केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यमों के योगदान को बढ़ाने का आह्वान किया है. फिलहाल जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 30 फीसदी है, जिसे 40 फीसदी करने पर उन्होंने जोर दिया है. हमारी अर्थव्यवस्था में ऐसे उद्यमों के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि करीब 6.30 करोड़ उद्यमों में गैर-कृषि कार्यबल का 40 फीसदी हिस्से को रोजगार मिला हुआ है यानी इस क्षेत्र में 11 करोड़ से अधिक रोग सेवारत हैं. सेवा और मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र के उत्पादन में इन उद्यमों का योगदान क्रमशः लगभग 25 और 33 फीसदी है.
कोरोना महामारी की सबसे अधिक मार भी इसी क्षेत्र पर पड़ी है, लेकिन अब अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यमों की ही अहम भूमिका होगी. इसलिए इनके विकास पर गडकरी का जोर देना समयानुकूल है. महामारी की पहली लहर से त्रस्त अर्थव्यवस्था को राहत देने के क्रम में आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत इन उद्यमों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने के साथ अनेक नियमों में बदलाव भी किया गया था ताकि ये उद्यम फिर से खड़े हो सकें और अपनी संभावनाओं को साकार कर सकें.
इस साल फरवरी में पेश बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सूक्ष्म, छोटे व मझोले उद्यमों को विकसित करने के लिए 15,700 करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा की थी. दुनियाभर में उत्पादन और कारोबार तंत्र में अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ रहा है. बजट में इस सेक्टर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग को बढ़ावा देने की बात भी कही गयी है. ऐसे उपायों से जहां उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी, वहीं रोजगार की गुणवत्ता में भी सुधार होगा. वित्तीय परिदृश्य में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की समस्या चिंताजनक है.
इससे छोटे और मझोले उद्यम क्षेत्र भी अछूता नहीं है. इस क्षेत्र में एनपीए की वसूली के लिए सरकार ने एक अलग ढांचा बनाने का फैसला किया है. अब रिजर्व बैंक ने भी पुनर्संरचना पहल के तहत कर्जों की सीमा को 25 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये करने की घोषणा की है. इससे राहत पाकर कई उद्यमों को नये उत्साह के साथ अपना विस्तार करने का अवसर मिलेगा.
बीते साल-डेढ़ साल की मुश्किलों ने उनके सामने वित्त के अभाव का संकट खड़ा कर दिया है. ऐसे में न तो वे पुरानी देनदारी चुका पा रहे हैं और न ही नया ऋण लेने का साहस जुटा पा रहे हैं. छोटे उद्योगों के विकास के लिए बने बैंक के लिए रिजर्व बैंक ने 16 हजार करोड़ रुपये की विशेष सुविधा भी प्रदान की है. केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक की पहलों से स्थिति में सुधार की आशा है. महामारी के बाद की दुनिया में भारत को आत्मनिर्भर देश के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए छोटे व मझोले उद्यमों में बढ़ोतरी जरूरी है. इससे घरेलू मांग की पूर्ति के साथ निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा.