महामारी एवं पर्यावरण
कई जीव वायरसों की संरचना कुछ दिनों में बदल सकती है. नये-नये रूपों में ये वायरस अधिक आक्रामक और खतरनाक होते जा रहे हैं.
समूची दुनिया लगभग डेढ़ साल से जारी कोरोना महामारी से त्रस्त है. सतर्कता और टीकाकरण से संक्रमण की रोकथाम की कोशिशें जोरों पर हैं. ऐसे उपायों के साथ हमें दीर्घकालिक नीतियों को अपनाकर ऐसी महामारियों से मानव जाति को सुरक्षित करने के ठोस उपायों पर ध्यान देने की जरूरत है. वायरस और बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारियों का सीधा संबंध पर्यावरण के क्षरण से है. इसे रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के भारत प्रमुख अतुल बगाई ने कहा है कि कोविड-19 महामारी प्राकृतिक क्षेत्रों के क्षरण, प्रजातियों के लुप्त होने तथा संसाधनों के दोहन का परिणाम है.
भारत समेत विभिन्न देशों को पारिस्थितिकी के क्षरण को रोकने और अब तक हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश करनी चाहिए. पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव-विविधता के पतन के दुष्परिणामों को भुगत रही है. भारत उन देशों में शुमार है, जहां इन समस्याओं का असर सबसे अधिक है. प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता बढ़ने के रूप में एक नतीजा हमारे सामने है. महामारी में चिकित्सकों ने पाया कि प्रदूषण के प्रभाव से संक्रमण अधिक खतरनाक रूप धारण कर रहा है.
धरती का तापमान बढ़ने से गलेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और उनका पानी समुद्री जल-स्तर बढ़ने का कारण बन रहा है. कई शोधों में यह इंगित किया गया है कि इन ग्लेशियरों में लाखों साल से दबे बैक्टीरिया और वायरस बाहर आ रहे हैं तथा जीव-जंतुओं के माध्यम से मनुष्यों तक पहुंच रहे हैं. वैज्ञानिक यह भी बता चुके हैं कि कई जीव वायरसों की संरचना कुछ दिनों में बदल सकती है. कोरोना वायरस के रूप बदलने के कई उदाहरण हमारे सामने हैं.
नये-नये रूपों में ये वायरस अधिक आक्रामक और खतरनाक होते जा रहे हैं. जैव-विविधता के ह्रास और अंधाधुंध विकास की वजह से हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित हो रही है. खाने-पीने की चीजों की उपलब्धता और गुणवत्ता तथा उनकी विविधता भी पर्यावरण से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं. स्वास्थ्य की बेहतरी और जीवन शैली में सुधार सतत विकास की अवधारणा के अभिन्न अंग हैं. यदि हमारे जीने का ढंग प्रकृति के साथ साहचर्य व सामंजस्य की समझ से संबद्ध होगा, तो बर्बादी भी कम होगी और कचरे की भयावह समस्या भी नहीं आयेगी.
उल्लेखनीय है कि कूड़े-कचरे के समुचित प्रबंधन के अभाव में प्रदूषण की चुनौती गंभीर होती जा रही है. विभिन्न जानलेवा संक्रामक रोगों की जड़ में प्रदूषण है. प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन ने पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों पर पानी फेर दिया है. ध्यान रहे, जो नुकसान हो चुका है, उसे पूरा कर पाना लगभग असंभव है, इसलिए संरक्षण हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. यदि हमने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की बात नहीं मानी, तो बीमारियों और महामारियों से भी पीछा छुड़ाना बेहद मुश्किल होगा. यह एक तथ्य है कि कोरोना महामारी अंतिम महामारी नहीं है. इसलिए हमें अभी से आगे के लिए मुस्तैदी से तैयारी करनी होगी.