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कोरोना रोकथाम पर सक्रियता बढ़े

पीएम मोदी हर लड़ाई जीतते रहे हैं. कोरोना भी उनकी लड़ाई का हिस्सा है. उम्मीद है, हमारी व्यवस्था उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में इस लड़ाई को भी जीतेगी.

बचाव के उपचार से बेहतर होने की कहावत आज के लिए सटीक है, क्योंकि टीकाकरण में देरी बिना किसी आधार के टाल-मटोल करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह चुनावी राज्यों के दौरों में व्यस्त हैं और अधिकारियों एवं टेक्नोक्रेटों में एकीकृत टीका नीति पर कोई पहल करने की इच्छा नहीं है. उनके पास कोई शोध और अध्ययन भी नहीं है कि वे प्रधानमंत्री को भरोसेमंद समाधान सुझा सकें. सबसे खराब तो यह है कि प्राधिकरणों की बहुलता और कुछ लोगों के वर्चस्व ने महामारी रोकने के प्रयासों को प्रदूषित कर दिया है.

इन प्रयासों में लगे नौकरशाहों को इस संदेश पर ध्यान देना चाहिए कि जो आज हो सकता है, उसके लिए कल की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए. अर्थव्यवस्थाओं पर असर के साथ ओमिक्रॉन वैरिएंट ने दुनिया को आशंकित कर दिया है. फिर भी वैश्विक वैज्ञानिक, चिकित्सक और प्रशासक दिशाहीन हैं. उनमें से किसी ने तुरंत समाधान या उपचार नहीं सुझाया है. दवा कंपनियां केवल मुनाफे के लिए विभिन्न उपचार और दवाएं पेश कर रही हैं. एक वैरिएंट के काबू में आने से पहले ही दूसरा सामने आ जाता है.

फिर भी प्रशासकों और सलाहकारों ने इस राक्षस की रोकथाम पर कोई सहमति नहीं बनायी है, जिसने दुनियाभर में 55 लाख जानें ले ली हैं. ओमिक्रॉन 80 देशों में फैल चुका है और यह पहले के वैरिएंट से 70 गुना तेजी से फैल रहा है. सहमति न होने के कारण हर देश अपनी रणनीति अपना रहा है. कुछ अपनी सीमाएं बंद कर रहे हैं, तो कुछ टीकाकरण को अनिवार्य बना रहे हैं. कुछ ने इस समस्या को भगवान भरोसे छोड़ दिया है.

एक विशेषज्ञ लोगों को चेता रहा है, तो दूसरा टीके की अतिरिक्त खुराक की जरूरत नहीं मानता. पहले शायद ही ऐसा व्यापक भ्रम कभी पैदा हुआ हो. हमारी रणनीति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं- क्या कोई स्पष्ट टीकाकरण नीति या योजना है? बूस्टर खुराक में देरी क्यों हुई है? पांच से 18 साल तक के बच्चों-किशोरों के टीकाकरण पर सरकार अस्पष्ट क्यों है?

उपलब्धता के बावजूद दोनों खुराकों के बीच की अवधि को सरकार घटा क्यों नहीं रही है? अगर टीकों की खेप निर्यात की जा रही है या टीके खराब हो रहे हैं, तो सरकार को बूस्टर खुराक के लिए टीके आयात करने में क्या परेशानी है? क्या हम बड़ी तीसरी लहर के लिए तैयार हैं? इन मुद्दों पर सरकारी तंत्र में कोई स्पष्टता नहीं है. भारत शायद एकमात्र देश है, जहां बहुत से विशेषज्ञ अलग-अलग तरीकों से प्रयोग कर रहे हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अलावा केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन के तहत एक सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी है, जो टीका निर्माताओं के आवेदन को परखती है. हाल में एसआइआइ ने दावा किया था कि उसका कोविशील्ड बूस्टर खुराक के लिए ठीक है. इसके बाद उससे अतिरिक्त आंकड़े मांगे गये थे.

