चिंताजनक है नशे की बढ़ती लत
भारतीय परिवार संस्था में बदलाव भी युवाओं के नशे की ओर क्रमश: जाने के लिए जिम्मेदार है. संयुक्त परिवार के पतन के साथ बच्चों और युवाओं की आदतों पर नजर रखने की व्यवस्था भी ढह गयी है.
यदि नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की मानें, तो बॉलीवुड नशे में धुत है. फरदीन खान के कोक के साथ पकड़े जाने और नशीले पदार्थ के बड़े रैकेट में ममता कुलकर्णी के आरोपित होने के मामले बहुत पुराने हैं. फिर सुशांत राजपूत और रिया चक्रवर्ती का विवादित मामला सामने आया. अब मेगास्टार शाहरुख खान के बड़े बेटे आर्यन खान की बारी है. कुछ माह पहले ही वे अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर देश लौटे हैं.
शायद उनकी योजना पिता की राह पर चलने की थी. लेकिन अब वे एक ऐसे अपराध के आरोप में जेल में हैं, जो किशोरों और युवाओं की जीवनशैली का एक हिस्सा बन गया है. आधुनिक भारत वैश्विक फैशन, शिक्षा और जीवनशैली से परिचित है, तो बहुत भारतीय युवा तेजी से उस आदत को अपना रहे हैं.
महात्मा गांधी की जयंती के दिन आर्यन एक समुद्री जहाज पर सप्ताहांत की रेव पार्टी के लिए दोस्तों के साथ रवाना हुए थे. कुछ ही घंटों में एक एनसीबी दल ने नशीले पदार्थ लेने और उसकी खरीद-बिक्री के आरोप में उन्हें पकड़ लिया. आरोपों की सत्यता का पता समुचित जांच से ही लगेगा. पर इस चर्चित गिरफ्तारी और शाहरुख के घर पर बाद में पड़े छापे ने युवाओं में बढ़ती लत की समस्या की ओर ध्यान खींचा है.
बीते कुछ महीनों से धनी व प्रसिद्ध लोगों द्वारा नशे का उपभोग सुर्खियों में है. ब्यूरो ने दर्जन से ज्यादा जाने-अनजाने अभिनेताओं-अभिनेत्रियों से पूछताछ की है या हिरासत में लिया है. लगभग सभी की आयु 40 साल से कम है. इनमें कुछ बड़े कारोबारी हैं या प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षित हैं. मुंबई के एनसीबी कार्यालय का नजारा किसी फिल्मी सेट की तरह है, जहां टीवी कैमरे टीआरपी बटोरनेवाले दृश्य रिकॉर्ड करने की प्रतिस्पर्द्धा में हैं.
क्या हम उड़ता भारत में रह रहे हैं? तीन करोड़ से अधिक भारतीय नशे की लत में होने के तौर पर आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं. अचानक भारत अपने युवाओं के पतंग की तरह उड़ने और उन्हें सतर्क सरकारी बाजों द्वारा जमीन पर लाने की वजह से खबरों में है. नशीले पदार्थों के उपभोग में आये सामाजिक बदलाव ने ड्रग्स को चर्चित अपराध बना दिया है.
पहले नशे के आदी बहुत से लोग निम्न और मध्य वर्ग से होते थे, जो सस्ते पदार्थ लेते थे. अब कई तरह के उत्पादों के कारण ड्रग्स कारोबार बड़ा और कुशल हो गया है, जहां ऊंची कीमतों पर इनकी आपूर्ति घरों तक की जाती है. जांच एजेंसियों के अनुसार, हमारे महानगरों में हर दिन सौ से अधिक रेव पार्टियां होती हैं, जहां दस लाख डॉलर से अधिक के पदार्थ खप जाते हैं.
सात सौ अरब डॉलर से अधिक के कारोबार के साथ हथियारों और पेट्रोलियम के बाद नशे का व्यापार तीसरे पायदान पर है. बीते दशक में जब्त हुई मात्रा में 500 फीसदी की वृद्धि नशीले पदार्थों की बढ़ती मांग को इंगित करती है. वास्तविक मात्रा के 15 फीसदी से कम ही एजेंसियों के हाथ लगते हैं. इसका अर्थ यह है कि कुछ साल पहले की अपेक्षा आज कहीं अधिक शहरों व कस्बों में इनकी खपत हो रही है. कुछ दिन पहले ही गुजरात में तीन हजार किलो हेरोइन बरामद हुई थी.
