चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.4 फीसदी रही है. इससे साफ जाहिर है कि हमारी अर्थव्यवस्था की सेहत बहुत अच्छी है. इस बढ़ोतरी से इंगित होता है कि उपभोक्ता का विश्वास बढ़ा है और लोग खर्च करने लगे हैं. महामारी की रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों को हटाने से औद्योगिक और कारोबारी गतिविधियों ने तेजी से रफ्तार पकड़ी है.
बीती तिमाही में निर्यात के क्षेत्र में भी बढ़िया प्रदर्शन रहा है. इस वृद्धि की एक अन्य बड़ी वजह माॅनसून का अच्छा रहना भी है. इससे फसल अच्छी हुई और किसानों की आमदनी में बढ़त हुई. हमारे देश में अक्सर यह देखा गया है कि अगर बारिश ठीक होती है, तो ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़ती है. इसका वृद्धि पर सकारात्मक असर होता है.
मैनुफैक्चरिंग में भी 5.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन यह अपेक्षा से कम है. इसका कारण आपूर्ति शृंखला के अवरोध रहे हैं. ये बाधाएं अभी भी मौजूद हैं. हमें याद करना चाहिए कि जुलाई से सितंबर तक की तिमाही पर कोरोना महामारी की दूसरी लहर की भी छाया रही है. इस लहर ने मैनुफैक्चरिंग और आपूर्ति शृंखला को प्रभावित किया था. औद्योगिक उत्पादन के लिए बहुत तरह के संसाधनों की आवश्यकता होती है.
श्रमिकों के अलावा कच्चे माल तथा विभिन्न सहायक वस्तुओं की आपूर्ति भी निर्बाध ढंग से बनी रहनी चाहिए. इस कमी की वजह से फैक्ट्रियों में उम्मीद से कम उत्पादन हुआ है. अगर स्थिति सामान्य रहती और उत्पादन का स्तर अच्छा होता, तो वृद्धि दर 9.5 प्रतिशत के आसपास हो सकती थी. लेकिन कुल मिलाकर यह उम्मीद तो बनती ही है कि इस वित्त वर्ष की सभी चार तिमाहियों की वृद्धि दर कम-से-कम सात से आठ प्रतिशत के बीच रह सकती है.
हम कह सकते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था बीते साल की मुश्किलों से उबरते हुए सुधार की ओर अग्रसर है. जो वर्तमान तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर) है, उसमें दीवाली और अन्य त्योहारों के मौसम में शानदार उपभोग देखा गया है और यह अभी भी जारी है. साल 2020 में इस तिमाही में महामारी के कारण बाजार बहुत धीमा रहा था, जिसका असर वृद्धि दर पर भी हुआ था. लेकिन इस बार लोगों ने खुलकर खर्च किया है. उपभोग में इस उछाल का प्रभाव हमें तीसरी तिमाही के नतीजों में जरूर देखने को मिलेगा. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के संग्रहण के आंकड़े भी इसी ओर संकेत कर रहे हैं.
उपभोग के साथ निर्यात में वृद्धि के कारकों को एक साथ रख कर देखें और अगर आपूर्ति शृंखला की बाधाएं कम होती हैं, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगली दो तिमाहियों में भी हमें अर्थव्यवस्था का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिलेगा. अनेक जानकार यह भी कह रहे हैं कि शायद आर्थिक वृद्धि दो अंकों में यानी 10 प्रतिशत से अधिक भी हो सकती है. इस अनुमान को एक ठोस आधार अक्तूबर में आठ मुख्य क्षेत्रों की संयुक्त बढ़ोतरी का 7.5 प्रतिशत होने से भी मिलता है.
