मौसम का पूर्वानुमान
मौसम विभाग के चाहने से बरसात नहीं हो सकती है, किंतु हमें पूर्वानुमान प्रणाली को लगातार बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए.
हमारे जीवन पर मौसम के मिजाज का बड़ा असर होता है. यदि बारिश के कम या अधिक होने की जानकारी समय रहते हो जाये, उस हिसाब से खेती की योजनाएं बनायी जा सकती हैं. इसी तरह प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी पहले मिल जाये, तो जान-माल का नुकसान रोका जा सकता है. ऐसी सूचनाएं देना भारतीय मौसम विभाग की जिम्मेदारी है. वैज्ञानिक व संचार तकनीक के विकास, सैटेलाइटों, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा कई वर्षों के आंकड़ों की उपलब्धता से बीते बरसों में मौसम का सही पूर्वानुमान लगाना आसान हुआ है.
इसका एक उदाहरण चक्रवातों और तूफानों की पूर्व सूचना है, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों को बचाना संभव हो सका है. साल 2019 में ओडिशा में आये भयावह चक्रवात में दो दर्जन से भी कम मौतें हुई थीं तथा पशुधन व अन्य संपत्ति बचाने में भी बहुत हद तक कामयाबी मिली थी. लेकिन 1999 के चक्रवात में करीब 10 हजार लोग मारे गये थे और लगभग साढ़े चार अरब डॉलर मूल्य की संपत्ति तबाह हुई थी. लेकिन मानसून की सटीक भविष्यवाणी करने में विभाग आज भी अक्सर चूक जाता है.
सिंचाई की व्यवस्था में उल्लेखनीय विकास के बावजूद आज भी मानसून पर खेती की निर्भरता बनी हुई है. नदियों, जलाशयों और भूजल के स्तर को बढ़ाने के लिए समुचित बारिश की दरकार होती है. सूखे और बाढ़ की समस्याएं भी बनी हुई हैं. ऐसे में अगर सटीक पूर्वानुमान न हों, तो संभावित स्थिति के लिए ठीक से तैयारी नहीं हो पाती है. किसानों के साथ-साथ पशुपालन करनेवाले तथा मछली पकड़नेवाले भी मौसम विभाग के पूर्वानुमान से लाभान्वित होते हैं. इस बार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के बड़े हिस्से में मानसून ने अभी ठीक से दस्तक नहीं दी है.
विभाग ने अनेक तारीखों की घोषणा की, पर बरसात की मेहरबानी नहीं हुई. बहरहाल, बारिश न होने के विभिन्न प्राकृतिक कारण हो सकते हैं और मौसम विभाग के चाहने से बरसात हो भी नहीं सकती है, किंतु हमें पूर्वानुमान प्रणाली को लगातार बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि धरती का तापमान बढ़ने और जलवायु परिवर्तन होने से दुनिया के अनेक क्षेत्रों में बाढ़, सूखे, लू, शीतलहर आदि की बारंबारता बढ़ रही है.
भारत भी उनमें से एक है. लेकिन हमें भारतीय मौसम विभाग के पास मौजूद सुविधाओं और उसके प्रदर्शन की तुलना विकसित देशों की व्यवस्था से नहीं करनी चाहिए क्योंकि उन देशों में मौसम के मिजाज में भारत जैसी अनिश्चितता नहीं है. यह एक अहम कारक है और सटीक अनुमान लगा पाना हमेशा ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हमारी प्रणाली को बेहतर करने की जरूरत नहीं है. सुधार के क्रम में इस साल मासिक और मौसमी अनुमान देने की प्रक्रिया शुरू हुई है. सो, अत्याधुनिक तकनीक और सघन विश्लेषण पर ध्यान देने के साथ मौसम विभाग के संसाधनों को भी बढ़ाया जाना चाहिए.