समुद्र की निगहबानी

अभी दुनियाभर में पांच-छह देश ही ऐसे हैं, जिनके पास युद्धपोत बनाने की क्षमता है. इस विशिष्ट श्रेणी में अब भारत भी शामिल हो गया है.

By संपादकीय | August 6, 2021 2:19 PM

भारत में निर्मित सबसे बड़े युद्धपोत आइएसी-1 का परीक्षण अंतिम चरण में है और अगले साल ‘विक्रांत’ के नाम से यह नौसेना के बेड़े में शामिल हो जायेगा. इसका निर्माण रक्षा तैयारियों में साजो-सामान के आयात पर निर्भरता कम करने के संकल्प को साकार करने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है. यह रक्षा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत की उत्कृष्टता का प्रतीक है. अभी दुनियाभर में पांच-छह देश ही ऐसे हैं, जिनके पास युद्धपोत बनाने की क्षमता है. इस विशिष्ट श्रेणी में अब भारत भी शामिल हो गया है. हमारे देश की सामुद्रिक सीमाओं का विस्तार व्यापक है और हाल के वर्षों में समुद्री सीमा की चुनौतियां लगातार बढ़ी हैं. लड़ाकू विमान ढोनेवाले युद्धपोत किसी भी देश की सामरिक शक्ति का बड़ा आधार होते हैं क्योंकि इनके सहारे दूर-दूर तक हवाई हमले करने तथा शत्रु सेना के हमलों को रोकने की क्षमता बहुत अधिक बढ़ जाती है. युद्ध की स्थिति में ऐसे युद्धपोत अग्रणी भूमिका निभाते हैं,

इस कारण बचाव के लिए इनके साथ विध्वंसक, मिसाइल वाहन, पनडुब्बियां और साजो-सामान ढोनेवाले जहाज भी चलते हैं. चालीस हजार टन वजन के आइएसी-1 युद्धपोत की लंबाई 262 मीटर, चौड़ाई 62 मीटर और ऊंचाई 59 मीटर है. अभी हमारी नौसेना के पास एक ही युद्धक कैरियर आइएनएस विक्रमादित्य है, जो रूस द्वारा निर्मित है. दो पूर्ववर्ती युद्धपोत- विक्रांत एवं विराट- ब्रिटिश निर्माण थे. ऐसे में 76 प्रतिशत से अधिक भारतीय वस्तुओं से निर्मित भविष्य का विक्रांत गौरवपूर्ण उपलब्धि है. इसके निर्माण से घरेलू उद्योग बढ़ा है और रोजगार के नये अवसर बने हैं. साथ ही, जो लगभग 23 हजार करोड़ रुपया खर्च हुआ है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था में ही रहा है. पूर्व युद्धपोत विक्रांत, जो 1961 में ब्रिटेन से खरीदा गया था,

ने 1971 के युद्ध में उल्लेखनीय भूमिका निभायी थी. उस युद्ध के पचास साल बाद जब हम अपने युद्धपोत को नौसेना के बेड़े में शामिल कर रहे हैं, तो उसका नाम भी विक्रांत रखा जा रहा है. इसके निर्माण के साथ ही तीसरे युद्धपोत के नौसेना के आग्रह को भी आधार मिलेगा. तीन ओर से विशाल समुद्र से घिरे होने के कारण तथा पड़ोसी देशों तथा अन्य शक्तियों की आक्रामकता को देखते हुए नौसेना की क्षमता में बढ़ोतरी करना आवश्यक है. कुछ वर्षों से न केवल हिंद महासागर और अरब सागर में, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और साउथ चाइना सी में भी शांति और स्थिरता बहाल रहने को लेकर आशंका बढ़ी है. उत्तर, पूर्व और पश्चिम में युद्ध की स्थिति में थल सेना और वायु सेना को ठोस सहयोग सुनिश्चित करने में भी नौसेना की बड़ी भूमिका होगी. फारस की खाड़ी में भी तनावपूर्ण घटनाएं हो रही हैं. वैश्विक मंच पर कोई देश तभी अग्रणी हो सकता है, जब वह आर्थिक और सामरिक दृष्टि से शक्तिशाली हो. अत्याधुनिक मिसाइलों, लड़ाकू जहाजों और हेलीकॉप्टरों से लैस भावी विक्रांत युद्धपोत हमारी ताकत को बड़ी मजबूती देगा.

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