अफगानिस्तान और लातिनी अमेरिका से 70 फीसदी से अधिक ऐसे पदार्थ आते हैं, पर इनमें से अधिकांश भारत समेत एशिया में खपाये जाते हैं. हर जगह ड्रग्स सिंडिकेट का निशाना युवा होते हैं. युवाओं के पास आज अधिक क्रय शक्ति तो है ही, वे अपने तरीके से जीने के लिए भी आक्रामक रूप से आग्रही हैं. उदार अभिभावक लाचारी में इस उम्मीद से मान जाते हैं कि बच्चे बाद में सफल नागरिक बनेंगे. यदि गरीबी कम पोषण को बढ़ावा दे रही है, तो अफ्रीका व एशिया के ऐसे युवा नशे की ओर जा रहे हैं.
अत्यधिक पैसा और पसंद की आजादी बच्चों एवं युवाओं को पाश्चात्य बना रहे हैं तथा विकासशील दुनिया को पतनशील. कुछ आदी आत्महत्या भी कर रहे हैं. सामाजिक और आर्थिक जटिलताओं के कारण भारत इस ड्रग्स महामारी का शिकार हो सकता है. हमारे देश में 50 करोड़ से अधिक लोग 10-35 वर्ष आयु वर्ग के हैं. वे आसानी से नशे के कारोबारियों का निशाना बन सकते हैं.
पंजाब में तो यह बड़ी समस्या बन चुकी है, जहां हर पांचवां व्यस्क रोजाना नशीले पदार्थों का सेवन करता है. लेकिन आज लगभग हर राज्य जोखिम में है. पुलिस, नशा नियंत्रण कर्मी और ड्रग्स माफिया का गठजोड़ भी समाज को खोखला कर रहा है. भारतीय परिवार संस्था में बदलाव भी युवाओं के क्रमश: नशे की ओर जाने के लिए जिम्मेदार है. संयुक्त परिवार के पतन के साथ बच्चों और युवाओं की आदतों पर नजर रखने की व्यवस्था भी ढह गयी है.
बच्चे के जीवन से माता-पिता का जुड़ाव कम हो गया है. कई शहरी परिवारों में माता और पिता दोनों कामकाजी होते हैं और वे बच्चों के साथ बहुत कम समय बिता पाते हैं. अध्ययन बताते हैं कि अभिभावकों की जीवनशैली का बच्चों की आदतों पर बहुत असर पड़ता है. अधिकतर मध्य वर्गीय और धनी दंपत्ति घुलने-मिलने के बड़े आग्रही हैं. कई माता-पिता खुद नशा करते हैं और बच्चों को गैजेट और खुले दरवाजे के साथ घर में छोड़ जाते हैं.
कभी-कभी तो वे बड़े बच्चों के सामने भी नशा करते हैं. ऐसे में बच्चा भी आजादी की मांग करता है. कुछ अध्ययन बताते हैं कि ध्यान न देनेवाले माता-पिता बच्चों को वैकल्पिक साहचर्य खोजने के लिए विवश करते हैं और इस प्रक्रिया में वे नशे में फंस जाते हैं. प्रभावशाली लोग अपने बच्चों को कानून से भी बचाने में सक्षम होते हैं. ऐसे आकलन हैं कि बड़े शहरों का हाई स्कूल या कॉलेज जानेवाला हर दसवां बच्चा सप्ताह में कम-से-कम एक बार नशा करता है.
उन्नति करते अभिभावक बच्चों की रोजाना की जिंदगी में मुश्किल से शामिल हो पाते हैं. वे स्कूल के आयोजनों में नहीं जा पाते या शिक्षकों से मुलाकात नहीं कर पाते. ऐसे में बच्चा सामाजिक एकाकीपन का शिकार हो सकता है. बच्चे द्वारा फोन, टैबलेट, कंप्यूटर आदि के दुरुपयोग पर शायद ही निगरानी रखी जाती है. वास्तव में बच्चे और अभिभावक के बीच की शारीरिक और भावनात्मक निकटता की जगह ऐसे वायरलेस जुड़ाव ने ले ली है, जहां कोई सामाजिक, आर्थिक और नैतिक लगाव एवं सीमा नहीं है. अब सादा जीवन और उच्च विचार की समझ छोड़कर उच्च जीवन और कोई विचार नहीं की सोच अपनाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है.