चुनौतियों को अवसर में बदलने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महारत है. पंजाब में भाजपा राजनीतिक रूप से कमजोर है, जहां अगले माह चुनाव है. पार्टी 117 सीटों की विधानसभा में कभी दहाई की संख्या में नहीं पहुंची है और न ही इसने कभी 25 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा है. वर्तमान सदन में इसके केवल दो विधायक हैं. लेकिन ऐसे निराशाजनक आंकड़े मोदी और अमित शाह के लिए एक चुनावी अचरज रचने में बाधक नहीं होते.
यदि सब कुछ योजना के तहत हो, तो कांग्रेस के बाद सबसे अधिक सीटों पर भाजपा लड़ेगी. पहले यह प्रकाश सिंह बादल की पार्टी शिरोमणि अकाली दल के पीछे चलती थी. अब पहली बार भाजपा अपने गठबंधन का नेतृत्व करेगी. अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनायी है.
अहम अकाली नेता सुखदेव सिंह ढिंढसा ने शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर संयुक्त शिरोमणि दल का गठन किया है. ये दोनों भाजपा के सहयोगी होंगे. भाजपा हमेशा विलय, दल-बदल और अधिग्रहण से मजबूत हुई है और आगे बढ़ी है. मोदी का दांव बहुकोणीय मुकाबले का है ताकि अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को बहुमत पाने से रोका जा सके.
अमरिंदर और ढींढसा अधिक मांग भी नहीं रहे हैं. भाजपा इन्हें 60 सीटों का ऑफर दे सकती है और शेष 57 सीटों पर खुद लड़ सकती है, जो मुख्य रूप से शहरी सीटें हैं. ये दोनों घटक अकाली दल का सामना करेंगे तथा कांग्रेस से मुकाबला भाजपा करेगी. भाजपा नेता दबी जुबान में कह रहे हैं कि भाजपा को घटक दलों से अधिक सीटें जीत कर अन्य दलों के बागियों के साथ सरकार बनाने की अपेक्षा है. लेकिन मुख्यमंत्री का चेहरा एक उलझा हुआ मामला है.
भाजपा इस पद को सहयोगियों को नहीं देना चाहती है. दुर्भाग्य से इसके पास कोई ऐसा स्थानीय नेता नहीं है, जिसे राज्य इकाई या लोगों का अपेक्षित समर्थन प्राप्त हो. बीते तीन दशकों में इसके केंद्रीय नेतृत्व ने बादल परिवार के दबाव में नवजोत सिद्धू जैसे प्रभावी स्थानीय नेताओं को पनपने नहीं दिया. अगर भाजपा का प्रदर्शन उसके सहयोगियों से बेहतर रहता है, तो पंजाब एक चमत्कारिक जनादेश दे सकता है. ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे का पंजाब में इम्तहान है.
संवेदनशील पदों पर अफसरों की नियुक्ति में भी मोदी खूब चकित करते हैं. बीते सात सालों में उन्होंने रवायतों और पुराने सरकारी नियमों को दरकिनार कर नौकरशाहों को नयी जिम्मेदारियां दी हैं. सेवानिवृत हो रहे अधिकारियों को फिर से पद देना और उनको सेवा विस्तार देना अपवाद नहीं, बल्कि नियम बन चुका है. उत्तर प्रदेश काडर (1984 बैच) के दुर्गा शंकर मिश्र 31 दिसंबर को सेवामुक्त होनेवाले थे.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वे केंद्र में कोई पद चाहते थे, पर मोदी की योजना कुछ और थी. मिश्र स्वच्छ छवि के कर्मठ अधिकारी माने जाते हैं. प्रधानमंत्री की सोच यह है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसे मजबूत मुख्यमंत्री के साथ एक ताकतवर और प्रभावशाली अधिकारी भी चाहिए, जो स्थानीय नौकरशाही को नींद से जगा सके. मोदी मिश्र से प्रभावित हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी उनकी पसंदीदा योजनाओं के लागू करने की गति को बढ़ाया है. इसके अलावा, राज्य की जटिल व जातिग्रस्त नौकरशाही और उसके तौर-तरीकों से भी परिचित हैं.
