राष्ट्रीय राजनीति में एमके स्टालिन
स्टालिन तीसरी पीढ़ी के द्रविड़ नेता हैं, जो तमिलनाडु की विकास गति को राष्ट्रीय आकांक्षाओं से संबद्ध करने की राह पर हैं.
परंपरा द्वारा परिभाषित सांस्कृतिक पहचान का आचार संबद्धता है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सात मई, 2021 को शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ट्विटर पर अपना परिचय ‘द्रविड़वाद से संबद्ध’ से बदलकर ‘मैं सदैव सामाजिक न्याय, समता और बंधुत्व का पक्षधर हूं’ कर दिया था. द्रविड़ सभ्यता के प्राचीन मूल्यों की उनकी वसीयतदारी उन्हें राष्ट्रीय एजेंडा को निर्धारित करनेवाले नये नेता के रूप में उभरने में योगदान दे रही है.
उनके पिता एम करुणानिधि एक द्रविड़ प्रतीक थे. उन्होंने राष्ट्रीय एजेंडा को निर्धारित करते हुए एक दशक से अधिक समय तक तमिलनाडु में शासन किया. स्टालिन पिता के स्तर पर पहुंचने में जुटे हुए हैं. करुणानिधि काव्य और पटकथा के जादू से लोगों को सम्मोहित करते थे, पर स्टालिन दक्षिण की राजनीति में नया व्याकरण स्थापित कर रहे हैं. केंद्र से अकेले भिड़ने के बजाय वे एनडीए का विकल्प बनाने की कोशिश में अग्रणी हो चुके हैं. वे राष्ट्रीय मुद्दों पर भी मुखर हैं. इससे इंगित होता है कि अपने पिता की छाया में उन्होंने राजनीति का गुर सीखा है.
कुछ दिन पहले संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में तमिलनाडु के एक उल्लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए एक सभा में स्टालिन ने कहा, ‘तमिलों को प्रधानमंत्री मोदी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र नहीं चाहिए. इतिहास साक्षी है.’ बहुत महीन ढंग से वे चोल वैभव की याद दिला रहे हैं, जो देश के महान साम्राज्यों में एक था और एशिया के बड़े हिस्से में फैला हुआ था.
वे गणतंत्र दिवस समारोह में तमिलनाडु की झांकी को शामिल न करने के केंद्र के हठी रवैये की निंदा कर रहे थे, जिसमें सुब्रमण्यम भारती जैसे स्वतंत्रता सेनानियों और कवियों को दर्शाया गया था. स्टालिन के शब्द तमिल विरासत के प्राचीन कक्षों में गुंजायमान हुए. उनके शब्द वे तलवार थे, जिन्होंने द्रविड़ प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुए यह संकेत दिया कि भारतीय राजनीति में द्रमुक की पहचान से कोई समझौता नहीं हो सकता.
फिर भी स्टालिन क्षेत्रीयतावादी नहीं हैं. पिछले वर्ष चुनाव अभियान में उन्होंने अपने राष्ट्रीय सोच का प्रदर्शन करते हुए जोर देकर कहा कि वे संविधान का क्षरण नहीं होने देंगे, जो विविधता में एकता का निर्देश देता है. इस विनम्र मुख्यमंत्री ने अपने विधायी व प्रशासनिक क्रियाकलापों से अपने वैचारिक एवं आर्थिक दिशा का संकेत दे दिया है.
संघीय अधिकारों को लेकर उनका रुख बिल्कुल स्पष्ट है. उन्होंने नीट पर केंद्र को घेरा. उन्होंने अपनी शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने के राज्यों के अधिकारों से संबंधित विवाद को स्वायत्तता का मुद्दा बना दिया. द्रमुक का मानना है कि नीट के जरिये केंद्र गरीब व पिछड़े छात्रों को चिकित्सक बनने से वंचित कर रहा है. नीट के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नजरअंदाज करते हुए द्रमुक और अन्य विपक्षी दलों ने अपने राज्यों में नीट के खिलाफ कानून पारित किया है.
