स्कूल खुलें, पर तैयारी मुकम्मल हो
स्कूल बंद होने से बहुत से बच्चे बहुत सी चीजें भूल चुके होंगे, क्योंकि हमारी बेसिक लर्निंग लेवल में पहले भी दिक्कतें थीं. इसलिए बेसिक फाउंडेशन की जो चीजें हैं, उसे पढ़ाना होगा. इससे जो बच्चे ज्यादा नहीं भूले हैं, उनका दुहराव हो जायेगा और जो भूल चुके हैं, वे फिर से उसे सीख पायेंगे.
बच्चों के स्कूल बंद हुए बहुत दिन हो गये हैं. लिहाजा, सुरक्षा नियमों के तहत उन्हें खोलने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना होगा. पहली बात कि महामारी की इस स्थिति में कुछ भी निश्चित नहीं है. आज माहौल सामान्य लग रहा है, कल सबकुछ फिर से बंद करना पड़ सकता है. इसलिए स्कूल खोलने से पहले इसे लेकर पैरेंट-टीचर मीटिंग होनी चाहिए, ताकि एक-दूसरे के विचारों और सुझावों के बारे में जाना जा सके.
कुछ अभिभावक खतरे के डर से स्कूल खुलने पर भी बच्चों को नहीं भेजेंगे, जबकि कुछ का मानना है कि लंबे समय से स्कूल बंद होने से उनके बच्चे पिछड़ रहे हैं. इसलिए स्कूल खुलना चाहिए. कुछ बच्चे बेसब्री से स्कूल के खुलने का इंतजार कर रहे हैं, जबकि कुछ संभवत: अब भी स्कूल जाने से डरेंगे. स्कूल खोलने से पहले दोनों स्थितियों को लेकर हमारी तैयारी होनी चाहिए.
दूसरी, अभिभावक-शिक्षक के बीच बातचीत इसलिए जरूरी है, क्योंकि फिर से स्कूल बंद होने की स्थिति में किस तरह बच्चों की पढ़ाई संचालित होगी, इसकी योजना अभी ही बनानी होगी. स्कूल खोलने के दौरान भी अभिभावकों और शिक्षकों के बीच निरंतर संपर्क बना रहना जरूरी है.
इस मीटिंग में यह भी निश्चित होना चाहिए कि स्कूल बंद रहे या खुला, सप्ताह में एक बार अभिभावक-शिक्षक के बीच बातचीत अवश्य हो और इसके लिए एक समय भी निश्चित हो. तीसरी, यदि फिर से स्कूल बंद होते हैं, तो स्कूल में पाठ्य सामग्री, वर्कशीट आदि की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए और सप्ताह में एक दिन स्कूल खुलना चाहिए, ताकि अभिभावक संबंधित पठन सामग्री को वहां से आकर ले जा सकें. सप्ताह में एक दिन अभिभावक-शिक्षक के बीच बातचीत भी हो, ताकि बच्चे ने कितनी और कौन-कौन सी गतिविधियां इस दौरान की हैं, उसे अभिभावक बता सकें. स्कूल और अभिभावक के बीच नियमित फोन का सिलसिला भी बना रहे, यह व्यवस्था शुरू हो जानी चाहिए. इसके बाद स्थिति सामान्य रहती है, सभी राजी होते हैं, तब स्कूल खोले जाएं.
स्कूल खोलने को लेकर भी स्कूल स्तर पर कई व्यवस्थाएं हो सकती हैं- पहले सिर्फ दो घंटे के लिए छोटे बच्चों को बुलाया जाए और उसके बाद के दो-तीन घंटे के लिए तीसरी-चाैथी-पांचवीं के बच्चों को या कक्षा में दो-तीन घंटे के लिए 15 बच्चे आएं और उसक बाद के दो-तीन घंटे में अगले 15 बच्चे या अल्टरनेट डे करके बच्चों को बुलाया जाए, ताकि भीड़ इकट्ठी न हो, लेकिन कुछ बच्चे इसके बावजूद भी स्कूल नहीं आयेंगे, तो उन तक कैसे पहुंचा जाए, यह याेजना भी बनानी होगी. बच्चे पहले की तरह प्रतिदिन स्कूल आयेंगे, इस स्थिति में हम अभी इतनी जल्दी नहीं पहुंच पायेंगे, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अतिरिक्त प्रयास ही न करें.
