भविष्य की पढ़ाई के लिए तकनीक- साक्षरता और इंटरनेट कनेक्टिविटी दो सबसे अहम जरूरतें हैं. हालांकि, इसके लिए संतोषजनक स्थिति में पहुंचने में भारत को अभी लंबा सफर तय करना है. महामारी के कारण दुनियाभर में स्कूली शिक्षा बाधित हुई है. यूनेस्को के मुताबिक, लंबे समय से स्कूलों के बंद रहने से 29 करोड़ बच्चों का पठन-पाठन अव्यवस्थित हुआ है. यह ऐसे वक्त में हुआ, जब 60 लाख से अधिक बच्चे पहले से ही स्कूलों से बाहर थे. भारत जैसे विकासशील देशों में हालात और भी गंभीर हैं,
जहां आर्थिकी संकुचन, असमानांतर बेरोजगारी और अनेक परिवारों पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है. इसका बड़ा असर देश में स्कूली शिक्षा पर भी होना स्वभाविक है. बुनियादी ढांचे और पर्याप्त तैयारी नहीं होने के बावजूद मौजूदा चुनौतियों के जवाब में हम तकनीक-संचालित शिक्षा को देख रहे हैं. डिजिटलीकरण का यह बदलाव लाखों बच्चों, विशेषकर समाज के पिछड़े तबकों के बच्चों के लिए भेदभावपूर्ण साबित हो रहा है.
चुनिंदा स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए गूगल मीट, जूम आदि का सहारा ले रहे हैं, लेकिन यह पूर्ण वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. डिजिटल असमानता की वजह से लाखों बच्चे इन सुविधाओं से महरूम हैं. राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, शहरों में केवल 24 प्रतिशत परिवारों के पास ही स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी सुविधाएं हैं, जबकि ग्रामीण भारत में ऐसे संसाधनों तक पहुंच मात्र चार प्रतिशत परिवारों की ही है. इससे समझा जा सकता है कि भारत में प्रौद्योगिकी-संचालित शिक्षा किस हद तक दूर है.
साल 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि देश में 55,000 से अधिक गांव मोबाइल कनेक्टिविटी से भी दूर हैं, जबकि ग्रामीण विकास मंत्रालय के 2017-18 के दस्तावेजों से स्पष्ट है कि ग्रामीण इलाकों में 36 प्रतिशत स्कूलों में बिजली तक नहीं पहुंची है. ऐसे में हम प्रौद्योगिकी-आधारित शिक्षण में सुचारु परिवर्तन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की स्पीड और फ्रीक्वेंसी की भी गंभीर समस्या है, ऐसे में ऑनलाइन शिक्षण का प्रभावित होना लाजिमी है. डिजिटल प्रौद्योगिकी और प्रभावी डिजिटल साक्षरता के माध्यम से ही डिजिटल असमानता की खाई को एक हद का पाटा जा सकता है.
सरकार को ऐसे स्मार्टफोन एप विकसित करने और प्रशिक्षण आदि योजनाओं पर काम करना चाहिए, ताकि संकट काल में ग्रामीण छात्र आसानी से अपनी पढ़ाई को जारी रख सकें. शिक्षा पर जीडीपी का मात्र तीन प्रतिशत खर्च होता है, इससे शिक्षा का लोकतांत्रिकरण कर पाना असंभव है, ऐसे वक्त में जब डिजिटल विभाजन ने असमान शिक्षा की दरार को और गहरा कर दिया हो. हमारे देश में शिक्षा एक संविधानिक अधिकार है, ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई बच्चा इस अधिकार को उपयोग करने से वंचित न रह जाए.