आश्चर्य है कि वे इस दलदल में चुनाव आचार संहिता लागू होने के ठीक पहले उतर रहे हैं, जो उनके अधिकार को कम कर सकती है. पर, उन्हें मुख्य सचिव के रूप में एक साल का अभूतपूर्व जिम्मा दिया गया है और अब वे 31 दिसंबर, 2022 को ही रिटायर हो सकेंगे. भाजपा को सत्ता में वापसी की उम्मीद है और उसे लगता है कि लखनऊ में उसके सुपर बाबू बाद में वरिष्ठ अफसरों की नियुक्ति में अहम भूमिका निभायेंगे.
ऐसी चर्चा है कि जवाबदेही के साथ अच्छे काम के लिए प्रशासन में बदलाव के दीर्घकालिक एजेंडे पर मिश्र को भेजा गया है. चुनाव नतीजे ही बतायेंगे कि यह कदम मोदी के मिशन 2024 का हिस्सा है या नहीं. कॉरपोरेट इंडिया का एक अहम नियम है कि सफलता का श्रेय वह खुद लेता है, जबकि विफलताओं को सरकारी एजेंसियों के माथे मढ़ दिया जाता है.
तकनीकी और कोविड से जुड़े मामलों के कारण दो बार सीमा बढ़ाने के बाद आयकर रिटर्न भरने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर थी. अभी सात करोड़ करदाताओं को अपना ब्यौरा दाखिल करना है. आयकर विभाग के अनुसार, इस तारीख तक 2021-22 के लिए 5.78 करोड़ रिटर्न भरे गये हैं, जो पिछले साल के 5.95 करोड़ के आंकड़े से कम और 2019-20 के 6.78 करोड़ की संख्या से बहुत कम है.
सरकार या उसकी एजेंसियां हाई-टेक प्रणाली की खामियों के लिए जिम्मेदार नहीं हैं. आखिरी दिन भी बहुत से करदाताओं को पोर्टल पर ब्यौरा जमा करने में परेशानी हुई और उन्होंने अपनी खीझ सोशल मीडिया पर व्यक्त भी की. हालांकि सरकार ने किसी खामी से इनकार किया है, पर अनौपचारिक तौर पर इंफोसिस को जिम्मेदार ठहराया गया है.
दो साल पहले इस ग्लोबल स्तर की कंपनी को 42 सौ करोड़ का ठेका दिया गया था ताकि ऐसा पोर्टल बने, जिससे 63 दिनों की जगह एक दिन में प्रक्रिया पूरी हो सके. इसे सहूलियत भरा होना था, पर वित्त मंत्रालय की लगातार फटकार के बाद भी इसमें मामूली सुधार ही हो सका है. इस विदेशी स्वामित्व की कंपनी के प्रभावशाली समर्थक आयकर विभाग को ही दोष दे रहे हैं. उनका कहना है कि विभाग अपने मनमाने अधिकार खोने की संभावना से बेचैन है और इंफोसिस पर बेजा दबाव बना रहा है.
बिना देरी के अपनी इच्छाओं, दिशा और निर्णयों को लागू करा पाने में मोदी चमत्कारिक हैं. बीते कुछ माह से वे राज्य मंत्रियों की अधिक भूमिका पर जोर दे रहे हैं. अभी कम संसाधनों के कारण ये मंत्री खुद को पीछे छूटा हुआ पाते हैं. इन्हें कैबिनेट की बैठकों में नहीं बुलाया जाता और बिना बुलाये इनकी मुलाकात प्रधानमंत्री से भी न के बराबर होती है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सभी मंत्रियों की नियमित बैठक करने का फैसला किया है,
जिसमें सभी 45 राज्य मंत्री भी शामिल होंगे. ऐसी एक शुरुआती बैठक में उन्होंने कैबिनेट मंत्रियों को अपने कनिष्ठों को अधिक अधिकार देने की सलाह दी थी, पर उन्हें बताया गया है कि कुछ वरिष्ठ मंत्री ऐसा नहीं कर रहे हैं. कुछ ने तो उन्हें संसद में दिये जानेवाले जवाब तैयार करने को तो कहा, पर वहां कुछ बोलने से रोक दिया. अब ये कनिष्ठ मंत्री प्रधानमंत्री से शिकायत के मौके का इंतजार कर रहे हैं.