स्वाधीनता संघर्ष के दौरान 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जब पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित हुआ था, तभी यह तय हुआ था कि इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा. जब हमें 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिली, तो स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को मनाया जाता है. जब हमारा संविधान बना, तो इसे पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव पारित होने के दिन के सम्मान में 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया और हम उस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं, जो हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस के समान ही पावन है.
किसी भी राष्ट्र के लिए उसके प्रतीक बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. राष्ट्र एक भावना है और उस भावना का प्रकटीकरण प्रतीकों के माध्यम से होता है. इन प्रतीकों में राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत, राष्ट्रीय चिह्न आदि शामिल हैं. राष्ट्र की शक्ति भी एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका प्रदर्शन हम तीनों सशस्त्र सेनाओं के सैनिकों तथा अस्त्र-शास्त्रों के माध्यम से गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान करते हैं. भारतीय राष्ट्र की विशिष्टता विविधता में एकता है. इस सांस्कृतिक विविधता का भी हम उत्सव गणतंत्र दिवस के अवसर पर करते हैं. साथ ही, इस मौके पर हम देश की प्रगति और उपलब्धियों को भी रेखांकित करते हैं.
जब भारत स्वतंत्र हुआ था, तो ऐसे कई लोग थे, जिन्हें संशय था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में रह सकेगा. कुछ विद्वानों का आकलन था कि भारत में इतनी विविधताएं हैं कि उसका एक रह पाना संभव नहीं है तथा राष्ट्र के एक विशेष आधार की अनुपस्थिति में वह आगे चलकर विखंडित हो जायेगा और उससे अलग-अलग राष्ट्र बन जायेंगे. ऐसे विद्वानों के विश्लेषण का आधार राष्ट्र राज्य की पश्चिमी अवधारणा थी, जिसके अनुसार एक राष्ट्र के लिए एक भाषा, धर्म, संस्कृति और अस्मिता जैसे तत्व आवश्यक हैं.
भारत में तो ऐसा नहीं है. यह देश तो दुनिया के सबसे अधिक विविधताओं का देश है. सो, इसके भविष्य को लेकर प्रश्न खड़े किये गये. दूसरी ओर, यह भी कहा गया कि पाकिस्तान एक राष्ट्र के रूप में बचा रह जायेगा क्योंकि उसके पास एक धर्म का आधार है. आज जब हम सात दशक से अधिक समय बाद खड़े होकर इतिहास को देखते हैं, तो पाते हैं कि न केवल पाकिस्तान का विभाजन हुआ, बल्कि भविष्य में उसके और भी विभाजन संभावित हैं. भारत एक है और एक बना रहेगा. आज भारत विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है तथा अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण उपस्थिति है. इन तथ्यों के रेखांकन का भी अवसर गणतंत्र दिवस है.
निश्चित रूप से हमने गणराज्य के रूप में हर क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, लेकिन हमारे सामने चुनौतियां भी हैं. जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषा को लेकर पूर्वाग्रह, अस्मिता के आधार पर तनाव, आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद, विभाजनकारी सोच आदि गंभीर समस्याओं का हम सामना कर रहे हैं. विकास की आकांक्षाओं को पूरा करना तथा अब तक की उपलब्धियों में सभी को शामिल करना भी आवश्यक है.
इस वर्ष हम स्वतंत्रता का अमृत वर्ष भी मना रहे हैं. भविष्य में समृद्ध और विकसित भारत का संकल्प साकार हो, इसके लिए समस्याओं के समाधान पर ठोस ध्यान दिया जाना चाहिए. इस प्रयास में अब तक के हमारे अनुभव आगे के लिए आधार बन सकते हैं. हम जापान, जर्मनी आदि देशों के इतिहास से भी प्रेरणा ले सकते हैं, जो युद्ध की तबाही और संसाधनों के अभाव के बावजूद विकास के शीर्ष पर पहुंचे. आज भारत दुनिया की शीर्षस्थ अर्थव्यवस्थाओं में है. विकास के अन्य मानदंडों पर हमारा रिकॉर्ड शानदार है. इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम वर्तमान समस्याओं का हल नहीं निकाल सकेंगे या हमारी आगे की यात्रा में बड़ा अवरोध उत्पन्न हो जायेगा.
औपनिवेशिक दासता से मुक्त होने वाली तीसरी दुनिया के देशों में जो भी गणतंत्रात्मक प्रयोग हुए, वे दुर्भाग्य से विफल रहे. ऐसे देशों में भारत गणतांत्रिक व्यवस्था के कारगर होने के एकमात्र उज्ज्वल उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित है. प्रारंभ में भारत के भविष्य को लेकर जितनी आशंकाएं जतायी गयी थीं, वे सब गलत साबित हुई हैं तथा भारत सात दशकों से एक सफल गणराज्य के रूप में विश्व के समक्ष आदर्श बना हुआ है.
आज इसके सफल भविष्य के बारे में किसी प्रकार का संदेह नहीं है. राजनीति शास्त्र के विद्वानों का कहना है कि राजनीति, आर्थिकी और समाज को एक साथ चलना होता है तथा इनमें विसंगतियां नहीं होनी चाहिए. लेकिन जब स्वतंत्र भारत ने अपनी गणतांत्रिक यात्रा का प्रारंभ किया, तो हमारी अर्थव्यवस्था और समाज में पिछड़ापन था, जबकि हमारी राजनीति का स्तर बहुत आगे था. ऐसे में भारतीय गणतंत्र की सफलता पर लोगों को संदेह था.
संविधान निर्माता बाबासाहेब आंबेडकर ने भी कहा था कि इस राजनीतिक व्यवस्था को सामाजिक और आर्थिक विषमता के साथ कहां तक ले जा सकेंगे, यह देखना होगा. सात दशकों से अधिक समय की इस यात्रा में हमने आबादी के बड़े हिस्से को गरीबी रेखा से ऊपर उठाते हुए राष्ट्रीय विकास में भागीदार बनाया है. विभिन्न सामाजिक वर्गों को सार्वजनिक जीवन में समानता के साथ प्रतिनिधित्व हासिल हुआ है. इन मामलों में भले ही पूर्ण सफलता अभी तक नहीं मिल सकी है, पर उस दिशा में हमारी यात्रा अग्रसर है. भारत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों के लिए निश्चित ही एक आदर्श हो सकता है.