20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल

चीनी कम्युनिस्ट निरंतर अपने ढांचे तथा आंतरिक प्रकिया में बदलाव लाते रहे हैं. पार्टी ने नये सदस्यों की बहाली में कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया, जैसा कि हमारे यहां दिखता है.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस जुलाई में अपनी स्थापना की सौवीं वर्षगांठ मना रही है. इन सौ सालों में कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन को विश्व के मानचित्र पर एक शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित किया है. इससे उनके धुर विरोधी भी इंकार नहीं करेंगे. चीन ने विकास की सीढ़ियों पर बड़ी तेजी से छलांग लगायी है. एक अध्ययन के मुताबिक, चीन ने पिछले 50 सालों में सीमेंट तथा लोहे का जितना उपयोग किया है, अमेरिका को उतना उपयोग करने में दो सौ साल लग गया. दूसरे शब्दों में, जिसको पूरा करने में पश्चिमी और अन्य देशों को सैकड़ों वर्ष लग गये, चीन ने कुछ बरसों में ही कर दिखाया है. अन्य नजरिये से देखें, तो चीन ने प्राकृतिक संसाधनों का बहुत तेजी से दोहन किया है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इन सौ सालों में कई उतार-चढ़ाव से गुजरी है. सत्ता में काबिज रहने तथा निरंतर अपनी उपयोगिता बनाये रखने के लिए पार्टी कभी अपनी पकड़ मजबूत, तो कभी ढीली करती रही है. लोकतंत्र के इतर चीन में पार्टी को अपनी वैधता साबित करने के लिए चुनाव नहीं, बल्कि जनता की सुख-सुविधाओं को पूरा करना तथा उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना होता है. इन्हीं अपेक्षाओं में एक था चीन को गरीबी से मुक्त करना.

गरीबी मुक्त चीन कम्युनिस्ट पार्टी के दो शताब्दी के लक्ष्यों में से एक है, जो पार्टी के सौ साल पूरा होने से पहले हासिल करना था. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसी साल चीन के गरीबी मुक्त होने का ऐलान किया था, जिसमें बचे हुए लगभग 10 करोड़ गरीब ग्रामीण लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का दावा किया गया है. यहां तक कि सूचित 832 गरीब काउंटियों तथा 1.28 लाख गांवों को गरीबी सूची से हटा दिया गया है. हालांकि कई जानकार चीन के इस दावे को सवालिया नजर से देखते हैं और गरीबी रेखा निर्धारण पर प्रश्न उठाते हैं.

दूसरा लक्ष्य चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन की स्थापना होने के सौ वर्ष होने यानी 2049 से पहले चीन को एक ‘आधुनिक समाजवादी देश, जो समृद्ध, मजबूत, लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक रूप से उन्नत और सामंजस्यपूर्ण हो’ बनाना है. यहां लोकतांत्रिक का मतलब पश्चिमी देशों के तर्ज पर चुनावी लोकतंत्र नहीं है, अपितु चुनावी तथा परामर्श लोकतंत्र का मिला-जुला रूप है. कहने का अर्थ यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अभी कहीं जानेवाली नहीं है.

यह प्रश्न स्वाभाविक है कि जब विश्व की कई पुरानी पार्टियां अपनी प्रासंगिकता खो रही हैं तथा अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की जड़ें क्यों गहरी हो रही हैं? इसकी सफलता ने कई देशों में एक पार्टी के बढ़ते औचित्य की तरफ ध्यान आकर्षित किया है, पर इन देशों को चीन और उनके अपने देश की बुनियादी संरचना और सामाजिक ताने-बाने के अंतर को समझना चाहिए.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से लगभग 35 साल पुरानी भारतीय कांग्रेस आज हाशिये पर जा चुकी है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तो अपने परंपरागत वर्चस्व वाले क्षेत्र से खत्म हो चुकी है. इन पार्टियों के हितैषी कह सकते हैं कि चीन में एक पार्टी का राज है और भारत में बहुल पार्टी व्यवस्था है. यह बात एक हद तक ठीक है, लेकिन समय के साथ इनमें बदलाव न होने से उनके लिए ज्यादा तकलीफें पैदा हुईं.