जिस तिमाही (जुलाई-सितंबर) की हम चर्चा कर रहे हैं, उसमें भी इन प्रमुख क्षेत्रों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गयी है. इन क्षेत्रों में बड़ी मांग इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि से आती है. हम देख रहे हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर में विभिन्न परियोजनाओं में बड़ी तेजी के रुझान हैं और नयी परियोजनाओं की घोषणा भी हो रही है, जिसका प्रभाव बाद में दिखेगा. इस क्षेत्र में निजी निर्माण भी बड़ा कारक है. आवास और व्यावसायिक निर्माण के क्षेत्र में महामारी से पहले से ही सुस्ती थी. आपूर्ति की मात्रा मांग से कहीं अधिक हो गयी थी. महामारी के दौरान तो यह क्षेत्र लगभग बैठ ही गया था. पर अब इसमें सकारात्मक बढ़त होने लगी है. तो, इन प्रमुख क्षेत्रों में आगे भी बढ़ोतरी होती रहेगी.
आर्थिक वृद्धि के वर्तमान और भविष्य की चर्चा करते हुए हमें चुनौतियों का भी ध्यान रखना चाहिए. हमारी अर्थव्यवस्था के सामने अभी मुख्य रूप से दो चुनौतियां हैं. एक, कोरोना वायरस के नये वैरिएंट ओमिक्रॉन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष चिंताओं को बढ़ा दिया है. अगर इससे महामारी एक बार फिर बड़े पैमाने पर फैलती है, तो हमारे निर्यात तथा आपूर्ति शृंखला पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. आयात पर होनेवाला खर्च भी बढ़ जायेगा.
दूसरी चिंता यह है कि कहीं यह नया वायरस हमारे देश में घुसकर कोई तीसरी लहर जैसी स्थिति न पैदा कर दे. अभी कोरोना महामारी नियंत्रण में है और टीकाकरण अभियान भी संतोषजनक गति से चल रहा है. यदि लॉकडाउन की स्थिति पैदा होती है, भले ही वह स्थानीय स्तर पर भी करना पड़े, तो आर्थिक गतिविधियां धीमी हो जायेंगी. महामारी उन्हीं जगहों पर अधिक फैलती है, जहां अधिक लोग होते हैं.
ऐसी जगहें औद्योगिक शहर, बंदरगाह आदि होती हैं. इन्हीं स्थानों पर उत्पादन और कारोबार भी केंद्रित होता है. दुनियाभर के विशेषज्ञ भी यही कह रहे हैं कि हर जगह आर्थिक बेहतरी हो रही है, चाहे यूरोप हो, अमेरिका हो, भारत हो या फिर दक्षिण-पूर्व एशिया हो. यदि नया वायरस बुरी तरह से फैल जाता है, तो हर जगह की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी.
मेरा मानना है कि हमें मुद्रास्फीति को लेकर अभी बहुत अधिक चिंतित नहीं होना चाहिए. हमारी मुख्य प्राथमिकता अर्थव्यवस्था को महामारी से पहले की स्थिति में लाना है. अभी हमें आर्थिक वृद्धि और रोजगार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. मुद्रास्फीति तो कुछ ऊपर रहेगी ही क्योंकि कोरोना महामारी से जूझने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर खर्च किया है और यह आगे भी जारी रहेगा. जब भी सरकार खर्च करती है, तो मुद्रास्फीति में कुछ बढ़ोतरी स्वाभाविक है.
तय सीमा से अगर यह दो-तीन प्रतिशत ऊपर-नीचे रहती है, तो हमें परेशान नहीं होना चाहिए. मुद्रास्फीति को नीचे लाने के लिए अगर मांग को नियंत्रित करने की कोशिश होगी, तो उसका सबसे खराब असर उन लोगों पर होगा, जिन्हें रोजगार चाहिए और जिनकी रोजी-रोटी उससे जुड़ी है. यह सही है कि मुद्रास्फीति बढ़ने से भी गरीब तबका ही सबसे अधिक प्रभावित होता है, लेकिन यह भी सच है कि इस समय अगर आप आर्थिक वृद्धि और रोजगार बढ़ाने पर जोर न दें, तो उससे भी वही लोग अधिक प्रभावित होंगे.
कोशिश यह रहनी चाहिए कि मुद्रास्फीति खतरनाक स्तर पर न पहुंचे. सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़कर खर्च करने की जो नीति बनायी है, यह सही दिशा में कदम है क्योंकि इससे वृद्धि भी हासिल हो रही है और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार हो रहा है. इस नीति को जारी रखना चाहिए.