स्क्रैपेज नीति से बहुआयामी लाभ
बीते सालों में औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्र में सरकार की ओर से बहुत सारे कदम उठाये गये हैं, स्क्रैपेज नीति को उस कड़ी में देखा जाना चाहिए.
देश में वाहनों से संबंधित स्क्रैपेज नीति की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, जो अब बहुत सोच-विचार के बाद लागू की जा रही है. इस नीति को लाने के पीछे दो मुख्य वजहें हैं. एक तो पर्यावरण सुरक्षा के लिए जरूरी है कि प्रदूषणकारी वाहनों, खासकर व्यावसायिक बड़े वाहनों, को सड़कों से हटाया जाए. बड़े वाहन तो वैसे ही प्रदूषण फैलाते हैं और पुराने होते जाने के साथ उनसे बहुत अधिक प्रदूषण होता है.
हमारे देश में वाहनों को बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि अभी तक स्क्रैपिंग की कोई नीति नहीं थी. इस नीति में भी इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है और निर्धारित अवधि के बाद वाहनों का फिटनेस स्तर देखकर निर्णय लेने का प्रावधान है. दूसरी बात यह है कि इससे ऑटोमोबाइल उद्योग को बहुत बढ़ावा मिलने की संभावना है क्योंकि अगर लोग 10-15 साल पुराने वाहनों, चाहे वे व्यावसायिक वाहन हों, यात्री गाड़ियां हों या फिर निजी वाहन, स्क्रैप कर नयी गाड़ियां नहीं लेंगे, तब तक वाहन उद्योग के क्षेत्र में मांग को नहीं बढ़ाया जा सकता है.
अर्थव्यवस्था के लिहाज से ऑटोमोबाइल उद्योग एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है. इस क्षेत्र में मांग बढ़ने से अन्य कई क्षेत्रों को भी लाभ पहुंचता है. इससे लोहा व इस्पात, रबर, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि के क्षेत्र में मांग बढ़ती है. अर्थव्यवस्था में इसे बहुगुणक प्रभाव के नाम से जाना जाता है.
बीते सालों में औद्योगिक और वित्तीय क्षेत्र में बहुत सारे कदम उठाये गये हैं, स्क्रैपेज नीति को उस कड़ी में देखा जाना चाहिए. इस नीति से हम मांग बढ़ने की उम्मीद तो कर सकते हैं, लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है, जो यातायात से संबंधित है. परिवहन मंत्रालय ने यातायात सुरक्षा को सुनिश्चित करने का निरंतर प्रयास किया है. हमारे देश में जो ट्रकों की सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, उनमें ओवरलोडिंग या अन्य कारणों के साथ एक कारक ट्रकों का पुराना होना भी है.
ऐसे वाहन पुराना होने के चलते ओवरलोड नहीं ले पाते, उनके एक्सल टूट जाते हैं या अन्य समस्याएं पैदा हो जाती हैं. इससे न केवल चालक और सह-चालक का जीवन खतरे में पड़ता है, बल्कि शेष यातायात के लिए भी जोखिम बढ़ जाता है. इस प्रकार सड़क सुरक्षा भी इस नीति का एक आयाम है.
हम देख रहे हैं कि सरकार पर्यावरण पर बहुत ध्यान दे रही है, जो जलवायु परिवर्तन की समस्या को देखते हुए आज के समय में मुख्य प्राथमिकता होनी ही चाहिए. स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए अनेक पहल हो रहे हैं. कोशिश है कि कोयला से चलनेवाले संयंत्रों को अगर पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता है, तब भी आगे जो बिजली की मांग की आपूर्ति होनी है, उसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से पूरा किया जाए.
हम जानते हैं कि शहरों में और राजमार्गों के आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों से होनेवाला उत्सर्जन है. नयी गाड़ियों से प्रदूषण भी कम होता है और उनमें प्रदूषण को लेकर मानकों में लगातार सुधार भी होता रहता है. भारत सरकार बिजली से चलनेवाले वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ाने की दिशा में भी प्रयासरत है. हालांकि इस नीति से उस प्रयास को भी सैद्धांतिक रूप से मदद मिला सकती है, लेकिन व्यावहारिक रूप से अभी कुछ वर्षों तक इसमें कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं आयेगा.