स्टालिन ने अन्य मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा कि केंद्र संघवाद की भावना तथा संवैधानिक शक्ति संतुलन की अवहेलना कर रहा है. नीट के अलावा भी स्टालिन ने केंद्र के विरुद्ध कई संघर्ष छेड़ दिया है. सत्ता संभालने के बाद बतौर पहला निर्देश उन्होंने अधिकारियों को ‘केंद्र सरकार’ को बदलकर ‘संघीय सरकार’ करने को कहा था. संविधान के पहले अनुच्छेद का हवाला देने के पीछे उनका उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी को यह स्पष्ट संकेत देना था कि द्रमुक अन्य गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों की तरह भाजपा के पीछे नहीं रहेगी.
स्टालिन के युद्धघोष में संघवाद की भावना फिर दिखी, जब केंद्र ने आइएएस, आइपीएस आदि अधिकारियों के पदस्थापन से जुड़े नियमों में संशोधन का प्रस्ताव रखा. इन प्रस्तावों में केंद्र को राज्य की अनुमति के बिना वहां के अधिकारियों को केंद्र की सेवा में लगाने जैसे अधिकार दिये गये हैं.
स्टालिन ने प्रधानमंत्री मोदी से इन प्रस्तावों को वापस लेने का आग्रह करते हुए लिखा कि इन संशोधनों से सहकारी संघवाद की भावना को अपूरणीय क्षति होगी. उन्होंने यह भी लिखा कि राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श कर राष्ट्र की संघीय भावना को मजबूत किया जाना चाहिए तथा नौकरशाही को बेहतर बनाने की कोशिश की जानी चाहिए.
इसमें दो राय नहीं है कि द्रविड़ आकाशगंगा में एक नये सूरज का उदय हो चुका है. स्टालिन के सामाजिक न्याय और समावेश के मंत्र का विस्तार मंदिरों के प्रबंधन तक है. राज्य के नियंत्रण वाले 40 हजार से अधिक छोटे-बड़े मंदिरों में पारंपरिक रूप से कर्मकांड कराने का काम ब्राह्मण करते आये हैं. जाति के आधार पर पुजारियों की नियुक्ति नहीं करने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए पिछड़ों व दलितों को अलग रखा गया था.
पिछले साल स्टालिन ने दो दर्जन से अधिक गैर-ब्राह्मणों को नियुक्ति पत्र दिया, जिनमें पांच दलित और एक महिला है. स्टालिन ने गणमान्य व्यक्तियों को सिल्क दुशाला देने की परंपरा को छोड़कर तमिल इतिहास और विद्वानों की किताबें देने का सिलसिला शुरू किया है. प्रधानमंत्री मोदी से पहली मुलाकात में उन्होंने क्लासिकल तमिल मूर्तिकारों पर लिखी किताब भेंट दी.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को मदुरै शहर पर केंद्रित पुस्तक उपहार दिया. सोनिया गांधी को इतिहास की किताब दी. सत्ता के शीर्ष की यात्रा के दौरान कई रूप दर्शाते तमिल आख्यान के नये भास्कर का आगमन हो चुका है.
राजनेता बनने का आधार आर्थिक पहल और राजनीतिक लचीलापन हैं. तमिलनाडु ट्रिलियन डॉलर प्रतिस्पर्द्धात्मक खेल में शामिल हो चुका है. अभी 300 अरब डॉलर की जीडीपी के साथ यह देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.
स्टालिन तीसरी पीढ़ी के द्रविड़ नेता हैं, जो तमिलनाडु की विकास गति को राष्ट्रीय आकांक्षाओं से संबद्ध करने की राह पर हैं. राज्य में न्यूनतम बेरोजगारी है तथा यहां पांच फीसदी से भी कम आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. इसकी आधी जीडीपी सेवा क्षेत्र से आती है तथा यह विदेशी निवेश के सबसे पसंदीदा गंतव्यों में से एक है.
आर्थिक विकास के बावजूद तमिलनाडु की आबादी परंपरागत रूप से स्थानीय पार्टियों को पसंद करती है, जबकि राष्ट्रीय पार्टियां लगातार मतदाताओं द्वारा खारिज कर दी जाती हैं. द्रमुक की बुनियादी विचारधारा से चिपके रहने के फायदों को स्टालिन जानते हैं क्योंकि उनकी कामयाबी उनके द्रविड़ प्रासाद का भारतीयकरण करने की उनकी क्षमता, दक्षता और अनुकूलनीयता पर निर्भर करेगी. उनके भक्तों को भरोसा है कि स्टालिन के मस्तिष्क में एक सर्वोच्च लक्ष्य निर्धारित हो चुका है- जो आज स्टालिन सोचते हैं, वह कल भारत करता है.