नियंत्रित हो मुद्रास्फीति
Editorial News, Rising Inflation, Slowing Economy: महामारी और अर्थव्यवस्था पर उसका असर पूरे देश के लिए बड़ी चुनौती है. समाज का हर वर्ग, विशेषकर निम्न आय वर्ग और निर्धन तबका, परेशानियों का सामना कर रहा है. ऐसे में अगर बढ़ती महंगाई को काबू में नहीं किया जाता है, तो अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की रफ्तार धीमी पड़ सकती है.
महामारी और अर्थव्यवस्था पर उसका असर पूरे देश के लिए बड़ी चुनौती है. समाज का हर वर्ग, विशेषकर निम्न आय वर्ग और निर्धन तबका, परेशानियों का सामना कर रहा है. ऐसे में अगर बढ़ती महंगाई को काबू में नहीं किया जाता है, तो अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की रफ्तार धीमी पड़ सकती है.
पिछले साल लॉकडाउन की वजह से साल के बड़े हिस्से में कारोबारी गतिविधियां लगभग ठप रही थीं, लेकिन अच्छे मॉनसून और अच्छी फसल की वजह से अक्टूबर तक मुद्रास्फीति का असर सीमित रहा था और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के बावजूद घरेलू बाजार में स्थिति संतोषजनक थी.
लेकिन उसके बाद से महंगाई लगातार बढ़ती गयी है. वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी तथा सरकारी शुल्कों के कारण पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस आदि के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं. इसी के साथ खाद्य वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ रही हैं. इसमें पेट्रोलियम पदार्थों की महंगाई का भी योगदान है. इस साल भी सामान्य से अधिक बारिश होने का अनुमान लगाया गया था और मई व आधे जून तक हुई बरसात से मॉनसून की बेहतरी पर भरोसा भी बढ़ा था, लेकिन अब उसकी गति बहुत धीमी पड़ गयी है. देश के कुछ हिस्सों में अधिक वर्षा ने भी सामानों की आपूर्ति को बाधित किया है. ऐसे में कमजोर मॉनसून का सीधा असर खरीफ की बुवाई पर होगा और महंगाई बढ़ने का सिलसिला जारी रहेगा. पिछले साल से ही सरकार निर्धन वर्ग और कम आमदनी वाले परिवारों के लिए मुफ्त व अतिरिक्त राशन देने की योजना चला रही है.
इसके साथ रोजगार, खासकर ग्रामीण इलाकों में, मुहैया कराने के कार्यक्रम भी जारी हैं. विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से भी आबादी के बड़े हिस्से को फौरी राहत मिली है. लेकिन अगर महंगाई इसी तरह से बढ़ती रहेगी, तो इन कोशिशों का असर बहुत कम हो जायेगा. दाल की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने भंडारण की सीमा निर्धारित कर दी है. उम्मीद है कि इससे आम लोगों को जल्दी कुछ राहत मिलेगी, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दलहन और तेलहन के उत्पादक किसान इससे हतोत्साहित हो सकते हैं और वे इन फसलों की कम खेती करेंगे.
ऐसे में आगे दामों को हद में रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. पेट्रोल और डीजल पर से शुल्क कम करने की मांग लंबे समय से हो रही है. देशी उद्योग, उद्यम और कारोबार को प्रोत्साहित करने के इरादे से बढ़ाये गये आयात शुल्कों ने भी महंगाई में योगदान दिया है. हालांकि अर्थव्यवस्था को आधार देने के लिए ऐसे कदमों की दरकार भी है, लेकिन इसके साथ मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के उपायों पर भी समुचित ध्यान दिया जाना चाहिए. आर्थिक और वित्तीय विषमता की बड़ी खाई को देखते हुए महंगाई पर नियंत्रण आवश्यक हो जाता है. इस क्रम में तात्कालिक और दीर्घकालिक परिणामों पर भी दृष्टि रखी जानी चाहिए, पर कुछ उपाय जल्दी होने चाहिए.