दुपहिया वाहनों और कारों में कुछ बिक्री अवश्य बढ़ेगी, लेकिन व्यावसायिक और बड़े वाहनों के लिए जितनी बैटरी क्षमता और चार्जिंग सुविधा चाहिए, उसे बनाने में अभी बहुत समय लग सकता है. हमारे देश में छोटे-छोटे पिक-अप ट्रक और लॉरी बहुत उपयोग होते हैं, उनके लिए अधिक बैटरी क्षमता चाहिए. हाल में एक अच्छा विचार यह आया है कि बैटरी रिचार्ज की जगह बैटरी बदलने के केंद्र बनाये जाएं, पेट्रोल पंपों की तरह. यह सब होने में समय लगेगा, लेकिन दीर्घकाल में इस नीति की वजह से फायदा होगा.
निश्चित रूप से वाहन स्क्रैप नीति एक सराहनीय कदम है, लेकिन इसे लेकर जो चिंताएं हैं, उन पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए. किसानों को अपने ट्रैक्टरों और वाहनों को बदलने भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इससे भी बड़ी समस्या छोटे व्यावसायिक वाहनों के मालिकों के लिए हो सकती है. गांवों से मंडियों तक विभिन्न वस्तुओं की ढुलाई का काम ऐसे वाहनों से ही होता है. छोटे वाहनों के जो मालिक हैं, उनमें से लगभग दस फीसदी लोग उसे खुद ही चलाते हैं.
कई बार वह वाहन ही उनके आमदनी का मुख्य माध्यम होता है. बहुत संभव है कि ऐसे लोगों में बड़ी संख्या उनकी हो सकती है, जिन्होंने सात-आठ साल पुराना वाहन खरीदा हो. कुछ साल में ऐसे वाहनों को स्क्रैप करना पड़ सकता है. सरकार ने अभी 10 और 15 साल की अवधि को अनिवार्य नहीं बनाया है, सो एक हद तक उन्हें कुछ राहत मिला सकती है. नीति में यह प्रावधान है कि अवधि पूरी हो जाने पर वाहन के फिटनेस की जांच करानी होगी. इस जांच का शुल्क बहुत अधिक रखा गया है, जो बहुत से लोगों के जेब पर भारी पड़ सकता है.
वाहनों की बिक्री के क्षेत्रवार आंकड़ों को देखें, तो जो समृद्ध राज्य हैं, वहां नये वाहनों की बिक्री अधिक होती है, जबकि अपेक्षाकृत निर्धन राज्यों में पुराने वाहनों की खरीद अधिक की जाती है. इसकी वजह लागत का कम होना है. इस नीति के बाद उनके सामने नयी चुनौतियां आ सकती हैं. हालांकि सरकार ने स्क्रैप के लिए राजी मालिकों को नये वाहन की खरीद पर करों में छूट का प्रावधान किया है और वाहन के दाम में भी कुछ छूट मिलेगी, पर इस संबंध में उचित राहत के लिए कुछ और उपाय सरकार की ओर से किये जा सकते हैं.
जो लोग छोटे व्यावसायिक वाहन के मालिक और चालक खुद हैं, उन्हें कुछ अतिरिक्त अनुदान दिया जाना चाहिए. उन्हें ब्याज से मुक्त या कम दर पर कर्ज मुहैया कराया जा सकता है. इससे उन्हें आर्थिक दबाव से भी बचाया जा सकेगा और वाहनों की मांग में भी वृद्धि करने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा. बहरहाल, अभी नीति के लागू होने की शुरुआत हो रही है और कुछ समय में अनुभवों के आधार पर संशोधन करने का अवसर होगा.
यह भी देखना होगा कि स्क्रैप नीति को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें किस प्रकार और कितनी शीघ्रता से आवश्यक व्यवस्था कर पाती हैं. अगर हम वायु प्रदूषण की मात्रा कम करने तथा वाहन उद्योग में मांग बढ़ाने में सफल होते हैं, तो यह नीति की सफलता होगी.