‘इतिहास के अंत’ का प्रतिपादन करनेवाले फ्रांसिस फुकुयामा को चीन के विकास तथा विश्व में बढ़ते वर्चस्व पर विवश होकर अपने विचार को अपरिपक्व बताना पड़ा. क्या कारण हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सोवियत संघ के कम्युनिस्ट जैसा हाल नहीं दिख रहा? सबसे अहम यह है कि चीनी कम्युनिस्ट निरंतर अपने ढांचे तथा आंतरिक प्रकिया में बदलाव लाते रहे हैं. गौर करनेवाली बात यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने नये सदस्यों की बहाली में कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया, जैसा कि हमारे यहां दिखता है.

एक मिस कॉल देकर कोई भी किसी पार्टी का सदस्य बन सकता है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ईमानदार व सजग द्वारपाल की भांति हर सदस्य की जांच-पड़ताल कर ही अंदर आने दिया है. यूं कहें कि हमारी आइएएस परीक्षा से भी कठिन तथा विस्तृत प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही कोई चीनी पार्टी का सदस्य बन सकता है. यह प्रक्रिया कई बार बरसों चलती है. इच्छुक लोगों को न केवल शैक्षणिक तथा अन्य विधाओं में जांचा जाता है, बल्कि उनकी सामाजिक सोच, नैतिकता, पार्टी के प्रति वफादारी तक को सालभर चलनेवाली प्रकिया व ट्रेनिंग में परखा जाता है.

चरित्र तथा सामाजिक उत्तरदायित्व को भी परखा जाता है. हाई स्कूल के छात्र से लेकर नौकरीशुदा लोग तक पार्टी का सदस्य बनना चाहते हैं. पार्टी सदस्य होने के अनगिनत फायदे हैं- नौकरी से लेकर प्रोन्नति तक. यहां तक कि वर्तमान चीनी राष्ट्रपति, जो पार्टी के महासचिव भी हैं, को सदस्य बनने के लिए कई बार आवेदन करना पड़ा था, वह भी तब, जब शी जिनपिंग के पिता शी चोंगशुन पार्टी के ऊंचे स्तर के नेता थे. यही वजह है कि 139 करोड़ जनसंख्या वाले चीन में मात्र 9.5 करोड़ लोग ही कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं, जबकि हमारे देश में भारतीय जनता पार्टी के लगभग 18 करोड़ सदस्य हैं.

पर जब एक ही पार्टी की सत्ता हो, तो स्वाभाविक है कि भ्रष्टाचार की जड़ें भी गहरी होंगी. पार्टी जीवन के सभी आयामों पर पूरा कब्जा बनाये हुए है और चीनी जनता इन भ्रष्ट मुलाजिमों से तंग है. पार्टी में भ्रष्ट नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगाने के लिए बड़े पैमाने पर मुहिम चलायी गयी. नेताओं तथा अधिकारियों को भी कार्रवाई में बख्शा नहीं गया. कई बड़े नेताओं को जेल भेजा गया, तो उनके गुर्गे स्वत: ही सतर्क हो गये. कई लोगों ने इस कदम को शी जिनपिंग द्वारा अपने विरोधियों को ठिकाने लगानेवाला बताया, तो चीनी जनता ने इसे देश तथा पार्टी के लिए उचित माना.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में आंतरिक संतुलन पार्टी के ही विभिन्न धड़े बनाते हैं. एक ओर जहां राजकुमारों (जिनके बाप-दादा पार्टी में रसूखदार रहे हैं) पर पार्टी के युवा लीग के साधारण सदस्यों का दबाव होता है, वहीं विभिन्न क्षेत्रीय गुटों, जैसे शंघाई, चचियांग इत्यादि में खींच-तान लगी रहती है. इन सबके इतर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा दिखाती है कि चीन के बाहर जनता त्राहिमाम कर रही है, भूखी व बीमार है और लोकतंत्र लाचार है. दूसरी ओर वह चीनी जनता को यह विश्वास दिलाती है कि कम्युनिस्ट पार्टी चीन के लिए भगवान से कम नहीं है, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को एक तरह से अमरत्व प्रदान करती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें