भारत 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षरित भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में अग्रसर है. मरू क्षेत्र विस्तार, भूक्षरण और सूखे पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय संवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि इससे ढाई से तीन अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर कार्बन अवशोषित किया जा सकेगा. दुनिया के दो-तिहाई हिस्से में भूक्षरण एक गंभीर समस्या बना हुआ है तथा इससे कृषि उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ने के साथ सूखे और प्रदूषण की चुनौती भी बढ़ रही है.
भारत इसके समाधान के लिए लगातार प्रयासरत है. साल 2019 में दिल्ली घोषणा के तहत भूक्षरण रोकने के लिए वैश्विक पहल की जरूरत पर जोर दिया गया था. विभिन्न कारणों से हो रही पर्यावरण की क्षति की भरपाई की कोशिश में बीते एक दशक में करीब तीस लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र का विस्तार संतोषजनक है. इससे भूमि के क्षरित होने और मरूस्थल बनने से रोकने में मदद मिलेगी.
जून, 2019 में मरू क्षेत्र के विस्तार को रोकने के संकल्प के तहत भारत ने पांच राज्यों में वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ाने की परियोजना शुरू कर दी थी. इसके परीक्षण चरण के लिए पांच राज्यों को चुना गया था- हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड और कर्नाटक. धीरे-धीरे इस परियोजना को उन सभी क्षेत्रों में लागू किया जा रहा है, जो मरूस्थलीकरण से प्रभावित हैं. यह बड़े चिंता की बात है कि क्षरण से भारत की 30 प्रतिशत भूमि प्रभावित है.
महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों के कारण अन्य कई योजनाओं की तरह इसमें भी कुछ अवरोध उत्पन्न हुआ है. देश की बड़ी आबादी के लिए खाने-पीने की समुचित उपलब्धता बनाये रखने के लिए भूक्षरण को रोकना तथा पहले से नष्ट हुई उर्वर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाना आवश्यक है. भूमि में प्राकृतिक कारणों या मानवीय गतिविधियों के कारण जैविक या आर्थिक उत्पादकता में कमी की स्थिति को भूक्षरण कहा जाता है.
जब यह अपेक्षाकृत सूखे क्षेत्रों में घटित होता है, तब इसे मरूस्थलीकरण की संज्ञा दी जाती है. हमारे देश में क्षरित भूमि का 80 फीसदी हिस्सा सिर्फ नौ राज्यों- राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना- में है. झारखंड, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात और गोवा के 50 फीसदी से अधिक भौगोलिक क्षेत्र में क्षरण हो रहा है. दिल्ली, त्रिपुरा, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश और मिजोरम में मरूस्थलीकरण की प्रक्रिया बहुत तेज है. साल 2016 में प्रकाशित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में 9.64 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में मरूस्थलीकरण हो रहा है.
यह भारत के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30 फीसदी हिस्सा है. उल्लेखनीय है कि भारत का लगभग 70 फीसदी जमीनी क्षेत्र अपेक्षाकृत सूखा क्षेत्र है. ऐसे में मरूस्थलीकरण एक बहुत बड़ी समस्या है. भूमि के संरक्षण के साथ हमें भूजल के दोहन, अनियोजित नगरीकरण तथा हर प्रकार के प्रदूषण को भी रोकना होगा, ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित व समृद्ध हो.