उसी दौरान एक सप्ताह के भीतर देश की शीर्ष जीनोम सिक्वेंसिंग संस्था ने बूस्टर खुराक देने की अपनी राय को वापस ले लिया. उसने इस बारे में जिम्मेदारी दूसरी एजेंसियों के माथे मढ़ दी. मूल रूप से टीकाकरण पर बने टेक्निकल सलाहकार समूह और विशेषज्ञ समूह को ही सरकार को रणनीतिक सलाह देना था. जब स्वास्थ्य मंत्री ने संसद में कहा कि वैज्ञानिक सलाह के आधार पर बूस्टर खुराक और बच्चों के टीकाकरण पर फैसला लिया जायेगा, तो विभिन्न एजेंसियों ने जल्दी से अपने पांव खींच लिये.

सरकार या उसके प्रवक्ताओं ने दोनों खुराक के बीच की अवधि कम करने या बूस्टर खुराक के बारे में संभावित निर्णय के बारे में कुछ नहीं कहा है. वे भी अस्पष्ट हैं. कोरोना पर सबसे मुखर सरकारी आवाज बाल चिकित्सक और नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने कहा कि अगर जरूरी हुआ, तो बूस्टर खुराक पर फैसला अधिक जानकारियों की उपलब्धता के बाद किया जायेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंध में काम जारी है और विभिन्न देशों ने अपने नागरिकों को दोनों खुराक देने के बाद ही बूस्टर टीका दिया है. चिकित्सा अनुसंधान परिषद के विशेषज्ञ डॉ समीरन पांडा का मानना है कि आशंकित हस्तक्षेप से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि हमें अभी यह नहीं पता है कि वायरस क्या आकार लेगा और बुजुर्गों पर इसका क्या असर होगा.

दो साल महामारी से जूझने के बाद भी हमारा शासन केवल अधिक टीकाकरण तथा न्यूनतम मृत्यु और संक्रमण दर हासिल कर ही संतुष्ट है. पचास प्रतिशत से अधिक आबादी को दोनों खुराक तथा लगभग 75 प्रतिशत आबादी को एक खुराक अब तक दी जा चुकी है. महामारी की रोकथाम में निश्चित रूप से भारत अन्य देशों से आगे है, लेकिन आत्मसंतोष और अति आत्मविश्वास दुख का कारण बनते हैं, जैसा कि हमने महामारी की पहली लहर के बाद देखा है.

कोरोना रोकनेवाला भारत पहला देश था और हमने इस उपलब्धि का जश्न जोश से मनाया. हम कुछ बेपरवाह हो गये और फिर भयावह संक्रमण ने हमें तबाह कर दिया. उसके बाद से हमारी प्राथमिकता तीसरी लहर का सामना करने के लिए मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली बनाने की है. भारत को नये हमलों के लिए पूरी तरह तैयार रहना चाहिए.

वैश्विक अध्ययनों ने साबित किया है कि छह माह के अंतराल पर एक अतिरिक्त टीका लगाने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. बच्चों को टीका लगाने से गंभीर बीमारी और मौतों से बचाव होता है. भारत टीका निर्माण का वैश्विक केंद्र है. अभी खुराक की 20 करोड़ से अधिक बोतलें स्टॉक में हैं, लेकिन फिर भी टीकाकरण अभियान बेवजह धीमा हो गया है.

दुर्भाग्य से निजी टीका केंद्र घट कर अब केवल दो हजार रह गये हैं. उत्पादक भावी मांग को लेकर अनिश्चित हैं. दूसरी ओर, कई विकसित देश बच्चों को टीका देने और बूस्टर खुराक को लेकर अति सक्रिय हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने टीवी पर आकर लोगों से हिचकिचाहट छोड़ने के लिए प्रेरित किया है.

भारतीय व्यवस्था व्यक्तित्व से संचालित है. यदि इसने समय पर सक्रियता नहीं दिखायी, तो यह हमारी चूक होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्य की योजना और दिशा को परिभाषित एवं उसका निर्णय करते हैं. वे हर लड़ाई जीतते रहे हैं. उन्होंने कई चुनावी लड़ाइयां जीती हैं और आगे भी जीत सकते हैं. कोरोना भी उनकी लड़ाई का हिस्सा है. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि हमारी व्यवस्था उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में इस लड़ाई को जीतेगी.

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