‘प्रथम’ की बात करें, तो हमने जुलाई के बाद मोहल्ला क्लास शुरू किया है. बहुत अच्छी उपस्थिति भी उसमें चल रही है. एक संरचनागत व्यवस्था के तहत स्वैच्छिक तौर पर लोग आगे आ रहे हैं और अपने मोहल्ले में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. हम उन्हें पैसा नहीं दे रहे हैं, केवल यह बता रहे हैं कि क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है. हमने दो चीजों पर ध्यान केंद्रित किया है.
एक, तीसरी से छठी तक के बच्चों को एक महीना बेसिक गणित और एक महीना भाषा यानी जो बुनियादी कौशल हैं, उसके ऊपर रोज एक से डेढ़ घंटा गतिविधियां कराना. इसे हम ‘ कैच अप’ कैंपेन कह रहे हैं. दूसरा, पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों की माताओं को ऑर्गनाइज किया जा रहा है कि वे घर में बच्चों को साधारण कॉग्निटिव एक्टिविटी, पजल, क्लासिफिकेशन आदि करवाएं. इस तरह स्कूल शिक्षक भी कर सकते हैं.
स्कूल बंद होने से बहुत-से बच्चे बहुत-सी चीजें भूल चुके होंगे, क्योंकि हमारी बेसिक लर्निंग लेवल में पहले भी दिक्कतें थीं. इसलिए बेसिक फाउंडेशन की जो चीजें हैं, उसे पढ़ाना होगा. इससे जो बच्चे ज्यादा नहीं भूले हैं, उनका दुहराव हो जायेगा और जो भूल चुके हैं, वे फिर से उसे सीख पायेंगे. फाउंडेशन मजबूत करने का यह यह बहुत अच्छा समय है. पढ़ाई का जाे नुकसान हुआ है, उसके लिए निराश होने की जरूरत नहीं हैं.
बच्चे हैं, थोड़ा ध्यान देने से वे फिर से पुरानी लय में आ जायेंगे. इसके लिए पहले यह पहचान करना जरूरी है कि बच्चा किस विषय या एक्टिविटी में पिछड़ गया है और अभी उसका स्तर क्या है. वहीं से पढ़ाई शुरू की जाए. इसे ‘टीचिंग एट द राइट लेवल’ कहते हैं. स्कूल बंद होने से केवल पढ़ाई का ही नुकसान नहीं हुआ है, बच्चों का सर्वांगीण विकास भी प्रभावित हुआ है. जब स्कूल खुलेंगे, तो पहले सौ दिन बच्चों को इकट्ठा आकर कुछ करने का मौका देना चाहिए.
पिछले डेढ़-दो वर्षों में बच्चों का केवल नुकसान नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने बहुत-सी नयी चीजें भी सीखी हैं, अनुभव किया है. तो, बतौर अभिभावक हमें यह जानने और मूल्यांकन करने की बहुत ज्यादा जरूरत है कि इस दौरान हमारे बच्चे ने क्या नया अनुभव किया, क्या नया सीखा. एक बात और, झारखंड सरकार ने महिला और माताओं काे जोड़ने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है. इसमें वे शिक्षकों, मिड-डे मील वर्कर्स और माताओं के लिए वेबिनार किया जस रहा है. दूसरे राज्यों को भी ऐसा करना चाहिए और स्कूल खुलने के बाद भी यह जारी रहना चाहिए.