की मात्रा या स्थायित्व से अनजान हैं.

उनकी विषाक्तता पर्यावरण पर किस हद तक असर कर रही है, इस पर बकायदा अध्ययन-आकलन होना आवश्यक है. वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि विकराल होती इस स्थिति को बदलने के लिए अभी भी हमारे पास वक्त है, बशर्ते कि तत्काल और महत्वाकांक्षी कार्रवाई हेतु उपाय शुरू हों. सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने के लिए भारत सरकार द्वारा 2018 में शुरू हुई मुहिम को तेज करने की जरूरत है. हम दुनिया को ‘प्लास्टिक प्लेनेट’ में नहीं बदल सकते, अत: हमें सामूहिक प्रयत्नों से प्लास्टिक प्रदूषण को रोकना होगा, ताकि पारिस्थितिकी और जैवविविधता किसी संकट का शिकार न बने.

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