बढ़ सकता है फंसे कर्ज का मर्ज
भले ही बैंकों के फंसे कर्ज में वृद्धि होने की संभावना है, लेकिन बैंकों पर बढ़े हुए फंसे कर्ज का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसकी भी पूरी उम्मीद है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी दूसरी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) के बढ़ने का अनुमान लगाया है. केंद्रीय बैंक का मानना है कि कोरोनावायरस के ओमिक्रोन वैरिएंट से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, बढ़ती महंगाई भी फंसे कर्ज को बढ़ा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर, 2022 तक बैंकों का फंसा कर्ज 8.1 प्रतिशत से 9.5 प्रतिशत तक बढ़ सकता है, जो सितंबर, 2021 में 6.9 प्रतिशत था.
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार अभी बैंकों की वित्तीय स्थिति अच्छी है. महामारी में सरकार की समीचीन नीतियों और आरबीआई के नीतिगत समर्थन तथा उपायों से बैंकों ने अच्छा प्रदर्शन किया है. इस दौरान वित्तीय बाजार में भी स्थिरता रही है. रिजर्व बैंक को भरोसा है कि बैंक आसानी से फंसे कर्ज से निपट लेंगे. पहली वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा था कि मार्च, 2022 तक बैंकों का जीएनपीए 9.80 प्रतिशत रह सकता है. हालात ज्यादा खराब होंगे, तो यह 11.22 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.
मार्च, 2021 तक अनुसूचित व्यावसायिक बैंकों का फंसा कर्ज 61180 करोड़ रुपये घटकर 8.34 लाख करोड़ पर आ गया था. बैंकों का कुल फंसा हुआ कर्ज (जीएनपीए) कुल अग्रिम का 7.5 प्रतिशत था, जबकि शुद्ध फंसा कर्ज 2.4 प्रतिशत. इससे पता चलता है कि बैंकों ने महामारी के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया. सूचीबद्ध बैंकों का जीएनपीए जून, 2021 में 8.11 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि जून, 2020 में यह 8.32 लाख करोड़ रुपये था, यानी सरकारी बैंकों का प्रदर्शन निजी बैंकों से बेहतर रहा.
उनका जीएनपीए 4.2 प्रतिशत कम हुआ, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों का 3.3 प्रतिशत बढ़ा. इस अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध फंसे कर्ज में चार प्रतिशत की कमी आयी, जबकि निजी क्षेत्र में यह 22 प्रतिशत की दर से बढ़ा.
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी सूचीबद्ध बैंकों का सामूहिक शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 61 प्रतिशत बढ़ा, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध लाभ 140 प्रतिशत बढ़ा. वहीं, निजी क्षेत्र के बैंकों का शुद्ध मुनाफा 28 प्रतिशत बढ़ा. सरकारी बैंकों का परिचालन लाभ भी निजी बैंकों से दोगुना होकर 16 प्रतिशत बढ़ा. ओमिक्रॉन वैरिएंट अर्थव्यवस्था को फिर से नुकसान पहुंचा सकता है. भले ही इससे मौत की संभावना बहुत कम है, लेकिन यह डेल्टा वैरियंट से ज्यादा संक्रामक है.
ताजा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार निजी निवेश अभी भी कोरोना-पूर्व स्तर पर नहीं पहुंच सका है. स्पष्ट है कि आम लोगों की आय उस स्तर पर नहीं पहुंच सकी है और वे अपने खर्च में कटौती करने पर मजबूर हैं. बढ़ती महंगाई भी जेब में सेंध लगा रही है. इस पर काबू पाने के लिए मांग और आपूर्ति के बीच समन्वय की जरूरत है, लेकिन इस मोर्चे पर संबंधित तंत्र अग्रतर कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं. महंगाई बढ़ाने में कुव्यवस्था का भी बड़ा हाथ है.
निर्यात से आयात ज्यादा होने से चालू वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा 9.3 अरब डॉलर हो गया, जो जीडीपी का 1.3 प्रतिशत है. जबकि, पहली तिमाही में यह 6.6 अरब डॉलर रहा था, जो जीडीपी का 0.9 प्रतिशत था. रिजर्व बैंक के अनुसार दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा बढ़ने का कारण व्यापार घाटा का बढ़कर 44.4 अरब डॉलर हो जाना है. चालू खाते का घाटा वित्तवर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही में 25 अरब डॉलर से ऊपर रहने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में चालू खाते का घाटा 40 से 45 अरब डॉलर या जीडीपी का 1.4 प्रतिशत रह सकता है.
व्यापार घाटे और चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ रहा है और इससे सरकार विविध जरूरी मदों पर अपेक्षित खर्च नहीं कर पा रही है, जिससे मांग में वृद्धि नहीं हो रही है. चूंकि, मांग में बढ़ोतरी से ही आर्थिक गतिविधियों में तेजी आती है, इसलिए, अर्थव्यवस्था में सुधार की रफ्तार धीमी है. अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने से कारोबारी और आम आदमी की आमदनी में कमी आयेगी, जिससे लोग अपने ऋण की किस्त एवं ब्याज नहीं चुका पायेंगे और उससे फंसे कर्ज में वृद्धि हो सकती है.
यह सही है कि पहले से फंसे कर्ज की वसूली का काम करने वाले कानून या संस्थान फंसे कर्ज की वसूली करने के मामले में अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाये हैं, लेकिन यह भी सच है कि फंसे कर्ज की वसूली में पहले से तेजी आयी है. विगत छह वर्षों में बैंक पांच लाख करोड़ रुपये से ज्यादा फंसे कर्ज की वसूली करने में सफल रहे हैं और आनेवाले दिनों में भी इस मोर्चे पर बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है.
मौजूदा परिप्रेक्ष्य में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में फंसे कर्ज में वृद्धि की आशंका को गलत नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि फिलवक्त ओमिक्रॉन देश के हर हिस्से में तेजी से बढ़ रहा है और महंगाई में भी बढ़ोतरी हो रही है. यह भी सच है कि बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन में हाल में उल्लेखनीय सुधार आया है. कुछ बड़े बैंक बाजार से पूंजी उगाहने में भी सफल रहे हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि भले ही बैंकों के फंसे कर्ज में वृद्धि होने की संभावना है, लेकिन बैंकों पर बढ़े हुए फंसे कर्ज का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसकी भी पूरी उम्मीद है.